खेद का विषय है ‘ऑपरेशन गंगा’ पर राजनीति
यूक्रेन से अब तक निकल चुके हैं 21,000 से ज्यादा भारतीय
जिस प्रकार से भारत का अभियान “गंगा” चल रहा है और हजारों भारतियों को बिना वीज़ा और हवाई सफर के पैसे लिए बिना देश वापस लाया जा रहा है, ऐसा तो ब्रिटेन और अमेरिका भी नहीं कर सके। तभी भारत को विश्व गुरु और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुपर पीएम का खिताब दिया गया है। जैसे उन्हों ने कोरोना से बचाव के लिए चिकित्सकों और वैज्ञानिकों के पीछे लग कर वैक्सीन का आविष्कार कर दिया था, इसी प्रकार ए उन्हों ने भारतीय सुरक्षा सलाहकार, अजित डोभाल और मंत्रियों से विमर्श कर भारतीय छात्र-छात्राओं को सुरक्षित घर लाने का प्रण किया है। दुनिया जानती है कि मोदीजी जो कहते हैं, करते हैं। इसके अतिरिक्त भारत ने सदा ही अपने नागरिकों को युद्धग्रस्त देशों, जैसे सीरिया,ईराक, अफगनिस्तान, लीबिया आदि। सुषमा स्वराज ने तो पाकिस्तान में फंसी एक भारतीय मुस्लिम महिला कर भी सुरक्षित भारत में बुलवाया था।
आज की सच्चाई यह है कि यूक्रेन पर रूस के आंक्रमण से कुछ हफ्ते पहले परामर्श जारी होने के बाद से अब तक 21,000 से ज्यादा भारतीय यूक्रेन से निकल चुके हैं। इनमें से 19,920 भारतीय पहले ही भारत पहुंच चुके हैं। भारत लगातार अपने नागरिकों को यूक्रेन से बाहर निकालने में लगा है भारतीय नागरिक यूक्रेन की जमीनी सीमा बिंदुओं को पार करके रोमानिया, पोलैंड, हंगरी, स्लोवाकिया और मोल्दोवा पहुंच रहे हैं। पहली उड़ान 26 फरवरी को युद्धग्रस्त देश में फंसे भारतीयों को बुखारेस्ट से लेकर वापस आई थी। अधिकारियों ने बताया कि पिछले 24 घंटों में 13 उड़ानों से करीब 2,500 भारतीयों को वापस लाया गया। उन्होंने कहा कि हंगरी, रोमानिया और पोलैंड से फंसे भारतीयों को वापस लाने के लिए अगले 24 घंटों में आठ उड़ानें निर्धारित हैं। बुडापेस्ट से पांच उड़ानें होंगी, पोलैंड में रेज़ज़ो और रोमानिया में सुचेवा से एक-एक उड़ान संचालित की जाएगी।
ऑपरेशन गंगा के तहत, अब तक 76 उड़ानें 15,920 से अधिक भारतीयों को भारत वापस ला चुकी हैं। इन 76 उड़ानों में से 15 उड़ानें पिछले 24 घंटों में भारत में उतरी हैं। संघर्ष शुरू होने से कुछ सप्ताह पहले परामर्श जारी होने के बाद से अब तक 21,000 से अधिक भारतीय यूक्रेन से बाहर आ गए हैं। युद्धग्रस्त यूक्रेन से भारतीयों को निकालने का काम युद्धस्तर पर चल रहा है। इसके लिए हंगरी स्थिति भारतीय दूतावास ने बुडापेस्ट में एक कंट्रोल रूम बनाया है। इसकी कमान भारतीय विदेश सेवा (आइएफएस) के 30 युवा अधिकारियों के हाथों में है। बुडापेस्ट में होटल के एक छोटे कमरे में स्थापित इस कंट्रोल रूम से आइएफएस अफसर लगभग 150 से ज्यादा स्वयंसेवक और टेक्निकल टीम के साथ दिन रात काम कर रहे हैं। इन में पोलिश, चेक, रोमानियन व रूसी एवं यूक्रेनियन के अनुवादक भी हैं!
इतना सब होने के बाद भी विपक्ष उल्टी-सीधी आलोचना कर रहा है, जो न केवल निंदनीय है बल्कि वांछनीय है। यह ठीक है, विपक्ष का काम ही मुख़ालिफ़त करना है, मगर इंसानियत भी तो कुछ कहती है कि ऐसे मौक़ों पर अगर प्रशंसा नहीं कर सकते तो इन मुद्दों पर ज़हर तो न उगलें। खामोश भी तो रह सकता है विपक्ष! युवा अधिकारियों में कई ऐसे हैं जिन्हें दूसरे देशों में स्थित भारतीय दूतावासों से बुलाया गया है। स्वयंसेवकों का इतिहास रहा है कि उन्हों ने हर राष्ट्रीय आपदा में अथवा राष्ट्रीय पर्व में देश का हाथ बटाया है, जैसा कि १९६२ के गणतंत्र दिवस के अवसर पर इन्हों ने परेड के समय किया था और इनका मान-सम्मान, तत्कालीन प्रधानमंत्री, पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी किया था।
हालांकि भारत का पूर्ण सदस्य गण इस सेवा में लगा है, मगर इक्का-दुक्का बात ऐसी हो जाती है कि जिस से किरकिरी हो जाती है। रोमानिया में ज्योतिरादित्य सिंधिया का एक व्हाट्सअप वीडियो वायरल हुआ है जिस में वे रोमानिया के मेयर से बहस कर रहे हैं, जो उनसे अंगरेज़ी में कह रहा है कि इन बच्चों के ठहरने और खाने का सभी इंतेज़ाम रोमानिया सरकार ने किया था, ने कि मंत्रीजी ने। इस पर मंत्रीजी मेयर से उलझते नज़र आए और बहस गर्मागर्म हो चली। ऐसे समय पर सिंधिया को उस से उलझने के बजाए उसका और उसके देश का धन्यवाद करके खुश मिज़ाजी से अपने बच्चों का काम निकालना चाहिए था ताकि इस प्रकार का वीडियो न फैलता। अब वे ऐसी पार्टी में हैं जहां घमंड व अहंकार का कोई स्थान नहीं।
एक और वीडियो देखने में आ रहा है जहां भारतीय छात्र चेन्नई हवाई अड्डे पर पहुंचे हैं और एक मंत्री उनके स्वागत में हाथ जोड़े खड़े हैं और अधिकतर छात्र उनके अभिवादन की अनदेखी कर घोड़े की तरह मुँह उठाए चले जा रहे हैं। हालांकि भारत सरकार जी जान से लगी है इन लोगों को युद्धग्रस्त देश से लाने में। शायद ही कोई देश ऐसा हो जिसने इस प्रकार से अपने देशवासियों को इतनी तत्परता से अपने देश पहुंचाया हो। इसी संदर्भ में एक अधिकारी हैं राजीव बोडवाडे, जो इजरायल में भारतीय दूतावास में डिप्टी चीफ हैं। बुडापेस्ट में एएनआइ से बातचीत में उन्होंने कहा, “जब हमने काम शुरू किया था तब हमारे साथ कुछ ही छात्र जुड़े थे, लेकिन धीरे-धीरे उनकी संख्या बढ़ती गई और एक संगठित ढांचा तैयार हो गया। हम 150 से अधिक स्वयंसेवकों को साथ लाने में कामयाब रहे लेकिन एक संयुक्त प्रयास की जरूरत थी।”
बोडवाडे ने कहा, “इसके लिए हमने एक कमांड सेंटर स्थापित किया। सीमा पर हमारी टीम हमें बताती है कि कितने लोग पार गए और कितने लोग वहां से शहर के लिए चल दिए। इसके आधार पर हम कमांड सेंटर में आगे की रणनीति बनाते हैं।“ बोडवाडे ने बताया कि निकासी अभियान की सुविधा के लिए चार टीमें बनाकर उन्हें अलग-अलग काम की जिम्मेदारी सौंपी गई। एक टीम सीमा पर अलग-अलग साधनों से पहुंचने वाले लोगों पर नजर रखती है और उन्हें शहर भेजती है। दूसरी टीम शहर में लोगों के लिए ठहरने की व्यवस्था करती है। इसके लिए 40 स्थानों का चयन किया गया है। तीसरी टीम लोगों के लिए दिन में तीन वक्त के भोजन की व्यवस्था करती है जो आसान नहीं है। पिछले कुछ दिनों में हजार से ज्यादा लोगों के लिए खाने-पीने की व्यवस्था की गई है। चौथी टीम एयरपोर्ट पर तैनात है।
वहीं जहां पूर्ण विश्व में इसकी सराहना हो रही है, वहीं देश में कुछ ऐसे तत्व हैं जिनको हमेशा ही उल्टे बांस बरेली ही चलना है। न केवल हवाई जहाज़ बल्कि भारत ने अपने मंत्रियों को भी उन देशों में भेजा है, से जहां से उड़ान भारत आ सकती है। इस में न केवल डोमेस्टिक कैरियर बल्कि सेना का सब से बड़ा सी-7 जहाज़ भी है जिसमें सैंकड़ों लोग आ सकते हैं। हंगरी में भारतीय दूतावास ने ट्विटर पर एक ‘महत्वपूर्ण घोषणा’ पोस्ट की। इसमें भारतीय छात्रों से कहा गया है कि वे भारत लौटने के लिए निर्दिष्ट संपर्क बिंदुओं पर रिपोर्ट करें। हंगरी में स्थित भारतीय दूतावास ने ट्वीट किया, “महत्वपूर्ण सूचना: भारतीय दूतावास ऑपरेशन गंगा के तहत अंतिम चरण की निकासी उड़ानों की आज शुरुआत कर रहा है। जो भी छात्र (दूतावास के अलावा) खुद से किए गए प्रबंध में रह रहे हैं. उन्हें बुडापेस्ट स्थित यूटी 90 हंगरी सेंटर में सुबह 10 बजे से 12 बजे तक पहुंचने का अनुरोध किया जाता है।”
नागरिकों से तत्काल एक ऑनलाइन फॉर्म भरने के लिए कहा है। गूगल आवेदन पत्र में नाम, ईमेल, फोन नंबर, वर्तमान ठिकाना, पासपोर्ट का ब्योरा, लिंग और उम्र का विवरण देने को कहा गया है। आवेदन में दूतावास ने यूक्रेन में फंसे भारतीयों की वर्तमान स्थिति बताने को भी कहा है। आवेदन में स्थलों की एक सूची दी गई है और उनमें से चयन का विकल्प दिया गया है। ऑनलाइन आवेदन में जिन स्थलों की सूची दी गई है वे इस प्रकार हैं- चेरकासी, चेर्निहिव, चेरनिवित्सी, निप्रोपेत्रोव्स्क, दोनेत्स्क, इवानो-फ्रांकिवस्क, खारकीव, खेर्सोन, खमेलनित्स्की, किरोवोग्राद, कीव, लुहांस्क, लवीव, मिकोलेव और ओडेसा। इसके अलावा पोलतावा, रिवने, सुमी, तेरनोपिल, विनित्स्या, वोलिन, जकरपत्या, जापोरोझ्या और झितोमीर को भी सूची में शामिल किया गया है। यही नहीं, विश्व आज भारत की ओर देख रहा है कि इसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस और यूक्रेन के मध्य मध्यस्थता कर देंगे। यह तो पूर्ण विश्व जानता है कि मोदी और पुतिन की जबरदस्त आपसी वैचारिक कैमिस्ट्री है। यदि ऐसा करा देते हैं मोदी तो वे नोबेल शांति पुरस्कार के हक़दार बन जाएंगे।
(लेखक भारतरत्न मौलाना आज़ाद के वंशज हैं)