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डराने लगा है ज्ञानवापी प्रकरण सुलझने का भय

काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद के सुलझने के आसार बनने लगे हैं। एडवोकेट कमिश्नर की मानें तो आयोग की टीम 6 और 7 मई को परिसर के निरीक्षण और विवादित स्थल की फोटोग्राफी करेगी लेकिन उससे पहले ही कुछ लोगों को डर है कि वर्षों से दबे राज कहीं बाहर न आ जाएं और यही वजह है कि वे मां श्रृंगार गौरी मंदिर समेत अन्य विग्रहों और स्थानों की वीडियोग्राफी पर ऐतराज जताने लगे हैं जबकि कड़ी चौकसी के बीच प्रशासन न्यायालय के आदेश के पालन को संकल्पित है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है ज्ञानवापी मस्जिद में कैमरा से एक पक्ष को परेशानी क्यों है, अगर नहीं है तो विरोध क्यों? कहीं विरोध के पीछे मस्जिद में मंदिर के सबूत मिलने का भय तो नहीं? जबकि मस्जिद के एक किनारे की दीवारें चीख-चीख कर गवाही दे रही है कि पहले मंदिर ही था। खास बात यह है कि यह गवाही भगवान भोलेनाथ के नंदी की है, जिनका मुख मंदिर की ही तरफ है। खासतौर से विरोध का मामला तब और संदेहास्पद हो जाता है जब न्यायालय तथ्यों की जानकारी के लिए ही वीडियोग्राफी करा रहा है। दूसरा बड़ा सवाल क्या अयोध्या के बाद काशी भी नए घमासान की ओर बढ़ रहा है? स्वामी जितेन्द्रानंद की मानें तो आज भी तहखाने का अधिकार हिन्दू पक्ष के पास ही है, जिसकी चाबी प्रशासन के पास है और नमाज मस्जिद के छत पर पढ़ी जाती है।

सुरेश गांधी

फिलहाल, मुस्लिम पक्ष के पक्षकार प्रतिवादी अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी के ज्वाइंट सेक्रेटरी सैयद मो. यासिन किसी भी सूरत में कमीशन के सर्वे और वीडियोग्राफी की कार्रवाई का विरोध करने का ऐलान किया है। उनका आरोप है कि यह सारा धार्मिक द्वेष और राजनीतिक कारणों से किया जा रहा है। यह सारा मसला श्रृंगार गौरी का है जबकि वादियों ने ज्ञानवापी मस्जिद को भी शामिल करने की कोशिश की। इसी वजह से दो बार कमीशन की कार्रवाई नहीं हो सकी, आगे भी कोशिश जारी रहेगी। श्रृंगगार गौरी में नियमित दर्शन होता रहा है, कोर्ट के आदेश के बावजूद वे कमीशन और वीडियोग्राफी की कार्रवाई के लिए मस्जिद के अंदर किसी को नहीं जाने देंगे, हम इसका विरोध करेंगे। कोर्ट के आदेश की अवहेलना के सवाल पर उन्होंने कहा कि अंजाम भुगतने के लिए तैयार हैं, लेकिन मस्जिद की बैरिकेडिंग के अंदर नहीं जाने दिया जायेगा। हालांकि उनके इस हठ का जवाब प्रशासन कड़ी मुस्तैदी के बीच देने वाली है। सूत्रों की मानें तो प्रशासन न्यायालय के आदेश के पालन के लिए संकल्पित है। अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने वीडियोग्राफी कराए जाने के फैसले का विरोध जताया है। इस पर हनुमानगढ़ी के महंत राजू दास ने कहा कि उन्होंने इसलिए इन्कार किया क्योंकि उन्हें डर है कि कई राज बाहर आ जाएंगे।

जहां तक विवाद का मामला है तो स्वामी जितेन्द्रानंद का कहना है कि अभी भी मस्जिद के पीछे शृंगार गौरी की पूजा की जाती है। नंदी का मुख भी मस्जिद की तरफ है, जो बताता है कि वही मंदिर हुआ करता था। साथ ही पूजा वाले स्थल पर कथा भी आयोजित की जाती है। खास बात यह है कि तहखाने के दरवाजे पर हिन्दुओं और मंदिर प्रशासन का ताला लगा हुआ है। दरवाजा दोनों तरफ से खुलता है। मस्जिद के पीछे मंदिर निर्माण का ढाँचा स्पष्ट दिखाई पड़ता है। जहां मुस्लिम समाज नमाज पढ़ता है, वो विवादित ढांचे के तहखाने की छत है। मंदिर पक्ष ने सुनवाई के दौरान दलील दी है कि काशी में तत्कालीन विश्वेश्वर मंदिर को तोड़ कर उसे ज्ञानवापी मस्जिद का रूप दे दिया गया। तहखाने सहित चारों ओर की भूमि पर हिन्दुओं का वैध नियंत्रण होने की बात भी कही गई। मंदिर पक्ष ने याद दिलाया कि इस्लाम में विवादित स्थल पर पढ़ी गई नमाज कबूल ही नहीं होती है, इसीलिए अवैध कब्जे के खिलाफ वाद पर सुनवाई चलनी चाहिए और इस पर आपत्ति जताने वाले याचिका को ख़ारिज किया जाए। वहीं मस्जिद पक्ष कानून का हवाला देकर 1947 की मंदिर-मस्जिद की स्थिति में बदलाव न किए जाने की दलीलें दे रहा है। उनका कहना है कि यथास्थिति बनाए रखने वाले कानून के कारण मुकदमे पर रोक लगाई जाए।

मस्जिद पक्ष ने कहा कि वाराणसी के अपर सत्र न्यायाधीश द्वारा मुकदमे की सुनवाई का आदेश देना गलत है। मंदिर पक्ष ने इस दलील की बखिया उधेड़ते हुए कहा कि ये विवाद आज़ादी से भी पहले का है, इसीलिए उसके बाद वाला ये कानून इस पर लागू नहीं होता। इसे विधिक अधिकार बताते हुए मस्जिद हटाने की माँग की गई, क्योंकि इसे जबरन मंदिर तोड़ कर बनाया गया था। बता दें, अक्टूबर 2020 में कोर्ट ने देर से याचिका दायर करने के लिए सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड पर 3000 रुपए का जुर्माना लगाया था। दावा है कि काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव के जिस ज्योतिर्लिंग का दर्शन किया जाता है, उसका मूल स्वरूप वो नहीं बल्कि उस जगह पर मौजूद है जहां 350 वर्ष पहले मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर एक मस्जिद बना दी गई थी। हिंदू पक्ष ने वाराणसी की उस अदालत में 351 वर्ष एक महत्वपूर्ण कागज जमा कराया था। इन्हीं दलीलों के आधार पर भाजपा का नया नारा है अयोध्या के बाद अब काशी विश्वनाथ धाम की ’मुक्त’ करायेंगे।

पुलिस-प्रशासन तैयारियों में जुटा
कोर्ट में हुई सुनवाई का वाराणसी के जिला व पुलिस प्रशासन ने कानून-व्यवस्था बिगड़ने का हवाला देते हुए रोक लगाने की मांग की थी लेकिन कोर्ट ने उनकी अर्जी खारिज कर दी। अब अदालत के आदेश के बाद जिला-पुलिस प्रशासन 6 मई को सर्वे के लिए कानून-व्यवस्था दुरुस्त करने में जुट गया है। इसके लिए 6 मई को मंदिर-मस्जिद परिसर के बाहर सुरक्षाकर्मियों की डयूटी भी लगाई जा रही है। यह अलग बात है कि कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ अब मुस्लिम समाज खुलकर सामने आ गया है। अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी के संयुक्त सचिव सैयद मो. यासिन ने कहा कि कोर्ट के आदेश के बावजूद सर्वे के लिए कमीशन को ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर नहीं आने दिया जाएगा. इसके लिए चाहे जो अंजाम भुगतना पड़े, वे तैयार हैं। यासिन ने कहा कि काशी विश्वनाथ मंदिर में लोग बिना किसी दिक्कत के दर्शन कर रहे हैं। श्रृंगार गौरी में भी रोजाना श्रद्धालु आ रहे हैं, फिर भी धार्मिक द्वेष और राजनीतिक कारणों की वजह से ये मसला उठाया जा रहा है. सर्वे और वीडियोग्राफी के लिए किसी भी गैर मुस्लिम को मस्जिद में घुसने नहीं दिया जाएगा।

क्या है पूरा मामला?
1991 में वाराणसी की जिला कोर्ट में हिंदू पक्ष ने एक मुकदमा दायर कर दावा किया गया कि मुगल शासक औरंगजेब के आदेश पर ज्ञानवापी मस्जिद को स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर का मंदिर तोड़कर बनाया गया था. इसके साथ ही ज्ञानवापी मस्जिद की जगह पर श्रृंगार गौरी की पूजा होती थी. याचिकाकर्ताओं का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद की दीवारों पर देवी-देवताओं के चित्र भी साफ नजर आते हैं. वहीं, ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली कमेटी ने मुकदमे में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 का हवाला देकर स्टे ले लिया था. लेकिन, 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद मामले की फिर से सुनवाई शुरू कर दी गई थी.। काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद मामले में कोर्ट के आदेश पर मुस्लिम पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका डाली थी. लेकिन, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया है. इससे पहले भी निचली अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण का आदेश दिया था. जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से स्टे दे दिया गया था. आसान शब्दों में कहा जाए, तो निचली अदालत के हर निर्देश पर ज्ञानवापी मस्जिद के पक्षकार हाईकोर्ट से स्टे ले आते थे. लेकिन, इस बार उन्हें झटका लगा है. दरअसल, ऐसे मामलों में इस तरह के साक्ष्य कोर्ट के फैसले में अहम भूमिका निभाते हैं. राम जन्मभूमि मामले में भी ऐसे ही साक्ष्यों को काफी तरजीह दी गई थी. कानून के जानकारों के अनुसार, इस तरह की रिपोर्ट को खारिज करना कोर्ट के लिए भी आसान नहीं होता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो मुस्लिम पक्ष को इस बात का डर सता रहा है कि अगर ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर की वीडियोग्राफी और सर्वे किया जाता है. तो, हिंदू पक्ष के उन तमाम दावों को बल मिल जाएगा कि ज्ञानवापी मस्जिद को काशी विश्वनाथ मंदिर के अवशेषों से बनाया गया है

यह है 1993 का सुरक्षा प्लान
अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने और राम जन्मभूमि आंदोलन के बाद प्रदेश के संवेदनशील धार्मिक स्थलों की सुरक्षा व्यवस्था के लिए हाई लेवल कमेटी की निगरानी में ठोस कार्ययोजना बनी थी। इसके तहत काशी विश्वनाथ मंदिर- ज्ञानवापी मस्जिद की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था सीआरपीएफ के हवाले कर दी गई। ये रेड जोन है। इस रेड जोन में किसी भी तरह के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, ज्वलनशील पदार्थ सहित किसी भी अन्य तरह की सामग्री को ले जाना निषिद्ध है। रेड जोन के बाहर पुलिस और पीएसी के जवान तैनात रहते हैं और पुलिस की तलाशी के बाद ही आम नागरिकों को रेड जोन में प्रवेश की इजाजत हैंं। सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर की अदालत के स्तर से नियुक्त एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार मिश्र ने कमीशन की कार्रवाई के लिए 6 मई को दोपहर 3 बजे का समय तय किया है। इस दौरान वादी और प्रतिवादी दोनों पक्ष उपस्थित रहेंगे। इसके लिए दोनों पक्षों को सूचित करते हुए कमीशन की कार्रवाई में सहयोग करने के लिए कहा गया है, ताकि अदालत के आदेश का अनुपालन सुचारू रूप से हो सके। यदि कमीशन की कार्रवाई 6 मई को पूरी नहीं हो पाती है, तो अगले दिन आगे की कार्रवाई पूरी की जाएगी।वाराणसी के शृंगार गौरी मंदिर में नियमित दर्शन-पूजन को लेकर दाखिल याचिका की सुनवाई करते हुए सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर की अदालत ने एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त कर ईद के बाद कमीशन की कार्रवाई करने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा है कि कार्रवाई की रिपोर्ट 10 मई को पेश की जाए।

मुगलों ने कई बार मंदिर को तोड़ा
भारत में आने वाली चीनी यात्री ह्वेनसांग, जिसने हमारे देश के इतिहास के बारे में काफी प्रमाणिक जानकारी लिख रखी है, ने खुद काशी विश्वनाथ मंदिर के तोड़े जाने का उल्लेख आपने दस्तावेजों में किया है. अन्य इतिहासकारों के लिखे अनुसार 1194 ई. में मोहम्मद गोरी ने इस मंदिर को लूटने के बाद तोड़ दिया था. इसे बाद में फिर से कुछ प्रयासों से निर्मित किया गया, पर 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने इस पर धावा बोलकर मंदिर को फिर से तोड़ दिया. 138 साल बाद बाबा विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की फिर से सुध ली गई और 1585 ईस्वी में अकबर के नवरत्नों में से एक राजा टोडरमल मंदिर ने इसके जीर्णाेद्धार में रूचि दिखाई। मंदिर की भव्यता के समक्ष इसके आगे और भी बड़े खतरे पैदा होते रहे. मुगल वंश के एक और बादशाह जहांगीर के बेटे शाहजहां को भी इस मंदिर की प्रसिद्धि रास नहीं आई और सन 1632 में उसने भी इसे तोड़ने का फरमान जारी कर दिया. उसने इसे तोड़ने अपने सिपहसालार सहित सैनिक भी भेज दिए थे. उन्होंने काशी विश्वनाथ के आासपास के 63 मंदिरों को तोड़ दिया. जब बाबा विश्वनाथ के केंद्रीय मंदिर को तोड़ने वह लोग आगे बढ़े तो काशी विश्वनाथ के भक्त उनसे टक्कर लेने आगे खड़े हो गए. इस प्रतिरोध के कारण उन्हें केंद्रीय मंदिर तोड़े बिना ही जाना पड़ा. बाद में शाहजहां के बेटे औरंगजेब ने अपने पिता के कदमों पर चलते हुए इस मंदिर पर सबसे बड़ा प्रहार किया. कट्टरवाद से ग्रस्त इस शासक ने 18 अप्रैल 1669 को काशी विश्वनाथ मंदिर को ढहाने का फरमान जारी किया. उसके फरमान को तामील करते हुए पांच महीनों में ही 2 सितंबर 1669 तक मंदिर को तोड़ दिया और औरंगजेब को उसकी मंशा पूरी होने की जानकारी भेज दी गई. औरंगजेब के इस काले कारनामे का उल्लेख शाकी मुस्तइद खान की लिखी किताब मस्सिरे आलमगिरी में स्पष्ट मिलता है. पुराने आर्काइव को संजोने वाली कोलकाता की एशियाटिक लाइब्रेरी में औरंगजेब का उस समय जारी किया गया फरमान आज भी रखा हुआ है और काशी विश्वनाथ मंदिर पर हुए हमले की याद दिलाता है।

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