जंगे–आजादी मे ईसाइयों का रोल !…इतने अहमक हैं भाजपायी सांसद?
स्तंभ: मुंबई (उत्तर) से भाजपाई सांसद (लोक सभा) गोपाल चिन्नय्या शेट्टी ने आजादी के अमृत महोत्सव पर कह दिया कि “जंगे–आजादी मे ईसाइयो ने भाग नहीं लिया। वे अंग्रेज थे।” सियासी वर्तुलों मे झंझावात उठा। तेज भी होना चाहिए था। मगर महाराष्ट्र भाजपा के प्रवक्ता माधव भंडारी ने इस उक्ति को नकार दिया। स्वयं शेट्टी ने कहा: “मेरे वाक्य को विकृत कर पेश किया गया है।” फिलहाल क्षति तो हुई है। मगर सार्थक विवेचना की थी योग्य टीवी संवाददाता (न्यूज़ 18) की राका जी ने । तथ्यों के आधार पर किया था। अतः जरूरत है मजबूत समीक्षा की ऐसे अभद्र, असत्य, ओछे, पाखंडी, गैरजिम्मेदाराना राय की जो राष्ट्रविरोधी है। किन्तु 65-वर्षीय गोपाल शेट्टी ने बजाय पश्चाताप के बच निकलने की कोशिश की। हीला हवाला करते रहे। वे पेशे से एक मेकेनिक है जो मरम्मत का काम करते है। अत: आदतन बात को मरोड़ा। बजाय बिगड़ी को सँवारने के। लोक सभा चुनाव मे इन्होंने अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर (कांग्रेस) को हराया था।
अतः अब दस्तावेजी तथा ऐतिहासिक रिश्तों के साथ सच्चाई आनी चाहिये। माना की इन भारतीय ईसाइयों तथा ब्रिटिश शासकों का मजहब एक ही था। मगर राष्ट्र ? वह तो हम सबका है। भारतीय स्वाधीनता संघर्ष में प्रमुख आंदोलनकारी रहीं राजकुमारी बीबीजी अमृत कौर। वे ईसाई थी कपूरथला रियासत की थी। वे लखनऊ विश्वविद्यालय परिसर (बादशाहबाग) में जन्मी (2 फरवरी 1887) थीं। उनके पिता राजा हरनाम सिंह अहलूवालिया ने ईसाई धर्म अपना लिया था। अमृत जी के अग्रज राजा श्री महाराज सिंह थे। वे बंबई प्रदेश के प्रथम भारतीय राज्यपाल रहे, कश्मीर रियासत के प्रधान मंत्री थे और जोधपुर के दीवान थे। लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी थे, क्रिकेटर भी। राजकुमारी अमृत कौर नियमित चर्च जाती थी। नेहरू काबीना मे प्रथम स्वास्थ्य मंत्री (16 अगस्त 1947 से 1957 तक) रहीं। वे महात्मा गांधी की 16 वर्षो तक निजी सचिव रहीं। संविधान सभा की सदस्या भी थीं। वे परदा और बाल विवाह की सख्त विरोधी थी। दांडी नमक सत्याग्रह (1930) मे बापू के साथ जेल मे रहीं। “फिर भारत छोड़ो’’ (1942) मे कैद हुई।
इस भाजपाई सांसद ने डा. एनी बीसेंट का नाम जरूर सुना होगा। यह ब्रिटिश सोशलिस्ट और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की संस्थापिकाओं मे एक रहीं। डॉ बीसेंट भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की अध्यक्ष (1917) थी। वैदिक दार्शनिक जिड्डु कृष्णमूर्ति उनके दत्तक पुत्र थे। इसी भांति ईसाई पादरी चार्ल्स एंड्रयूस ने बापू को दक्षिण अफ्रीका से (1915) मे भारत बुलवाया था ताकि स्वाधीनता संघर्ष तेज हो सके। कैम्ब्रिज में शिक्षित यह स्वाधीनता सेनानी दिल्ली के संत स्टीफंस कॉलेज से जुड़े रहे। रवीन्द्रनाथ टैगोर के सहयोगी थे।
ईसाई स्वाधीनता सेनानियों में खास उदाहरण अल्वा दंपति का है। मारगेट अल्वा के वे सास और ससुर थे। पत्रकार और कोंग्रेसी सांसद जोकिम अल्वा ईसाई दल के संस्थापक थे। उडिपि (मेंगलोर, कर्नाटक) के जोकिम अल्वा मुंबई के शैरीफ भी थे। गुजराती ईसाई वायलट अल्वा से शादी की। वायलट अल्वा राज्यसभा की उप सभापति थीं। केरल के वकील जार्ज जोसेफ मोतीलाल नेहरू के दैनिक “दि इंडिपेंडेंट” और गांधीजी की पत्रिका “यंग इंडिया” के संपादक थे। केरल के वाइकोम सत्याग्रह में जेल गए थे। उनके सहयोगीयों में के. कामराज, सी. राज गोपालाचार्य आदि थे।
मशहूर गांधीवादी अर्थशास्त्री जोसेफ कुमारप्पा तमिलनाडू के थे। मद्रास क्रिश्चन कॉलेज मे पढ़े थे। स्वाधीनता संग्राम के दौरान ग्राम उधोग तथा खादी विकास के कार्यक्रम से जुड़े थे। भारत छोड़ो आंदोलन मे जोसेफ कुमारप्पा साल भर जेल मे रहे। बंगाल के दो ईसाई तो सत्याग्रही ब्राह्मण कुटुंब के थे और राष्ट्रीय काँग्रेस मे सक्रिय थे। नाम था कालीचरण बंधोपध्याय और ब्रम्हबांघव उपाध्याय जो स्वामी विवेकानंद के सहपाठी थे। कुलीनविप्र कालीचरण को ब्रिटिश हुकूमत ने राजद्रोह मे कैद कर लिया था। उनका निधन जेल मे ही हो गया था।
अक्कमा (दीदी) चेरियन त्रावंकोर मे स्कूल अध्यापिका थी। प्रिंसिपल रहीं फिर नौकरी छोडकर सत्याग्रही बनी। जेल की सजा भुगती। प्रमुख ईसाई कृषि वैज्ञानिक केरलवासी टाईटस थेवरयूंगडिल बापू के निकटतम सहयोगी रहे। साबरमती आश्रम की गौशाला के प्रबन्धक रहे। बापू उनके केरला वाले घर जा चुके है। टाईटस की पुस्तक “मेरे सपनों का भारत” आज़ाद हिन्द की रूपरेखा पर लिखी मशहूर रचना थी। प्रातः सत्संग, भजन और चरखा कातने मे उनका जीवन बीतता था। उनके पास केवल दो जोड़ी कपड़े थे। उनकी पत्नी अन्नम्मा टाईटस ने अपने सारे गहने साबरमती आश्रम को दे दिया था। वे दोनों दांडी कूच और धरसाना नमक गोदाम पर धावा बोलने के लिए याद किए जाते हैं।
सबसे ज्यादा मशहूर विदेशी ईसाइयों जो भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के लिए याद किए जाते है, वे हैं गांधी फिल्म के निदेशक रिचर्ड ऐटनबरो और बापू की भूमिका मे रहे बेन किंग्सले। यदि ये भाजपाई सांसद गांधी संग्रालय में जाकर पुस्तकें पढ़ लेता तो उसे पर्याप्त जानकारी हो जाती कि आजादी की जंग में ईसाइयों का क्या योगदान रहा। अतः भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा को विशेष पाठयक्रम चलाना चाहिये ताकि भारत के इतिहास को ये लोग जान सकें। गोपाल शेट्टी को क्या पता कि 31 जनवरी 1954 के पहले हिंदुस्तान मे क्या हुआ था ? यह उनकी जन्मतिथि थी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)