भारत के अहिंसक समृद्धि का रहस्य
स्तम्भ: आज से 200 वर्ष पूर्व तक भी भारत सर्वाधिक समृद्ध देश रहा है। यहाँ के सबसे गरीब इंसान, खेतिहर मजदूर का खुराक यूरोप के किसान से बेहतर था। यह तथ्य कई अध्ययनों से पुष्ट है। इस समृद्धि की कहानी में घर की माता, गोमाता, धरती माता के दिव्य त्रिकोण का विशेष योगदान है। इसमें भी भारतीय नस्ल के गोवंश का वैशिष्ट्य है यह कथन भी विज्ञान सम्मत है।
200 वर्ष पूर्व प्रतिमनुष्य गोवंश का औसत लगभग 10 तो रहा ही होगा। तभी गोवंश ह्त्या की व्यापक कोशिशों के बाद भी यह औसत 1 मनुष्य पर 1 गोवंश का रह गया। अंग्रेजों का मुख्य भोज्य पदार्थ गोमांस था। 1 लाख ब्रिटिश फौजी थे। 1860 से 1940 तक की अवधि मे प्रतिदिन 3 फौजी पर 1 गोवंश की ह्त्या की व्यवस्था दी गई।
फलतः लगभग 40 करोड़ गोवंश का नुकसान तो भारत को हुआ ही होगा। भारत की भुक्ति-मुक्ति दायिनी गोमाता पर भीषण संकट था। वह स्थिति कमोवेश 1947 के बाद भी चालू ही है।
राम जन्मभूमि आंदोलन के एक विशिष्ट संत श्रद्धेय देवराहा बाबा ने अपने एक भक्त को कहा था देखो बच्चा। गायत्री भारत की वाक् है, गोमाता मनस्वरूपिणी है और गंगा मैया भारत की प्राण है। गोमाता प्रसन्न तो भारत प्रसन्न, और जब गोमाता दुखी तो भारत दुःखी। यह कथन पिछले लगभग 300 वर्षों के आर्थिक दुर्दशा का सार विश्लेषण लगता है।
इस आधार पर कृषि, गोपालन, वाणिज्य की त्रिसूत्री को देखने की जरुरत है और समयानुकूल व्यवस्थित करने की जरुरत है। इसमे गोमाता का संरक्षण-संपोषण, संवर्धन कर श्रीघ्रातशीघ्र 1947 की स्थिति को लक्ष्य रखकर प्रयास की जरुरत है। आज 8 मनुष्य पर 1 गोवंश की स्थिति है इसे बढ़ाकर आजादी की स्थिति याने 19 करोड़ से बढ़ाकर 132 करोड़ तक ले जाने की जरुरत है।
“इसके लिये 2016 मे संतों, विशेषज्ञों, गोपालको से परामर्श करते हुए गोमाता की ओर से निर्देश पत्र बना था। उस पर विचार एवं क्रियान्वयन सरकार और समाज दोनों से हो यह अपेक्षित है। वह निर्देश पत्र आपके समक्ष है।”