प्रदेश ने बढ़ाए ग्रीन एनर्जी की ओर कदम
देहरादून ब्यूरो
प्रदेश की पुष्कर सिंह धामी सरकार के प्रयासों से उत्तराखंड सौर ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में आने वाले दिनों में नई ऊंचाइयां छुएगा। साथ ही रोजगार के अधिक अवसर भी सृजित होंगे। मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना में 20 से 200 किलोवाट क्षमता के सौर ऊर्जा सयंत्र स्थापित करने में युवा जिस तरह से रुचि दिखा रहे हैं, उससे इस संभावना को बल मिला है। योजना में बीते 11 माह में 839 आवेदन आए। अभी तक 297 आवेदकों को एलओए (लैटर आफ आथराइजेशन) जारी किए जा चुके हैं। इससे राज्य में 224 करोड़ रुपये का निवेश अनुमानित है। योजना का क्रियान्वयन उरेडा कर रहा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर गत वर्ष 13 मार्च को मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना को संशोधित किया गया था। इसके बाद 20 से लेकर 200 किलोवाट तक के सौर ऊर्जा सयंत्रों की स्थापना को युवा निरंतर आवेदन कर रहे हैं।
13 मार्च 2023 से पहले इस योजना में 3.43 मेगावाट क्षमता के सयंत्र स्थापित होने से 13.6 करोड़ का निवेश हुआ था, जिसके परिणाम स्वरूप 44.94 मेगावाट की क्षमता विकसित होगी। सरकार ने सौर ऊर्जा सयंत्र आवंटन से 246 मेगावाट संचयी क्षमता का लक्ष्य रखा है। साथ ही हरित ऊर्जा उत्पादन से राष्ट्रीय स्तर पर नेट जीरो का लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में भी कदम बढ़ाए जा सकेंगे। खुद मुख्यमंत्री पुष्कर्र ंसह धामी कहते हैं कि प्रदेश ग्रीन एनर्जी प्रोडक्शन के साथ ही ग्रीन इकोनामी की दिशा में भी आगे बढ़ रहा है। मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रही है। ज्यादा से ज्यादा युवा सौर ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में आगे आएं, इसके लिए योजना के तमाम मानकों को सरल किया गया है।
अब पिरुल की जैविक खाद से उगेगा मशरूम
उत्तराखंड में चीड़ के जंगलों से प्रतिवर्ष निकलने वाला 23.66 लाख मीट्रिक टन पिरुल यानी चीड़ की पत्तियां वनों में आग के फैलाव का कारण नहीं बनेंगी। इनसे जैविक खाद तैयार होगी तो इसके भूसे से मशरूम का उत्पादन भी हो सकेगा। साथ ही पौधे उगाने को कोकोपिट की तरह चीड़पाइनपिट उपलब्ध होगा। देहरादून के गैर सरकारी संगठन कृषिवन रिसर्च सेंटर ने पिरुल के उपयोग के इन तीनों ही नए प्रयोग में सफलता पाई है। सेंटर का दावा है कि पिरुल से बनी जैविक खाद मानकों पर खरी उतरी है। यद्यपि, अब वन अनुसंधान संस्थान देहरादून और आइआइटी रुड़की से भी इसका परीक्षण कराया जा रहा है। यही नहीं, पिरुल के नए उपयोग के इन प्रयोग के परिणाम का ब्योरा सरकार को भी उपलब्ध कराया जाएगा। 71.05 प्रतिशत वन भूभाग वाले उत्तराखंड के कुल वन क्षेत्र के लगभग 16 प्रतिशत हिस्से में चीड़ के जंगल हैं। एक आकलन के अनुसार प्रतिवर्ष ही इन जंगलों में 23.66 लाख मीट्रिक टन पिरुल गिरता है। गर्मियों में सूखने पर यही पिरुल वनों में आग के फैलाव का बड़ा कारण बनता है। साथ ही जमीन पर पिरुल की परत बिछी होने से वर्षा का पानी भूमि में नहीं समा पाता। इन सबके मद्देनजर पिरुल के उपयोग पर जोर दिया जा रहा है। इससे विद्युत उत्पादन के साथ ही कोयला बनाने समेत कुछ अन्य प्रयोग हुए हैं। बावजूद इसके यह अधिक रंग नहीं जमा पाए हैं।
ऐसे में पिरुल के उपयोग तलाशने पर जोर दिया जा रहा था, जो अधिक प्रभावी व सुलभ हों। इसी के दृष्टिगत कृषिवन रिसर्च सेंटर, धूलकोट (देहरादून) ने कदम बढ़ाए। सेंटर से जुड़े विशेषज्ञ एवं पूर्व वनाधिकारी मनमोहर्न ंसह बिष्ट के अनुसार पिरुल से जैविक खाद, इसके भूसे में मशरूम का उत्पादन और चीड़पाइनपिट बनाने के प्रयोग पर छह माह पहले कसरत प्रारंभ की गई। पिरुल को कटर से काटकर पल्पलाइजर में इसे महीन किया गया और तय प्रक्रिया से जैविक खाद बनाई गई, जो 45 दिन में तैयार हो गई। बिष्ट ने बताया कि पिरुल जैविक खाद की एक निजी लैब से जांच कराई गई। इसमें कार्बन, फास्फोरस, पोटासर्, जिंक, मैंगनीज, आयरन व कापर तय मानकों के अनुरूप पाए गए। उन्होंने कहा कि वन अनुसंधान संस्थान और आइआइटी को भी इसके नमूने जांच को भेजे जा रहे हैं। इससे और अधिक स्पष्टता आएगी। उन्होंने बताया कि पिरुल को पीसकर बने भूसे में मशरूम भी अच्छे से उगी है। साथ ही चीड़पाइनपिट भी ठीक उसी तरह बनाए गए हैं, जैसे नारियल के छिलके से तैयार किए जाते हैं।
संस्था के सचिव केशव शर्मा के अनुसार यह तीनों प्रयोग सफल रहने से पिरुल का उपयोग आर्थिकी संवारने और पर्यावरण संरक्षण में अधिक कारगर होगा। जैविक खाद, मशरूम उत्पादन व चीड़पाइनपिट में बड़े पैमाने पर पिरुल का उपयोग होने से स्थानीय आर्थिकी संवरेगी। इसके साथ ही जंगल से पिरुल हटने पर वहां नई वनस्पतियां उगेंगी और वर्षा का पानी भी भूमि में समाएगा। पूर्व वनाधिकारी बिष्ट बताते हैं कि पिरुल से जैविक खाद बहुत सस्ते में तैयार होगी। इसके निर्माण में चार से पांच रुपये प्रति किलो की लागत आएगी। वैसे भी खुले बाजार में जैविक खाद 10 रुपये प्रति किलो है। इसी प्रकार मशरूम उत्पादन के लिए भूसे के लिए अन्य प्रदेशों पर निर्भरता खत्म होगी। भूसा 10 से 12 रुपये प्रति किलो है, जबकि पिरुल का भूसा तैयार करने में अधिकतम चार रुपये की लागत आएगी।
डेढ़ साल में 2021 वन आरक्षियों की भर्ती कर बनाया रिकार्ड
पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील 71.05 प्रतिशत वन भूभाग वाले उत्तराखंड में वनों की सुरक्षा का घेरा अब अधिक मजबूत होगा। इस कड़ी में सरकार ने फ्रंटलाइन वर्कर के रूप में वन आरक्षियों को महत्व देते हुए डेढ़ साल में 2021 युवाओं को इन पदों पर नौकरी दी है। इतनी कम समयावधि में यह नियुक्तियां कर उत्तराखंड ने रिकार्ड बनाया है। देश के किसी भी राज्य के नाम डेढ़ साल में वन आरक्षी पदों पर भर्ती का ऐसा रिकार्ड नहीं है। इसके अलावा वन दारोगा, रेंजर और कनिष्ठ सहायकों समेत अन्य पदों को भी शामिल कर लें तो पिछले ढाई साल में अकेले वन विभाग में 2528 पदों पर नियुक्तियां हुई हैं। वन भूभाग अधिक होने के कारण खास से लेकर आम तक सभी का वन क्षेत्रों से नाता पड़ता है। भौगोलिक दृष्टि से सबसे बड़ा विभाग होने के कारण वहां रोजगार की भी अधिक अपेक्षा रहती है। यही नहीं, पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिगत वनों की सुरक्षा और संरक्षण भी आवश्यक है। इसे देखते हुए धामी सरकार के सामने विभाग में समय पर भर्तियां कराने की चुनौती थी, लेकिन इसके लिए गंभीरता से प्रयास किए गए और रिकार्ड समय में वन आरक्षी पदों पर नियुक्तियां हुईं। यह रिकार्ड राज्य में 23 वर्षों में हुई भर्ती बल्कि दूसरे राज्यों में वन आरक्षी भर्ती करने में सबसे अव्वल है। इसके पीछे सरकार की पारदर्शी नीति और युवाओं के हित में लिए गए निर्णय शामिल हैं। उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष जीएस मर्तोलिया के अनुसार डेढ़ साल में दो चरणों में वन आरक्षी के पदों पर भर्ती की गई। पहले चरण में 1129 और दूसरे चरण में 892 युवाओं को इन पदों पर नियुक्ति मिली।
15 हजार से ज्यादा लोगों को मिल चुकी नौकरी
धामी सरकार इससे पहले केवल एक साल में यूकेपीएससी से 6635 अधिकारियों और समूह ग के पदों पर 7644 युवाओं को पुलिस दूरसंचार, रैंकर्स, आबकारी सिपाही, पशुपालन, रेशम, शहरी विकास, वन विभाग, कृषि, पेयजल निगम, शिक्षा विभाग में एलटी, विभिन्न विभागों में सहायक लेखाकार लेखाकार, अनुदेशक, कार्यशाला अनुदेशक, वाहन चालक, सचिवालय रक्षक, मत्स्य विभाग में नौकरी देकर रिकार्ड बना चुकी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि सरकार युवाओं को प्राथमिकता के आधार पर काबलियत के अनुसार रोजगार दे रही है। युवाओं को समय पर नौकरी मिले, इसका पूरा ध्यान रखा जा रहा है। आयोग को तय सारिणी के अनुसार भर्ती कराने से लेकर परिणाम जारी करने के निर्देश दिए गए हैं। अब तक हुई भर्ती परीक्षाएं और परिणाम पारदर्शिता और समयबद्ध ढंग से जारी हो रहे हैं।