उत्तराखंड

लोकसभा चुनाव में थाम रहे ‘हाथ’, राज्यों में ‘हाथ’ ने छोड़ा साथ

देहरादून (गौरव ममगाई): पीएम नरेंद्र मोदी को जीत से रोकने के लिए विपक्षी पार्टियां इंडिया गठबंधन के बैनर तले एकमंच पर आई तो ऐसा लगा कि अब शायद विपक्षी पार्टियों पर लगा कमजोर विपक्ष का दाग भी धुल जाए. शुरुआती दिनों में इंडिया की बैठक में कई पार्टियों के दिग्गज नेता साथ आए तो लगा कि सभी आपसी मनमुटाव को भुलाकर आगे बढ़ने पर सहमत हो गए, लेकिन ऐसा सोचना गलत है, क्योंकि विपक्षी पार्टियां ने लोकसभा चुनाव के लिए हाथ तो मिला लिए, लेकिन राज्यों में कोई पार्टी सहयोगी को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं हैं. अब कांग्रेस-सपा की जुबानी जंग ने एक बार फिर ‘इंडिया’ गठबंधन की एकता पर सवाल खडे कर दिए हैं.

सबसे पहले बात दिल्ली व पंजाब की करते हैं. यहां आम आदमी पार्टी की सरकार है. इसलिए लोकसभा चुनाव में आप खुद के लिए ज्यादा सीटों की दावेदारी कर रही है, लेकिन कांग्रेस यहां सबसे ज्यादा सांसद होने के कारण दावेदारी में खुद को आगे रखना चाहती है, लेकिन दिल्ली मे शून्य सांसद वाली कांग्रेस का पक्ष विधायक व सांसद दोनों दृष्टि से कमजोर है, लेकिन यहां भी कांग्रेस एक से 2 सीटें हासिल करने की जुगत में हैं. इन दो राज्यों में कांग्रेस इकाई तो पार्टी नेतृत्व से यहां तक कह चुकी है कि आप के साथ आना पार्टी को कमजोर करने जैसा होगा, क्योंकि कांग्रेस भुल नहीं पायी है कि आप ने दिल्ली में किस तरह कांग्रेस को साफ कर दिया. ऐसा ही कुछ पंजाब में भी देखने को मिला.

पश्चिम बंगाल में भी तृणमूल कांग्रेस को स्थानीय निकाय व विधानसभा चुनावों में भाजपा के साथ कांग्रेस व लेफ्ट गठबंधन का भी सामना करना पड़ रहा है. यहां भी ममता बनर्जी कांग्रेस के प्रदेश इकाई के राजनीतिक रूख को लेकर कई बार खफा दिखती रही हैं. कई मर्तबा तो ममताए सोनिया गांधी से भी शिकायत कर चुकी हैं. बावजूद इसके टीएमसी को लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस के साथ आना पड़ा है. अब ताजी घटना समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और मध्य प्रदेश कांग्रेस के बीच छिड़ी जुबानी जंग है. एमपी में कांग्रेस व भाजपा के बीच सीधी टक्कर है. कांग्रेस ने सत्ता में वापसी के लिए कड़ी मेहनत की है, उसे जीत की खासी उम्मीदे हैं. यहां समाजवादी पार्टी ने भी जडें जमाने की ख्वाहिश क्या पालीं, एमपी कांग्रेस अध्यक्ष एवं पूर्व सीएम कमलनाथ ने आंखें तरेर दीं. सपा ने 2-3 सीटों की मांग की तो कांग्रेस ने साफ इनकार कर दिया और पूरे चुनाव में सपा से दूरी बनाने को भी तैयार होने की बात कह डाली. अखिलेश ने भी इसे धोखा बता डाला और कहा कि यूपी में कांग्रेस का भी अस्तित्व नहीं है, इसलिए सपा वहां भी यही फार्मूला अपनाएगी. मामला और बढ़ा जब यूपी के प्रदेश अध्यक्ष भी इसमें कूद पड़े, तब राहुल गांधी को यूपी व एमपी कांग्रेस के पेंच कसने पड़े और राहुल ने अखिलेश से भी शांत रहने का आह्वान किया तो मामला कुछ ठंडा पड़ रहा है.

इंडिया के साथी एकजुट होने की बात तो कर रहे हैं, लेकिन राज्यों में ek-दूसरे को देखने को तैयार तक नहीं हैं. राज्यों में कोई पार्टी अपना सियासी नुकसान नहीं उठाना चाहती है. सभी मजबूत पार्टियों को डर है कि अन्य सहयोगी के लिए सीटें छोड़ी तो उन्हें पैर पसारने का मौका ना मिल जाए. कांग्रेस भी दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ हुआ अनुभव को भुला नहीं पाई है.

पीएम नरेंद्र मोदी की लगातार दो बार प्रचंड बहुमत के साथ जीत हुई और अब उनके पास तीसरी बार जीतकर हैट्रिक लगाने का अवसर है. देश हो या विदेश, उनके चाहने वालों की कमी नहीं है. राष्ट्रवाद एवं हिदुंत्व की छवि के साथ विश्वगुरू के रूप में उबरकर सामने आने का श्रेय मोदी को दिया जाता है. हाल ही में चंद्रयान, गगनयान के रूप में अंतरिक्ष में व रक्षा, व्यापार एवं विकास के क्षेत्र में हुई अभूतपूर्व प्रगति ने भी ध्यान खींचा है. आने वाले समय में पीएम मोदी इन उपलब्धियों को जनता तक भी पहुंचाएंगे. इसका लाभ भी उन्हें मिल सकता है. विपक्षी दलों को भी यही डर सता रहा है. वे नहीं चाहते है कि नरेंद्र मोदी तीसरी बार सत्ता में आए, क्योंकि उनके रहते भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे कई विपक्षी पार्टियों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.

इन सबके बीच कई राज्यों में विपक्षी पार्टियों के बीच राजनीतिक समीकरण बताते हैं कि सहयोगी दलों के बीच सबकुछ ठीक नहीं है, मगर केंद्र में मन जुदा होने के बावजूद सभी पार्टियां एकसाथ दिख रही हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के बैनर तले सभी विपक्षी पार्टियों का एकसाथ आना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रोकने की मजबूरी तो नहीं है?

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