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भदोही की बुनाई में झलकी भारत की आत्मा, दुनिया हुई नतमस्तक

कजाखस्तान की ग्रैंड मस्जिद में बिछी भारत की आस्था

गंगा तट की पावन मिट्टी में बसे भदोही ने वह कर दिखाया, जो विश्व के औद्योगिक दिग्गजों के लिए असंभव था। हजारों भारतीय बुनकरों की तपस्या से जन्मी 12,464 वर्ग मीटर में फैली विश्व की सबसे बड़ी हैंड टफ्टेड कालीन आज कजाखस्तान की ग्रैंड मस्जिद में बिछी है—जहां हर धागे में भारतीय आत्मा की आभा झिलमिला रही है। रवि पाटोदिया और उनकी टीम ने न केवल कला का चमत्कार रचा, बल्कि “मेक इन इंडिया” की परिकल्पना को जीवंत कर दिया। यह कालीन डॉलर में नहीं, भावना में गूंथी गई है—आस्था, सौंदर्य और श्रम की ऐसी रचना, जिसने भारत का नाम गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में स्वर्णाक्षरों में अंकित कर दिया। भदोही का यह गौरव केवल एक निर्यात की कहानी नहीं, बल्कि यह संदेश है कि आत्मनिर्भर भारत की असली ताकत उसके बुनकरों के हाथों और उनके अटूट विश्वास में बसती है।

सुरेश गांधी

कभी रामायण में राम ने कहा था— “कर्मण्येवाधिकारस्ते”, और भदोही के बुनकरों ने उस वचन को अपने करघों पर उतार दिया। जब पूरी दुनिया महामारी की भयावह छाया में सिमट रही थी, तब उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर भदोही में हजारों हाथ नई आशा का इतिहास बुन रहे थे। वह इतिहास था – विश्व की सबसे बड़ी हैंड टफ्टेड कालीन का निर्माण, जो आज कजाखस्तान की ग्रैंड मस्जिद में बिछी है, और जिसे गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड ने “विश्व की सबसे बड़ी हैंड टफ्टेड कालीन” के रूप में दर्ज किया है। यह केवल एक कालीन नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का विस्तार है – जिसमें परिश्रम, सौंदर्य, आध्यात्म और सांस्कृतिक एकता के धागे एक-दूसरे में गूंथे हुए हैं। भदोही की इस उपलब्धि ने “मेक इन इंडिया” को एक नया अर्थ दिया है। यह केवल आर्थिक उपलब्धि नहीं, बल्कि सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। आज जब यह कालीन अस्ताना मस्जिद में बिछी है, तो उसके साथ भारत का नाम भी मध्य एशिया की प्रार्थनाओं में गूंज रहा है। भदोही ने फिर साबित कर दिया — भारत के करघे केवल वस्त्र नहीं बनाते, वे इतिहास रचते हैं।

कजाखस्तान की ग्रैंड मस्जिद में बिछी यह कालीन हर दिन हजारों श्रद्धालुओं के कदमों के नीचे आती है, पर हर कदम के साथ भारत का सम्मान और ऊंचा होता है। यह केवल कालीन नहीं, यह भारत की बुनावट में गूंथा गौरव है — जहां धागा-धागा राष्ट्र की प्रतिष्ठा की कहानी कहता है। गंगा किनारे बसे भदोही की पहचान सदियों से “कालीन नगरी” के रूप में रही है। यहां की हवा में ऊन की खुशबू है, और हर गली में सुई-धागों की लय सुनाई देती है। इन्हीं करघों से निकली वह कालीन, जिसने न केवल मस्जिद की ज़मीन को सजाया, बल्कि भारत का मानचित्र भी गौरव से रंग दिया। भदोही की पाटोदिया एक्सपोर्ट कंपनी के रवि पाटोदिया और उनके एक हजार कारीगरों ने छह महीने तक दिन-रात मेहनत कर 12,464.28 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैली यह कालीन तैयार की। कालीन का हर इंच भक्ति की तरह बुना गया, हर धागा जैसे कोई प्रार्थना हो, और हर रंग में भारतीयता की आभा झिलमिलाती हो। इतनी विशाल कालीन को तैयार करना ही चुनौती नहीं थी, बल्कि उसे मस्जिद में बिछाना किसी तपस्या से कम नहीं था। इसे 125 टुकड़ों में बनाया गया और फिर भदोही व दुबई के 50 विशेषज्ञ बुनकरों ने 50 दिनों की अथक मेहनत से कजाखस्तान की राजधानी अस्ताना की विशाल मस्जिद में बिछाया। जब वह आख़िरी टुकड़ा बिछा, तो मस्जिद के संगमरमर फर्श पर मानो भारतीय कौशल की इबादत उतर आई।

कजाखस्तान की सबसे बड़ी यह मस्जिद जब अपने पूरे सौंदर्य में जगमगाई, तो उसके भीतर भारत की कला और संस्कृति का स्पंदन गूंज उठा। इस कालीन की कीमत 15 लाख अमेरिकी डॉलर यानी करीब 13 करोड़ 20 लाख रुपये आँकी गई, लेकिन इसकी वास्तविक कीमत उस तप, उस धैर्य और उस कला में है, जो पीढ़ियों से भदोही के बुनकरों की रगों में बहती आई है। इस कालीन में पूरी तरह ऊन का प्रयोग किया गया है। इसका 70 मीटर व्यास का केंद्रीय चक्र (मेडलियन) ईरानी परंपरा की प्रेरणा से निर्मित है, जिसमें मस्जिद के आठ विशाल स्तंभों की दिशा और सौंदर्य को ध्यान में रखते हुए डिजाइन बुना गया। यह डिज़ाइन “जन्नत-उल-फिरदौस” — स्वर्ग के बगीचों से प्रेरित है, और इसलिए जब इस पर नजर पड़ती है, तो लगता है जैसे धरती पर कोई आसमानी चित्र उकेरा गया हो। जब 2021 में कजाखस्तान की इस मस्जिद के लिए कालीन बनाने का प्रस्ताव रखा गया, तो चीन और अमेरिका जैसे देशों की प्रतिष्ठित कंपनियों ने इसे असंभव बताकर हाथ खड़े कर दिए। पर भदोही ने कहा — “हम कर दिखाएंगे” और भारत की धरती के उन साधारण दिखने वाले बुनकरों ने वह कर दिखाया, जिसे दुनिया असंभव मान रही थी। रवि पाटोदिया ने इस प्रस्ताव को चुनौती की तरह स्वीकारा। उन्होंने अपनी टीम से कहा — “यह केवल ऑर्डर नहीं, यह अवसर है भारत की आत्मा को विश्व के फर्श पर बिछाने का।”

कालीन तैयार होने के बाद मार्च 2025 में गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड के लिए आवेदन किया गया। अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने इस कालीन की हर तकनीकी और कलात्मक बारीकी का अध्ययन किया। और फिर 19 सितंबर 2025 को यह गौरवपूर्ण घोषणा हुई कि भदोही की पाटोदिया एक्सपोर्ट कंपनी विश्व की सबसे बड़ी हैंड टफ्टेड कालीन की निर्माता है। यह वही पल था जब हजारों बुनकरों की आंखों में नमी थी — पर वह नमी गर्व की थी, क्योंकि उन्होंने करघे पर केवल धागे नहीं बुने थे, उन्होंने भारत का स्वाभिमान बुना था। इससे पहले विश्व की सबसे बड़ी हैंड नॉटेड कालीन (जो हाथ से बुनी जाती है) का रिकॉर्ड यूएई की शेख जायद ग्रैंड मस्जिद में ईरान कालीन कंपनी के नाम था – जिसकी लंबाई 5,630 वर्ग मीटर थी। भदोही की कालीन ने उसे लगभग दोगुना पार करते हुए नया इतिहास रचा। यानी अब जब विश्व मानचित्र पर “लार्जेस्ट हैंड टफ्टेड कारपेट” लिखा जाएगा, तो उसके साथ भारत का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा।

भदोही के एक बुनकर ने मुस्कराते हुए कहा — “हमने ऊन में आस्था, रंगों में विश्वास, और धागों में आत्मा बुन दी थी।” यह वाक्य उस पूरी कहानी का सार है। भदोही के करघों से निकली हर कालीन एक जीवंत दस्तावेज़ होती है — जहां परंपरा और आधुनिकता हाथ मिलाती हैं, जहां मेहनत और कला का समागम होता है। यह कालीन केवल एक फर्श पर बिछा कपड़ा नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक संवाद है — भारत और कजाखस्तान के बीच, पूर्व और पश्चिम के बीच, हाथ और दिल के बीच। इस कालीन में गूंथी गई हर रेखा उस अदृश्य बंधन की तरह है, जो बताती है कि कला की कोई भाषा नहीं होती — उसका स्वर सार्वभौमिक होता है।

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