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फिल्म ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ को 15 साल हुए पूरे, बॉक्स ऑफिस पर रही सफल

मुंबई: फिल्म ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ को 15 साल पूरे हो गए हैं। इस फिल्म संजय दत्त, अरशद वारसी और विद्या बालन नजर आए है। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर खूब धूम मचाई थी और आज भी सिनेप्रेमियों को यह बहुत पसंद आती है। यह फिल्म 1 सितंबर 2006 को रिलीज हुई थी। इस फिल्म के प्रोड्यूसर विधु विनोद चोपड़ा है। इस फिल्म में गांधी जी की फिलॉसफी की याद दिलाई गई। फिल्म में यह भी संदेश दिया गया कि गांधी दर्शन आज भी प्रासंगिक है।

बताया जाता है कि इस फिल्म को बनाने का विचार ही राजकुमार हिरानी को तब आया जब उन्होंने ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ की अपार सफलता देखी। साल 2003 में राजकुमार हिरानी ने फिल्म बनाई थी ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’। साफ-सुथरी इस फिल्म ने दर्शकों का इतना मनोरंजन किया कि इस फिल्म के डायलॉग से लेकर गांधी फिलॉसाफी को दर्शकों ने हाथो-हाथ लिया। उस दौर में लोगों को फूल देकर सद्भावना बिखेरने वाला प्रयोग हर गली-मोहल्ले में करते देखा गया। इसके बाद राजकुमार और विधु विनोद ने इसका सीक्वल 2006 में ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ बनाया।

इस फिल्म की स्क्रिप्ट और एक्टर्स की जबरदस्त परफॉर्मेंस की बदौलत ही इस फिल्म को चार नेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया था। इस फिल्म की सफलता को इसी से समझ सकते हैं कि संयुक्त राष्ट्र में प्रदर्शित होने वाली पहली हिंदी फिल्म भी थी। फिल्म को देखकर दर्शक थियेटर में हंसते-हंसते लोट-पोट हो गए थे तो कई मौके ऐसे भी आए जब रो पड़े। इस फिल्म में दीया मिर्जा, जिमी शेरगिल और बोमन ईरानी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। एक इंटरव्यू में बोमन ने बताया था कि ‘अपने रोल से न्याय करने के लिए सिखों के साथ काफी समय बिताया। उनकी छोट-छोटी आदतों को समझने के लिए उनके साथ खाना खाया, उनके उठने बैठने, बात करने के तरीकों को ऑब्जर्व किया’।

इस फिल्म में लकी सिंह का किरदार जीवंत किया। इस फिल्म की कहानी में मुन्नाभाई यानी संजय दत्त और सर्किट बने अरशद वारसी ऐसे गुंडे हैं जो बिल्डर लकी सिंह (बोमन ईरानी) के लिए काम करते हैं। मुन्नाभाई को एक रेडियो जॉकी जाह्नवी (विद्या बालन) की आवाज से प्यार हो जाता है। आरजे बनीं विद्या गांधी जयंती यानी 2 अक्टूबर को एक कंपीटीशन का आयोजन करती हैं,जिसमें विजेता को आरजे से मिलने का मौका मिलेगा।

बस अपनी ख्वाहिश पूरी करने का यही रास्ता मुन्नाभाई को नजर आता है। इस कंपटीशन को जीतने के लिए अनपढ़ मुन्नाभाई गलत रास्ता अपनाता है। जीत भी जाता है और आरजे को इम्प्रेस करने के लिए खुद को ऐसा प्रोफेसर बताता है जिसे गांधी दर्शन पर अच्छी पकड़ है। आरजे को भरोसा हो जाता है और वह मुन्नाभाई के करीब आ जाती है।

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