देश के 52 शक्तिपीठों में से एक है मां शारदा देवी का मंदिर, यहां जाए बिना अधूरी है मां की आराधना
मैहर : हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि का खास महत्व है। मां दुर्गा की उपासना के लिए साल में चार बार नवरात्रि मनाई जाती है, दो गुप्त नवरात्रि और दो प्रत्यक्ष (चैत्र और शारदीय) नवरात्रि (Navratri 2023) होती है। हिंदू धर्म में नौ दिन के नवरात्रों को बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है. इसमें नौ दिनों तक व्रत रखने के साथ ही माता के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है. साल के अंत में आने वाले शारदीय नवरात्र इस बार 15 अक्टूबर से शुरू होने जा रहे हैं और इनका समापन 24 अक्टूबर को होगा.
विश्व प्रसिद्ध मां शारदा देवी का मंदिर मध्यप्रदेश के सतना जिले के मैहर में है. यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है, जो विंध्य पर्वत श्रेणी के मध्य त्रिकूट पर्वत पर स्थित है. ऐसी मान्यता है कि मां शारदा की प्रथम पूजा आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी. इसका उल्लेख पुराणों में भी आया है. यहां आने वाले भक्त मां शारदा देवी के दर्शन के लिए 1063 सीढ़ियां चढ़कर मंदिर तक पहुंचते हैं. हालांकि, रोप-वे की सुविधा भी उपलब्ध है. मान्यता है कि मां शारदा देवी ने आल्हा की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अमरता का वरदान दिया था. आल्हा द्वारा आज भी हर दिन सुबह मां की प्रथम पूजा करने के अलग-अलग प्रमाण मंदिर में देखने को मिलते हैं. मां शारदा देवी परिक्षेत्र में आल्हा का मंदिर भी बना है, जहां उनका अखाड़ा, उद्यान, तालाब मौजूद हैं.
धर्मग्रंथों के मुताबिक, राजा दक्ष प्रजापति की इच्छा के विरुद्ध उनकी पुत्री सती ने भगवान शिव से विवाह किया था. एक बार राजा दक्ष ने अपनी प्रजा के कल्याण की कामना से यज्ञ कराया. इसमें ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र समेत अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन भगवान शिव को नहीं बुलाया. इससे नाराज होकर माता सती यज्ञ स्थल पर पहुंचीं और अपने पिता दक्ष से शिव को आमंत्रित न करने का कारण पूछा. इस पर राजा दक्ष ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे. अपने पति के अपमान से दुखी होकर माता सती ने यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दे दी.
भगवान शंकर को जब इस बारे में पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया. वे सती के शरीर को लेकर तांडव करने लगे. ऐसे में ब्रह्मांड को भगवान शिव के क्रोध से बचाने विष्णु ने सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया. तांडव नृत्य के दौरान जहां भी माता सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ. माना जाता है कि मैहर में माता का हार गिरा था. इस वजह से यहां का नाम माईहार पड़ा था, जो अब मैहर हो गया है.
ऐतिहासिक तथ्यों की मानें तो आल्हाखंड के नायक आल्हा-उदल सगे भाई थे. दोनों मां शारदा के अनन्य उपासक थे. आल्हा-उदल ने सबसे पहले जंगल के बीच मां शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी. इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 साल तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था. माता ने उन्हें अमर होने का आशीर्वाद दिया था. मां की नगरी में आल्हा की ख्याति आज भी फैली हुई है. आल्हा के मंदिर परिक्षेत्र में आल्हा उद्यान बना है. यहां कई प्रकार की औषधियों के वृक्ष लगाए गए हैं. यहीं पर वह अखाड़ा बना है, जहां आल्हा और उदल व्यायाम किया करते थे. माना जाता है कि आल्हा का दर्शन किए बिना मां शारदा की आराधना अधूरी ही रहती है।