सुप्रीम कोर्ट ने नवजात बच्चे की हत्या की आरोपी महिला को किया बरी, कहा- उसके खिलाफ कोई निर्णायक सबूत नहीं
नई दिल्ली : अपनी नवजात बच्चे की हत्या करने के लिए ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराई गई एक महिला को बरी कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि महिला के खिलाफ अपराध को साबित करने के लिए कोई निर्णायक सबूत नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी को आजीवन कारावास की सजा सुनाने के लिए उचित सबूतों की आवश्यकता होती है और यह लापरवाह तरीके से नहीं किया जा सकता है।
बता दें कि महिला ने कथित तौर पर एक सह-ग्रामीण के साथ शारीरिक संबंधों के बाद गर्भ धारण कर लिया था। इसके बाद महिला ने कथित तौर पर नवजात की हत्या कर दी थी। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने पीड़िता की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा था। इसी को लेकर पीड़िता ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के 2010 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसपर शीर्ष अदालत ने सुनवाई की।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने कहा कि एक महिला पर बिना किसी उचित सबूत के एक बच्चे की हत्या करने का अपराध थोपना, सिर्फ इसलिए कि वह गांव में अकेली रह रही थी, सांस्कृतिक रूढ़ियों और लैंगिक पहचान को मजबूत करता है।
कोर्ट ने आगे कहा, ‘निजता का अधिकार अनुल्लंघनीय है। यह स्पष्ट है कि बिना किसी ठोस आधार के उस पर दोष लगाया गया है क्योंकि उसके और डबरी में पाए गए मृत बच्चे के बीच किसी भी प्रकार का कोई संबंध स्थापित नहीं किया जा सका है। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘निष्कर्ष केवल इस आधार पर निकाला गया है कि दोषी-अपीलकर्ता एक अकेली रहने वाली महिला थी और गर्भवती थी।
इसमें कहा गया है कि यह पूरी तरह से एक महिला की निजता के दायरे में है कि वह कानून के दायरे में यह निर्णय ले कि उसे बच्चा पैदा करना है या नहीं या अपनी गर्भावस्था को समाप्त करना है या नहीं। किसी भी गवाह ने दोषी-अपीलकर्ता को मृत बच्चे को डबरी में फेंकते नहीं देखा है। अभियोजन पक्ष द्वारा रिश्ते का कोई भी निर्णायक सबूत सामने पेश नहीं किया गया है।
दोषी के बयान पर संदेह करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया गया है। कोर्ट ने आगे कहा कि उपरोक्त चर्चा को देखते हुए, हम पाते हैं कि दोषी-अपीलकर्ता के खिलाफ दर्ज दोषसिद्धि पूरी तरह से केवल अनुमान पर आधारित है। रिकॉर्ड पर मौजूद वास्तविक सबूत अभियोजन पक्ष के मामले को उचित संदेह से परे स्थापित करने में विफल रहे हैं। पीठ ने कहा, ‘हम यह देखने के लिए बाध्य हैं कि उच्च न्यायालय ने बिना कोई ठोस कारण बताए निचली अदालत के आजीवन कारावास की सजा देने के विचार की पुष्टि कर दी है।’