उत्तराखंड

…तो सीएम धामी सौंपेंगे उत्तराखंड को पहली महिला नीति, समझें इसके मायने

देहरादून (गौरव ममगाईं): राज्य गठन के बाद से ही उत्तराखंड में महिला नीति की मांग उठती रही हैं, लेकिन महिला कल्याण को प्राथमिकता बताने वाली सरकारें हर बार महिला नीति को लाने में नाकाम साबित ही होती रही। अब 23 साल के इंतजार के बाद राज्य को पहली महिला नीति मिलने की उम्मीद जगी है। दरअसल, प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने महिला नीति को न सिर्फ अपनी प्राथमिकता बताया, बल्कि इसके निर्माण में कई बड़े कदम भी उठाए हैं। राज्य महिला आयोग को महिला नीति को तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी है। आयोग को राज्य की महिलाओं से हजारों सुझाव लेने को कहा है, ताकि महिलाओं से जुड़ी कोई समस्या छूटे नहीं। वहीं, आयोग की अध्यक्ष कुसुम कंडवाल ने कई बड़ी बैठकें भी की और अब वह ड्राफ्ट तैयार करने में जुटी हैं। सीएम धामी ने कहा है कि महिला नीति बनने पर ही राज्य की महिलाओं के साथ न्याय हो सकेगा।

वहीं, पिछली सरकारों की बात करें तो राज्य गठन के बाद 2002 में पहली निर्वाचित कांग्रेस की एनडी तिवारी सरकार ने भी महिला कल्याण की बातें बहुत की, लेकिन महिला नीति की अहमियत को समझ नहीं सके। फिर बीसी खंडूरी ने पंचायती राज में महिला आरक्षण को बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर ऐतिहासिक निर्णय जरूर उठाया, लेकिन महिला नीति लाने में वे भी चूके। फिर महिला नीति सबसे ज्यादा चर्चाओं में वर्ष 2015 में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के समय में आई, हरीश रावत ने भी महिला आयोग की तत्कालीन अध्यक्ष सरोजनी कैंत्यूरा को ड्राफ्ट तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी थी, लेकिन यह कवायद महज बैठकों तक सीमित रह गई और महिला नीति पीछे छूट गई थी। 2017 में बीजेपी सरकार में त्रिवेंद्र सिंह रावत व तीरथ सिंह रावत भी मुख्यमंत्री बने, लेकिन महिला नीति उनकी प्राथमिकता में भी नहीं दिखी थी।

चलिये आइये जानते हैं उत्तराखंड में महिला कल्याण के लिए महिला नीति क्यों है बेहद जरूरी?

दरअसल, उत्तराखंड हिमालयी राज्य होने के कारण विषम भौगोलिक परिस्थिति वाला प्रदेश है। यहां करीब 53.5 हजार वर्ग किमी. कुल क्षेत्रफल है, जिसमें लगभग 86 प्रतिशत भाग पर्वतीय है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन दुर्गम क्षेत्रों में महिलाएं ही निवास करती हैं। इसका कारण ये है कि पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार की कमी के कारण परिवार के पुरूष रोजगार मैदानी क्षेत्रों का रूख करते हैं, जबकि बच्चे भी 12वीं की पढ़ाई के बाद कोर्स करने के लिए देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी, नैनीताल जैसे बड़े शहरों में आ जाते हैं। इस कारण पर्वतीय क्षेत्रों में अधिकांश घरों में सिर्फ महिलाएं ही रहती हैं। वही घर व खेतों की देखरेख करती हैं। सर्वविदित है कि अनेक पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क, परिवहन, संचार, स्वास्थ्य सेवाओं का आज भी बड़ा अभाव है। इस तरह राज्य की महिलाओं को भौगोलिक विषमता के साथ ही सुविधाओं के अभाव से भी जूझना पड़ता है। राज्य में पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन को काफी हद तक रोकने में महिलाओं का भी योगदान माना जा सकता है।

अब राज्य महिला नीति के महत्त्व को जानते हैं। महिला नीति में उन सब बिंदुओं को शामिल किया जाएगा, जो राज्य की महिलाओं के हितों से जुड़े हैं। इनमें स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा, परिवहन सुविधा, आर्थिक प्रोत्साहन एवं सामाजिक न्याय जैसे अनेक विषय होंगे। राज्य में महिलाओं की आवश्यकता अनुसार विशेष प्रावधान किये जाएंगे। राज्य में कई जिलों की भौगोलिक परिस्थिति अलग-अलग हैं, इसलिए नीति में प्रत्येक जिले की भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार महिलाओं के हितों की रक्षा की जा सकेगी। अगर राज्य की महिलाओं को महिला नीति मिलती है तो यह महिलाओं के साथ प्रदेश के लिए भी बड़ी उपलब्धि होगी। सीएम पुष्कर सिंह धामी को ही इसका श्रेय दिया जाएगा। इस तरह उत्तराखंड आर्थिक तरक्की के साथ सामाजिक न्याय के क्षेत्र में भी अपनी छाप छोड़ सकेगा। हालांकि, अब देखना होगा कि सीएम धामी कितनी जल्दी माता-बहनों को महिला नीति की सौगात देते हैं।

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