अपराधदस्तक-विशेषस्तम्भ

बहुत घातक है जातिवाद का जहर घोलने की सियासत

राघवेन्द्र प्रताप सिंह

एक दुर्दांत हत्यारे के एनकाउंटर को जातिवाद के चश्में से देखने वालों को शर्म आनी चाहिए

भारतीय समाज की मुख्य विशेषता हमारी जातीय, धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषायी विविधताओं के बावजूद हमारी सामजिक समरसता है। हजारों वर्षों से हम अलग-अलग मान्यताओं, परम्पराओं, पूजा पद्धतियों और विभिन्नता भरी जीवन शैली जीने के बाद भी इसलिए एक सूत्र में बंधे हैं, क्योंकि, इन सबके साथ ही हम एक समरस समाज हैं। हम हिन्दू, मुस्लिम, सिख, जैन, पारसी अथवा ईसाई या ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य, अथवा शूद्र होने से पहले समाज हैं।

हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी इस सामाजिकता को बनाये रखने और इसे एक सूत्र में बांधकर सभ्य, सुसंस्कृत और सहज रूप देने की है। ऐसे में, हमे समझना होगा कि जो भी शक्तियां नितान्त निजी स्वार्थ के तहत हमारी इस सामाजिकता को छिन्न-भिन्न करने, हमारी समरसता में सम्प्रदायवाद अथवा जातिवाद का जहर घोलने की कोशिश कर रही हैं, उन्हें कामयाब नहीं होने देना है।

वर्तमान में भी एक बार फिर से हमारे समाज मे जातिवाद का बेहद घातक जहर बोने की कोशिशें हो रही हैं, ये सियासती कोशिशें इस बार दुर्दान्त अपराधी विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद से इसे जातिवाद का रंग देकर राजनीतिक फायदा लेने की नीयत से शुरू की गयी हैं। सत्ता से अलग-थलग हो चुकी सियासी पार्टियां बड़ी चालाकी से हमारे समाज मे इस जहर का छिड़काव कर, नफरत की उपज से अपने स्वार्थ की पूर्ति का सपना देख रही हैं।

समझना हमें ही होगा, समाज के लिए बेहद जरूरी है जातीय – समरसता

समाज के लिए, जातिवाद का यह जहर बोने की यह कोशिशे बेहद घातक है, अपराधी विकास दुबे, जो की एक हार्डकोर क्रिमिनल, एक दुर्दान्त हत्यारा और एक आततायी था, जिसने न जाने कितने हँसते खेलते परिवारों की हंसी छीनकर, उनकी जमीन जायदाद कब्जा करके, मजलूम किसानों और आम व्यक्तियों की जिंदगियां छीनकर अपना काला साम्राज्य खड़ा किया था, उसकी जाति को ढाल बनाकर की जा रही चिल्ल्पों के पीछे पूरा एक सियासी एजेण्डा काम कर रहा है जिसका उद्देश्य ब्रह्मण वोटों को ऐन—केन प्रकरण अपने पाले में खींचना है।

अपने स्वार्थ के तहत समूचे समाज को लड़ाकर, समाज की व्यवस्था को जहरीली बनाकर, खुद की सियासती रोटियां सेंकने का सपना देखने वाले इन लोगों को शर्म आएगी नहीं, यदि कभी आयी होती तो ये ऐसा न करते। समझना हमें ही होगा, क्योंकि यह सामजिक समरसता जब तक हम हैं, हमारे लिए भी आवश्यक है और हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी। हमें इन चालाक और जहरीले सियासतदां लोगों की नीयत को समझकर इनकी कोशिशों को नाकामयाब करना ही होगा। जातिवाद के नाम पर फैलाये जा रहे इस बवंडर को हमें रोकना ही होगा।

एक अपराधी किसी जाति या सामाज का आदर्श नहीं हो सकता

 जुल्मो-सितम से जमीने कब्जाता था विकास

अपराधी किसी का आदर्श नहीं होता, अपराधी केवल अपराधी होता है। एक अपराधी सदैव अपनों पर ही अत्याचार करता है। अपनों की ही सम्पत्तियों जमीन-जायदाद और धन पर कब्जा करके वह अपना काला साम्राज्य खड़ा करता है। यही विकास दुबे ने भी किया, वह एक भय फैलाकर गुंडागर्दी करने वाला शख्श था, इसके बदले वह गुंडा टैक्स वसूलता था। अपनी गुंडागर्दी और जुल्मो-सितम से उसने आतंक बना रखा था।

आम आदमी से लेकर व्यवसायी तक सब उसके जुल्म के शिकार थे। चौबेपुर, बिल्हौर, बिठूर, शिवराजपुर और शिबली सहित कानपुर के जो सीमावर्ती इलाके हैं, वहां अगर किसी को फैक्ट्री, फॉर्म हाउस या बड़ा बंगला बनाने के लिए जमीन लेनी होती थी तो विकास की अनुमति जरूरी होती थी। यदि किसी ने गलती से बिना बताए या छिपाकर खरीद फरोख्त कर भी ली तो विकास का गैंग उस पर हमला कर देता था। इलाके की जो मूल्यवान जमीन या संपत्तियां होती थी। भले ही वह किसी के नाम हो उस पर वह अपना बोर्ड लगा देता था। इसके बदले मालिक को डरा धमकाकर पैसे वसूलता था। प्रॉपर्टी को विवादित बनाकर उसे खरीदना-बेचना ही उसका प्रमुख काम था।

जघन्य अपराध करने वाला दुर्दांत अपराधी था विकास

बुजुर्ग झन्नू बाबा का अंगूठा लगवाने को जालिम ने काट लिया था अंगूठा

विकास ने किसानों की जमीन कब्जाई और उन्हें ऊंचे दामों में बेचा। स्थानीय लोग बताते हैं कि विकास इतना निर्दयी था कि उसके अंदर दया नाम की काई चीज नहीं था वह अपना फायदा चाहता था। गांव में एक बुजुर्ग झन्नू बाबा रहा करते थे। वह अकेले थे, उम्र हो गई थी। उनके पास जमीन भी अच्छी खासी थी। बताते हैं उन्होंने कुछ जेवरात अपने खेत में ही दबा रखे थे। विकास बाबा के पीछे पड़ गया। उसने पेपर पर अंगूठा लगवाने केे लिए उनका अंगूठा ही काट लिया था। एक 72 वर्षीय बुजुर्ग ने बताया कि 1994 में एक किसान विकास को जमीन देने को तैयार नहीं था। यह बात विकास को नागवार गुजरी और उसने उस किसान की हत्या कर दी। पिछले 30 सालों से गैंगस्टर विकास दुबे लोगों को डराता, धमकाता और मनमाने फरमान सुनाता था।

जहर घोलने की सियासत

एक कांग्रेसी नेता ने दी जातिगत उत्पीड़न के मामले को हवा

प्रदेश के एक बड़े कांग्रेसी नेता जितिन प्रसाद ने पार्टी फोरम के बजाय ब्राह्मण चेतना परिषद के जरिए मुद्दे को उठाया। उन्होंने एक पत्र जारी कर आरोप लगाया कि मौजूदा योगी सरकार में लगातार ब्राह्मणों की हत्याएं हुई हैं। पत्र में कहा कि ब्राह्मण उत्पीड़न की घटनाओं को अंजाम देने वालों पर कार्रवाई के बजाय इस सरकार में संरक्षण दिया जा रहा है। कांग्रेस 2019 अंत में भी पार्टी से ब्राह्मणों को जोड़ने की कोशिश कर चुकी है। एक बार फिर कांग्रेस जातिगत आवेश को भुनाकर ब्राह्मणों को अपने पाले में करना चाहती है। एनकाउंटर पर सपा और बसपा सभी ने सवाल उठाया है।

दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता ने टिप्पणी की है कि ‘विकास दुबे कानपुर का (ब्राह्मणों का) रॉबिनहुड बन गया, जैसे कि अतीत में हरि शंकर तिवारी गोरखपुर का बन गया था।’

पूर्व सूचना अयुक्त उप्र एवं वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेन्द्र शर्मा के अनुसार विकास दुबे का मामला थोड़ा भिन्न जरूर है लेकिन किसी तरह की सहानुभूति का जरा भी हकदार नहीं है। आज बहुत से लोग हैदराबाद की किलिंग और दूसरी मुठभेड़ों से जोड़कर दोनों की बराबरी कर रहे हैं, पर दोनों घटनाएं तुलना करने या बराबरी करने लायक हैं नहीं। विकास दुबे और उसके 25-30 गुर्गों ने जिस तरह पुलिस वालों की निर्मम हत्या की, उसके बाद उनकी सजा यही थी जो कोर्ट की बजाय सीधे पुलिस ने दे दी और वाहवाही लूट ली। 3 जुलाई को कानपुर नगर जिले के चौबेपुर थाने के एक गांव में की गई आठ पुलिस वालों की हत्या जिस जघन्य तरीके से की गई, वह कोई दुर्घटना नहीं, एक सोची समझी सामूहिक हत्या थी जिसकी माफी पुलिस ने नहीं दी तो वह ठीक ही था क्योंकि उसकी वर्दी पर दाग लग रहा था। इसमें एक हफ्ते का विलम्ब तक तो लोगों को बर्दाश्त नहीं हुआ था। विकास के लोगों ने एक पुलिस उपाधीक्षक सहित आठ पुलिस कर्मियों को बहुत निर्मम तरीके से मारा, कुएं के पाट पर लाशें रखकर उन्हें जलाकर सबूत मिटाने की कोशिश की और अपनी दुर्दांंतता की मोहर पुलिस की छाती पर लगाने की कोशिश की।

मामूली बातों पर अपने गांव और समुदाय के व्यक्तियों की हत्या करके कोई रॉबिनहुड कैसे बन सकता है? यह सच है कि उसके सभी साथी और शिकार भी ब्राह्मण थे, जिनमें डीएसपी देवेंद्र मिश्र भी शामिल थे जिन्हें घेरकर मार डाला गया था। गैगेस्टर विकास दुबे की रॉबिनहुड की छवि पेश करने वाले लोगों को पुलिस अधिकारी देवेद्र मिश्रा और भाजपा नेता संतोष शुक्ला जैसे ब्रह्मण नेताओ और पीडित परिवार वालों के प्रति कोई संवेदना है कि नहीं, अगर जातिगत चश्में से ही इस मामले को देखना है तो गैंगेस्टर विकास दुबे का शिकार बने यह लोग ब्रह्मण नहीं थे क्या ? इसका जवाब कोई नहीं देना चाहता क्योंकि उससे किसी को कोई​ सियासी फायदा नहीं मिलने वाला।

जाति और धर्म के नाम पर अपने समाज में अपराध की दुनिया में नाम कामाने वाले लोगों में
मुख्तार अंसारी ने किसी मुसलमान को या हरि शंकर तिवारी ने किसी ब्राह्मण को शिकार बनाया हो, यह ढूंढ पाना मुश्किल होगा। इसके इतर, दुबे ने अपना दायरा बढ़ाने की कोशिश नहीं की जिसका अर्थ है कि उसके वसूली के धंधे उसके अपने ही इलाके में सीमित थे। आम तौर पर यही देखा गया है कि ऊंची महत्वाकांक्षा के साथ नेता बने अपराधी अपने इलाके से बाहर कमाए गए पैसे से अपने गांव-क्षेत्र में लोगों को लाभांवित करते हैं। विकास दुबे की रॉबिनहुड की छवि पेश करने वालों को यह समझना चाहिए कि एक जघन्य अपराधी की माहिमा मण्डित कर वह समाज को कैसा आदर्श प्रस्तुत करना चाहते है?

कुछ लोग सरकार बनने के बाद से ही चला रहे हैं ब्राह्मण बनाम ठाकुर का एजेण्डा

क्योंकि यूपी की सियासत में जातीय समीकरणों का बोलबाला हमेशा से रहा है। विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद एक बार फिर प्रदेश में जातिगत राजनीति को हवा मिल रही है। एनकाउंटर को विकास दुबे के ब्राह्राण होने से जोड़ कर देखा जा रहा है। बहसों में कहा जा रहा है कि योगी सरकार के कार्यकाल के दौरान ब्राह्मणों का लगातार उत्पीड़न किया जा रहा है। योगी सरकार को लेकर शुरू से यह धारणा रही है कि इस सरकार में ब्राह्मणों की उपेक्षा की जा रही है। हालांकि, अबतक की चुनावी राजनीति में ब्राह्मण बनाम ठाकुर की इन चर्चाओं का बहुत असर नहीं दिखा। 2017 में ठाकुर समुदाय के योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी 2019 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा को ब्राह्राणों का भरपूर समर्थन मिला। उसी के लिहाज से योगी सरकार ने ब्रह्मण वर्ग के नेताओं और अधिकारियों को खूब महत्व भी मिला। उन्हें मलाईदार पद के साथ प्रमुख पदों पर तैनाती भी दी गई थी। जितना योगी सरकार में ब्रहृमणों को महत्व मिला है उतना किसी और दल की सत्ता काबिज होने पर वह स्थान ब्राह्मणों को नहीं मिला है फिर भी वाद का एजेण्डा चलाया जा रहा है।

इस पूरे मामले को अगर ठीक से समझना है तो इसकी तह में विपक्षी दलों द्वारा चलाये जा रहे ब्राह्मण उत्पीड़न के एजेण्डे को जातिवाद की हवा देकर ब्राह्मणों को अपने पाले में लाने की सियासी कवायद को समझना होगा। सभी विपक्षी राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश में ब्रह्मणों को अपने पक्ष में लाने का कोई अवसर छोडना नहीं चाहते और उसकी नजर हर छोटे—बड़े विवादित मुददे को जातिवाद और धार्मिक दृष्टिकोण से जोड़कर सियासी रंग देने की रहती है जिससे योगी सरकार को चारों तरफ से घेरा जा सके।

योगी की स्वच्छ छवि और बेवाक वाक पटुता के कारण उनकी बढ़ती लोकप्रियता ने उनके सभी राजनीतिक प्रतिद्वंवद्वियों को पीछे छोड दिया हैं। यही वजह है कि अन्य दल जातिवाद के मुददे को उकसा कर भाजपा से उसके मूल वोट बैंक ब्रहृमणों को अलग करने को अवसर के रूप में देख रहे है उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी हिन्दूवादी छवि के लिये तो जाने ही जाते है साथ ही ठाकुरवादी होने के भी आरोप अक़्सर उन पर लगते रहे हैं।

दरअसल योगी आदित्यनाथ जिस गोरखनाथ मंदिर के प्रमुख है वह क्षत्रिय पीठ मानी जाती है। इस बात को लेकर क्षत्रिय और ब्राह्मण वैचारिक मतभेद तो पहले से ही रहे है जोकि दोनों जातियों के धार्मिक चेतना के उन्नत महत्व को दर्शाता है किन्तु इसको अध्यात्मिक या वैचारिक चेतना तक ही सीमित रखना चाहिए जब भी ऐसे विचारों को राजनीतिक रंग दिया जायेगा तो यह सभ्य सामाज में विष घोलने का ही कार्य करेगा,किंतु यह कटु सत्य है कि ब्रह्मण और ठाकुर जातियों में वैचारिक मतभेद रहे है और जब से योगी यूपी के मुख्यमंत्री बने हैं समय—समय पर उनको ठाकुरवाद के नाम पर घेरने की सियासत होती रही है और अब जिस तरह से सोशल मीडिया पर विकास दुबे के एनकाउंटर के तरीक़े पर सवाल उठाए जा रहे हैं उसमें परोक्ष रूप से राजनीतिक दल जातीवाद की आग में घी का कार्य करने से चूकना नहीं चाहते, जहां एक तरफ ‘अपराधियों के साथ ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए।’ की बात हो रही है।

वहीं दूसरी तरफ सियासी दल इस मामलें को ब्रहृमण उत्पीडने के तौर पर प्रचारित करने में लगे है। उन्हें पता है कि इस मामले को जितना तूल दिया जायेगा उसी के सापेक्ष में क्रिया की प्रतिक्रिया के द्वारा दूसरे वर्ग द्वारा मुख्यमंत्री की प्रशंसा भी होगी। इसी का फायदा उठाकर योगी को घेरने वाले मुख्य विपक्षी दल बनने का सपना देख रही कांग्रेस, उत्तर प्रदेश की राजनीति में अहम रोल रखने वाले ब्रह्मणों को अपने पाले में ले जाने का सुनहरा अवसर मान रही है चाहे उनका यह अवसर किसी अपराधी को ही जाति का रोल मॉर्डल क्यों न बना दें।

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