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यूपी की प्रचंड जीत ने खोले 2024 के द्वार, गुजरात में दिखेगा असर

वर्ल्ड क्रिकेट के बेहतरीन फिनिशर्स में शुमार महेंद्र सिंह धोनी एक ऐसे खिलाड़ी हैं, जो आखिरी ओवर में न सिर्फ बाजी पलट देते है, बल्कि हार के जबड़े से जीत भी छीन लेते हैं। कुछ ऐसे ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी हैं। राजनीति के क्षेत्र में मोदी इकलौते ऐसे शख्श साबित हो चुके हैं जो हारी बाजी को जीत में पलटने का माद्दा रखते हैं। इसकी बड़ी वजह है मोदी जनता दरबार नहीं लगाते, जनता तक खुद जाते हैं। मोदी डायरेक्ट बात करते हैं, कनेक्ट करते हैं। आमजनमानस में फोटो खिचातें है, सेल्फी देते हैं, मन की बात करते हैं, दिल की बात सुनते हैं, उनकी हर पब्लिक मीटिंग में श्रोता उमड़ते हैं और प्रभावित होते हैं। यही अदा उन्हें औरों से अलग करती है, ऐसा यूपी चुनाव में भी दिखा। तमाम आरोपों-प्रत्यारोपों व मिथकों को तोड़ते हुए योगी की अगर दोबारा ताजपोशी हो रही है, तो इसका बड़ा श्रेय मोदी को ही जाता है। यह अलग बात है यूपी की प्रचंड जीत ने 2017 की तर्ज पर 2024 की भी राह आसान कर दी है।

सुरेश गांधी

फिलहाल, 2014 में मिली अपार सफलता के बाद बीजेपी राज्य दर राज्य अपने खाते में जोड़ रही है, तो इसके पीछे मोदी करिश्मा बड़ा फैक्टर बन गया है। पांच राज्यों के चुनाव परिणामों ने दिखा दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा बरकरार है। हर चुनाव की तरह इस बार भी मोदी बीजेपी के लिए स्टार प्रचारक नंबर वन बने रहे। सिर्फ इसलिए नहीं कि वो प्रधानमंत्री हैं, बल्कि इसलिए भी क्योंकि मोदी जब प्रचार करते हैं तो एक रिश्ता वह वोटर से जोड़ते हैं, जिसकी डिलिवरी वोटर सीधे मतदान में बीजेपी के लिए करके देता है। 2017 में पीएम ने यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान कुल 24 रैलियां की थीं। 403 में से 118 विधानसभा सीटों को सीधे कवर किया। नतीजे बताते हैं कि पीएम के प्रचार वाली इन सीटों में से 102 विधानसभा में बीजेपी ने जीत हासिल की। यूपी, उत्तराखंड में बीजेपी को मिले बहुमत से यह भी साफ है कि भले ही विपक्ष महंगाई, बेरोजगारी, कोरोना के दौरान खराब मैनेजमेंट को मुद्दा बनाता रहा हो, लेकिन लोगों ने पीएम मोदी के नाम पर भरोसा जताया है। मतलब साफ है यूपी की जीत 2024 के लिए बड़ा संदेश है, जो बता रही है कि दिल्ली की लड़ाई में लखनऊ एक बड़ा पड़ाव साबित होगा। जीत के इन नारों और मोदी-योगी के जयकारों के बीच सियासत का वो संदेश छिपा है, जिसकी गूंज 2024 तक जाती है। जश्न के रंग में राजनीति की वो इबारत लिखी है, जिसमें अगले लोकसभा चुनाव की तस्वीर नजर आती है।

बता दें, 2017 की तर्ज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी चुनाव में ताबड़तोड़ रैलियां कर भाजपा के पक्ष में वोट मांगे। नतीजा ये हुआ कि यूपी में 7 चरणों में से 5 चरणों के चुनाव में ही भाजपा को बहुमत मिल गया। बाकी के दो चरणों में मिली सीटें बोनस के तौर पर रहीं। साल 2014 में केंद्र में मोदी सरकार बनी। उस समय सिर्फ 7 राज्यों में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की सरकारें थीं, जबकि 14 राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी। इसके बाद 2015 से 2017 के बीच यूपी उत्तराखंड, गुजरात, हिमाचल समेत कई राज्यों में बीजेपी ने अकेले या सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई। मार्च 2018 वो वक्त था जब सबसे ज्यादा 21 राज्यों में एनडीए की सरकार बनी थी। हालांकि 2018 के आखिरी में बीजेपी को कई झटके लगे और 2019 में 17 राज्यों में एनडीए गठबंधन की सरकार रह गई। कर्नाटक में कांग्रेस ने बीजेपी को हराकर गठबंधन सरकार बनाई। आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, जम्मू कश्मीर, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में भी एनडीए गठबंधन की सरकार गिर गई। लेकिन बाद में फिर से बीजेपी ने कर्नाटक, मध्यप्रदेश, मेघालय, मिजोरम जैसे राज्यों में सरकार बना ली। 2022 विधानसभा चुनाव से पहले देश के 18 राज्यों में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की सरकार थी। खास बात तो ये भी थी कि नॉर्थ ईस्ट के सभी राज्यों में बीजेपी गठबंधन की सरकार थी और अब पांच राज्यों के चुनाव नतीजे आने के बाद भी बीजेपी के इस सियासी नक्शे में कोई बदलाव नहीं आया है, क्योंकि बीजेपी ने अपने सभी चार गढ़ दोबारा जीत लिये हैं।

44 फीसदी क्षेत्रफल और 49 फीसदी आबादी पर बीजेपी का कब्जा
मतलब साफ है बीजेपी अभी भारत के 44 फीसदी क्षेत्रफल और 49 फीसदी आबादी पर अपनी पार्टी के तहत शासन कर रही है। ऐसा इसीलिए संभव हो पाया है क्योंकि नरेंद्र मोदी बीजेपी के सबसे बड़े स्टार प्रचारक हैं। बीजेपी की इस जीत के कई मायने हैं और ये मायने 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष की उम्मीदों पर पानी फेरने के लिए काफी हो सकते हैं। यहां जिक्र करना जरुरी है कि यूपी में बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ और नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा था। लगातार चुनाव प्रचार में केंद्र सरकार की योजनाओं और लोगों को मिले लाभ का जिक्र हुआ। उत्तराखंड में भी राज्य सरकार की बात कम और नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की बात ज्यादा हुई। यहां बीजेपी ने तीन मुख्यमंत्री बनाए। दो मुख्यमंत्री बदलकर पुष्कर सिंह धामी को सीएम बनाया और चुनाव में हर पोस्टर में मोदी के साथ धामी का ही चेहरा था। धामी खुद अपनी सीट हार गए। इससे साफ है कि उत्तराखंड के लोगों ने मोदी के नाम पर और उन पर भरोसा जताकर ही वोट किया है। पंजाब में भी बीजेपी ने 6 फीसदी से ज्यादा वोट पाकर 2 सीटें जीती हैं। पंजाब में पहली बार अकाली दल से अलग होकर बीजेपी चुनाव लड़ रही थी। भले ही बीजेपी का पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी के साथ गठबंधन था लेकिन जब कैप्टन खुद अपनी सीट हार गए तो यह साफ है कि बीजेपी ने अपने बूते ये दो सीटें जीतीं।

मोदी-शाह की हिट जोड़ी में अब योगी
यह अलग बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की हिट जोड़ी में अब योगी का भी नाम जुड़ गया है। क्योंकि जिस तरह बीजेपी का कैंपेन ’आएंगे तो योगी ही’ और ’बुल्डोजर बाबा’ टैग लाइन के साथ आगे बढ़ा उसके बाद बीजेपी को मिली जीत ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कद बहुत बढ़ा दिया है। विपक्ष के तमाम आरोपों के बावजूद उत्तर प्रदेश में बीजेपी की जीत ने दिखाया है कि लोगों ने मोदी के नाम पर भरोसा जताया और योगी के शासन से उन्हें दिक्कत नहीं थी। बीजेपी के भीतर भी चुनाव से पहले योगी को किनारा करने की जो कोशिशें नजर आईं, उनका योगी ने डटकर जवाब दिया था। उन्होंने खुद को बड़े नेता के तौर पर स्थापित किया जो पार्टी के भीतर की दिक्कतों से जूझते हुए और आगे बढ़े। विपक्ष के तमाम आरोपों के बावजूद योगी की वापसी प्रदेश में उनके नेतृत्व को स्थापित करती है। यूपी का चुनाव इसलिए भी सबसे अहम माना जा रहा था क्योंकि यहां लोकसभा की सबसे ज्यादा सीटें हैं। 2024 लोकसभा चुनाव का रास्ता यूपी से होकर ही गुजरना है। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां की 80 सीटों में से 62 पर जीत दर्ज की थी। अब यूपी में बीजेपी की फिर से अच्छे खासे नंबर से वापसी 2024 की डगर को आसान दिखा रही है।

जनमानस समझने लगी है डबल इंजन के फायदे
उत्तराखंड में लोकसभा की पांच सीटें हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड ने सभी सीटें बीजेपी के खाते में डाली थीं। विधानसभा चुनाव के नतीजों से साफ है कि वोट मोदी के नाम पर पड़ा है जिससे लोकसभा चुनाव के लिए भी बीजेपी अच्छी उम्मीद कर सकती है। पंजाब में लोकसभा की 13 सीटें हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी और अकाली दल गठबंधन को यहां चार सीटों पर जीत मिली थी। तब कांग्रेस के खाते में 8 सीटें आई थीं और आम आदमी पार्टी को सिर्फ एक सीट ही मिली थी। जहां पंजाब में आम आदमी पार्टी का पलड़ा बहुत भारी है, वहीं बीजेपी भी अपने लिए कुछ उम्मीद तो कर ही सकती है। इस साल के आखिर में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में भी विधानसभा चुनाव हैं। दोनों ही राज्यों में अभी बीजेपी ही सत्ता पर काबिज है। अब बीजेपी वहां भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू चलने की उम्मीद बढ़ा सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि अब जनता डबल इंजन सरकार का फयादा समझने लगी है। केंद्र सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों के अलावा जिस तरह से सत्ता-विरोधी लहर को मात दी है, वह इसकी जीता जागता सबूत है। कल्याणकारी योजनाओं व कार्यक्रमों और नीतियों को लागू करने के लिए जिस तरह का तालमेल चाहिए, वह निश्चित रूप से केंद्र और राज्यों के बीच श्रेष्ठ तालमेल से संभव होता है।

जाति नहीं अब काम पर मिलेंगे वोट
योगी आदित्यनाथ ने निर्णय किया कि वह राज्य की कानून-व्यवस्था में सुधार करेंगे। उन्होंने इस कार्य को काफी प्रशंसनीय तरीके से अंजाम दिया। ऐसा करते हुए उन्होंने मोदी का अनुसरण करते हुए शक्तियों को अपने कार्यालय में केंद्रित किया। उन्होंने शक्तियों के केंद्रीयकरण की जिम्मेदारी खुद उठायी और इसका उत्तरदायित्व भी अपने ऊपर लिया। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इस वजह से चुनाव में बीजेपी के वोट शेयर में वास्तव में काफ़ी इज़ाफ़ा हुआ है, भले ही उसकी कुल सीटों की संख्या क्यों न कम हो गयी है। देखा जाए तो वर्ष 2017 के चुनावों में मोदी मैजिक था, राम मंदिर का मुद्दा था और योगी आदित्यनाथ का कोई चेहरा नही था, लेकिन 2022 के चुनाव में न तो राम मंदिर का मुद्दा था और न ही 2017 जैसी मोदी लहर। कुछ नया था तो योगी का चेहरा और उनकी कार्यसंस्कृति। दरअसल योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के लिए लोगों ने चुना तो जाहिर सी बात है प्रदेश की जनता ने योगी के सत्ता संचालन के तौर तरीकों को सराहा है। राष्ट्रवाद को किसी भी सूरत में प्राथमिकता देने वाली भाजपा को लोगों ने बहुमत से जिताकर यह भी संदेश दिया है कि देश में रहकर देशहित की बातें करने वाले को आगे आने का मौका मिलेगा। तालिबान और पाकिस्तान मसले पर पूर्व में कुछ विपक्षी नेताओं की राष्ट्र विरोधी टिप्पणियों का भी उचित समय पर जनता ने उचित जवाब दे दिया है। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश चुनाव के नतीजों ने यह साबित कर दिया है कि प्रदेश की राजनीति अब परंपरागत ट्रैक से हटकर बदलाव की पटरी पर दौड़ती दिखाई दे रही है।

फिर मोदी जुटे मिशन गुजरात पर
चुनावों में हार के बाद आमतौर पर नेता छुट्टियां मनाने के लिए विदेश चले जाते हैं। लेकिन चार राज्यों में बंपर जीत हासिल करने के बावजूद पीएम मोदी अब गुजरात के मिशन पर निकल पड़े हैं। गुजरात में अहमदाबाद हवाई अड्डे से शुरु रोड शो में उमड़ा सैलाब यह बताने के लिए काफी है कि इस बार भी गुजरात में कमल खिलेगा। बात वर्ष 2012 की करे तो यूपी में भाजपा को मात्र 47 सीटें और 15 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि सपा पूर्ण बहुमत से चुनाव जीती थी। तब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने यूपी में प्रचार तक नहीं किया था, क्योंकि चुनावों के भाजपा संगठन सचिव संजय जोशी संघ के पुराने दिनों से ही उनके प्रतिद्वंद्वी थे। और आज 10 साल बाद भाजपा ने जीत का दोबारा चौका लगाया है। यह 45 प्रतिशत वोट शेयर के साथ भाजपा की लगातार चौथी जीत है और मोदी के नेतृत्व में पार्टी सबसे बड़ी ताकत बन गई है। जाति के चक्रब्यूह को वह हिंदुत्व व सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से भेद रही है। टॉयलेट, रसोई गैस, मुफ्त राशन या घर जैसी सुविधाएं गेमचेंजर साबित हुई है। सपा ने बीजेपी के सामाजिक गठजोड़ की बहुत -सी बिरादरियों के वोटों को विभाजित तो किया, लेकिन पूरी तरीके से नहीं खींच पाए। जो गैर यादव, पिछड़ी जाति के नेता दलबदल करके सपा के साथ गए, उनके साथ उनके पूरे वोट सपा में नहीं गए। इसी तरीके से पश्चिमी यूपी में जाट समाज ने जयंत चौधरी (आरएलडी) के उम्मीदवारों को तो वोट दिए लेकिन सपा के उमीदवारों को उस तरीके से वोट नहीं दिए। इसने बीजेपी को थोड़ा कमजोर तो किया, लेकिन उसके पराजित होने की स्थिति पैदा नहीं हो पाई।

134 सीटों पर जीत का श्रेय मोदी के खाते में
2022 में आंकड़े बताते हैं कि प्रधानमंत्री ने चुनाव के दौरान 22 दिन में 24 रैलियां कीं। 403 में से 192 सीटों को अपने प्रचार से कवर किया। नतीजे बताते हैं कि पीएम के प्रचार वाली इन सीटों में से 134 विधानसभा में बीजेपी ने जीत हासिल की। चरण दर चरण रैलियों को प्रधानमंत्री की यूपी में देखा जाए तो करीब 22 दिन के प्रचार में नरेंद्र मोदी ने 16,836 किमी का सफर किया। उनकी सभाओं का ही परिणाम रहा कि पहले चरण की कुल 58 में से बीजेपी ने 46 सीटें जीत लीं। दूसरे चरण में 3 रैलियों में 25 सीटें कवर कर कुल 55 सीटों में से बीजेपी ने 27 सीटें जीत लीं। तीसरे चरण की 3 रैलियों से 25 सीटों तक प्रभाव छोड़ा, जिसमें कुल 59 सीट में से बीजेपी ने 44 सीट अपने नाम कीं। चौथे चरण में दो सभाओं में 29 सीटों को कवर कर 59 में से 49 सीटें बीजेपी ने हासिल की। 5वें फेज में 3 रैली के जरिए 46 सीटें कवर कीं और 61 में से 40 सीट जीती। छठे चरण की दो रैली से 12 सीटें कवर कर 57 में से 40 सीटे जीती। 7वें चरण में पांच सभाएं कर 34 सीटें कवर करते हुए 54 में से 26 सीटें बीजेपी ने जीती हैं।

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