दस्तक ब्यूरो, देहरादून
चमोली जिले के जोशीमठ में भूधंसाव पर जो रिपोर्ट सामने आई है, वह चौंकाने वाली है। जहां वैज्ञानिक संस्थानों की रिपोर्ट में कहा गया है कि जोशीमठ पर नए भारी निर्माण न किए जाएं, रिपोर्ट में पूरे जोशीमठ के धंसने की आशंका को नगण्य करार दिया गया है। वहीं राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) की रिपोर्ट के अनुसार जोशीमठ में दरारें 100 फीट से अधिक गहराई तक फैली हुई हैं। रिपोर्ट में कुछ जगहों के 3 फीट से अधिक की गहराई तक धंसने और 1.4 मीटर तक खिसकने की बात का भी जिक्र है। जोशीमठ पर हाल ही में जारी राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जोशीमठ क्षेत्र को नो न्यू कंस्ट्रक्शन जोन घोषित किया जाना चाहिए। पोस्ट डिजास्टर नीड असेसमेंट (पीडीएनए) ने भी अपनी रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया है। रिपोर्ट में मोरेन क्षेत्र (ग्लेशियर की ओर से लाई गई मिट्टी) में बसे जोशीमठ की जमीन के भीतर पानी के रिसाव के कारण चट्टानों के खिसकने की बात सामने आयी है जिसके कारण वहां भूधंसाव हो रहा है। उधर, हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि जोशीमठ शहर के कुछ क्षेत्र तीन से अधिक फीट में धंस गये हैं और 1.4 फीट तक खिसक गये हैं। एनजीआरआई की यह रिपोर्ट जोशीमठ की एक भयावह तस्वीर को दिखा रही है। एनजीआरआई एक वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की एक अनुसंधान प्रयोगशाला है, ने जोशीमठ धंसाव पर अपनी 43 पेज की रिपोर्ट में दावा किया है कि शहर के कुछ क्षेत्र 3 फीट से अधिक तक लंबवत में धंस गए हैं और 1.4 फीट तक खिसक गए हैं।
एनजीआरआई हैदराबाद की विस्तृत जांच रिपोर्ट के अनुसार जोशीमठ में भूधंसाव की जो स्थिति सतह के ऊपर नजर आ रही है, वह जमीन के भीतर भी पाई गई है। अध्ययन में जोशीमठ के एक बड़े भूभाग को 20 से 30 मीटर तक की गहराई में उच्च जोखिम वाले जोन में दर्शाया है। एनजीआरआई की रिपोर्ट के मुताबिक जोशीमठ में भूधंसाव वाले क्षेत्रों को उच्च जोखिम और मध्यम जोखिम के दो जोन में बांटा है। इस र्जोंनग के मुताबिक जोशीमठ के प्रमुख क्षेत्र (करीब 30 प्रतिशत) को 20 से 30 मीटर तक की गहराई में भूधंसाव के प्रमाण मिले हैं। लिहाजा, इस भाग को उच्च जोखिम वाला बताया है। इस जोन में एक छोटा भाग बदरीनाथ रोड का भी बताया है। इसके अलावा जमीन के भीतर, जहां 15 मीटर तक गहराई में भूधंसाव के प्रमाण मिले हैं, करीब 20 प्रतिशत भाग है। एनजीआरआई की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तरमुखी जोशीमठ में ढाल और बोल्डर एक ही दिशा में झुक रहे हैं और इसी के अनुरूप खिसक या धंस रहे हैं। अध्ययन में बताया है कि दिसंबर 2022 से जनवरी 2023 के बीच यह पूरा क्षेत्र छह सेंटीमीटर से अधिक खिसका है। जमीन पर इसका असर कुछ जगह एक मीटर तक के अंतर के रूप में भी दिखा है। धंसाव की यह स्थिति लंबाई व ऊंचाई दोनों तरह से देखने को मिली है। नालों और जलधाराओं के निकट जोखिम अधिक पाया गया है। इसके चलते कई धाराएं गायब हो गईं या उन्होंने अपना रास्ता बदल दिया।
उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) ने नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हाइड्रोलाजी (एनआइएच) की रिपोर्ट को भी सार्वजनिक किया है। इसमें जेपी कालोनी और जोशीमठ के अन्य क्षेत्रों में फूटे पानी के स्रोत के साथ ही जलविद्युत परियोजना का निर्माण कर रही एनटीपीसी की साइट के पानी के परीक्षण के तथ्य शामिल हैं। रिपोर्ट के मुताबिक जेपी कालोनी में तेज बहाव के साथ फूटे झरने की उत्पत्ति सुनील वन और औली क्षेत्र को बताया गया है। पानी के आइसोटोप्स की जांच में पाया गया गया कि एनटीपीसी की साइट व जेपी साइट व जोशीमठ के अन्य क्षेत्र के स्रोत के पानी में भिन्नता है। ऐसी संभावना व्यक्त की गई है कि जमीन के भीतर किसी अवरोध के कारण कहीं पर पानी का अस्थायी भंडार तैयार हो गया, जो किसी दबाव के कारण फट गया और कमजोर सतह वाले भाग से बाहर झरने के रूप में फुट पड़ा। मोटे तौर पर अनुमान लगाया जा सकता है कि यह भंडारण 10.66 मिलियन लीटर का होगा और इसे जमा होने में 12 से 15 माह का समय लगा होगा। पूर्व के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2022 में 24 घंटे के भीतर जोशीमठ क्षेत्र में 190 मिलीमीटर की वर्षा रिकार्ड की गई थी। यह भी भंडारण का एक कारण हो सकता है।
विज्ञानियों के मुताबिक भूधंसाव भूजल की एक आम भूयांत्रिक और बहू-तकनीकी परिणामों में से एक है। यह धंसाव कुछ सेंटीमीटर से लेकर कुछ मीटर तक हो सकता है। इस प्रकरण में यह 14.5 मीटर तक पाया गया है क्योंकि, जोशीमठ के भूगोल के साथ अपनी एक खामी पहले से विद्यमान है क्योंकि, पूरा क्षेत्र पहाड़ी ढलान के बीच एक पुरातन भूस्खलन के भंडार पर बसा है। जोशीमठ में भूधंसाव के असल कारणों की पड़ताल और समाधान सुझाने के लिए सरकार ने जो जिम्मेदारी विभिन्न विज्ञानी संस्थानों को सौंपी थी, उनकी रिपोर्ट अब सार्वजनिक कर दी गई है। जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (जीएसआई) की जांच पर रिपोर्ट पर गौर करें तो विज्ञानियों ने भूधंसाव की स्थिति के इतिहास और वर्तमान दोनों ही परिस्थितियों पर विस्तृत अध्ययन किया है। हालिया अध्ययन में संस्थान के विज्ञानियों ने पाया कि कुल 81 दरारों में से 42 दरारें नई हैं, जोकि दो जनवरी 2023 से पूर्व की हैं। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया है कि दरारों की स्थिति अब स्थिर है।
जीएसआई ने भी नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनजीआरआई) व वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की भांति इस बात का उल्लेख किया है कि जोशीमठ का भूभाग पुरातन भूस्खलन के ढेर पर बसा है। इसमें ढीले मलबे के साथ विशाल बोल्डर भी हैं। ये बोल्डर ढालदार क्षेत्र में ढीले मलबे में धंसे हैं। धरती का गुरुत्वाकर्षण बल इनकी स्थिरता के विपरीत काम करता है। दूसरी तरफ इसी भूभाग पर समय के साथ शहरीकरण का अनियंत्रित भार भी पड़ा है, जिसके चलते भूधंसाव की जो प्रवृत्ति कई दशक से गतिमान थी, उसमें आंशिक तेजी आ गई है। जांच रिपोर्ट के मुताबिक, 42 नई दरारों में से अधिकांश सुनील गांव, मनोहर बार्ग ंसहधार और मारवाड़ी क्षेत्र में हैं। इन्हें प्रमुख रूप से 50 से 60 मीटर बड़े भूभाग पर अधिक देखा जा सकता है। जीएसआई की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि जोशीमठ का अधिकांश भूभाग ढालदार है। यहां 11 प्रतिशत भूभाग 45 डिग्री से अधिक ढाल वाला पाया गया है, जबकि आठ प्रतिशत भूभाग 40 से 45 डिग्री के ढाल वाला है। अधिक ढाल वाले क्षेत्रों में भारी निर्माण से भूधंसाव का खतरा बना रहेगा क्योंकि, जोशीमठ क्षेत्र की जमीन की क्षमता को लेकर स्थिति पहले ही स्पष्ट है।
विज्ञानियों ने कहा है कि जोशीमठ भूकंप के अति संवेदनशील जोन पांच में आता है। यहां सात मैग्नीट्यूट से अधिक क्षमता के भूकंप का खतरा हमेशा बना है। भूकंप जैसी घटनाएं भी कमजोर और अत्यधिक भार वाले भूभाग के लिए खतरनाक साबित होती हैं। जीएसआई के विज्ञानियों ने जांच में पाया कि भूधंसाव कि हालिया घटना का असर र्नृंसह मंदिर परिसर में नहीं पाया गया है। इसके नीचे के भूभाग पर एक पुराना निशान जरूर देखने को मिलता है और यह भी स्थिर है। बाहरी क्षेत्र की तरफ सीढ़ियों और दीवारों पर जो दरारें दिखाई देती हैं, वह भी पुरानी हैं। यही कारण है कि मंदिर से सटे क्षेत्रों में लोग रह रहे हैं।भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के विज्ञानियों ने भी एनआईएच रुड़की की तरह जलविद्युत परियोजना की टनल से भूधंसाव के सीधे संबंध को नकारा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि टनल से जोशीमठ के प्रभावित क्षेत्र की दूरी को देखते हुए भी इस संबंध को समझना मुश्किल है क्योंकि, प्रभाव वाला क्षेत्र टर्नंलग से अधिक शहर के विस्तार की ओर अधिक ध्यान आकर्षित करता है। टनल के लिए टनल र्बोंरग मशीन (टीबीएम) से खोदाई की गई और इसमें विस्फोट नहीं किया जाता है। वैसे भी यह क्षेत्र काफी दूर है। जोशीमठ के भूधंसाव पर देश की विभिन्न वैज्ञानिक संस्थाओं की रिपोर्ट को सार्वजनिक किए जाने के बाद अब वास्तविक स्थिति भी सामने आने लगी है। इसी दिशा में सेंट्रल र्बिंल्डग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीबीआरआई) रुड़की के अध्ययन की बात की जाए तो भूधंसाव के बाद भवनों की स्थिति भी साफ हो गई है।
संस्थान के विज्ञानियों ने पाया है कि जोशीमठ में 99 प्रतिशत भवनों में इंजीनिर्यंरग नदारद है। भवनों का निर्माण बिना मानकों के किया गया है। ‘मिटिगेशन, रिकवरी एंड रीकंस्ट्रक्शन आफ सब्सिडेंस जोन इन जोशीमठ : सेफ्टी असेसमेंट आफ र्बिंल्डग्स’ नाम के इस अध्ययन में सीबीआरआइ के विज्ञानियों ने जोशीमठ के 2,364 भवनों का गहन सर्वे किया। भवन सर्वे में 2.8 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल को कवर किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि जोशीमठ में भवन निर्माण में नेशनल र्बिंल्डग कोड-2016 के नियमों का पालन नहीं किया गया है, जबकि जोशीमठ जैसे ढालदार क्षेत्र में भवन निर्माण में मानकों की अनदेखी खतरनाक साबित होती है। इसके अलावा संबंधित क्षेत्र पुराने मलबे के ढेर पर बसा है और इसमें दशकों से धंसाव की प्रवृत्ति रही है। यही कारण है कि भूधंसाव की स्थिति में यहां के भवन आशंका से अधिक प्रभावित हुए हैं। सीबीआरआई की रिपोर्ट के मुताबिक, जोशीमठ में 37 प्रतिशत भवन रहने लायक पाए गए हैं। 42 प्रतिशत भवन ऐसे हैं, जिनका पुन: आकलन जरूरी है। 20 प्रतिशत भवन ऐसे पाए गए, जो रहने लायक स्थिति में नहीं हैं और एक प्रतिशत भवनों को ध्वस्त करने की संस्तुति की गई है। सेंट्रल र्बिंल्डग रिसर्च इंस्टीट्यूट ने जोशीमठ के ढाल और भवनों की सुरक्षा को एकदूसरे से सीधे तौर पर जोड़ा है। विज्ञानियों के मुताबिक, ढालदार क्षेत्रों में भवन निर्माण में अधिक सावधानी बरतने की जरूरत होती है। हालांकि, अब तक की स्थिति में ऐसी सावधानी नहीं पाई गई। रिपोर्ट के मुताबिक 31 प्रतिशत भवन 30 डिग्री से अधिक ढाल पर पाए गए हैं।