मध्य प्रदेश : रीवा जिले में प्राकृतिक रूप से तीन जलप्रपात हैं पर्यटक के रूप में प्रसिद्ध
रीवा : यह स्थान 24’18अ और 25’12 उत्तरी अक्षांश तथा 81’2 एवं 82’18 पूर्व देशांतर में स्थित है विश्व के सभी सफेद शेर यही की देन हैं यहां के सुपारी के खिलौने भी विश्व प्रसिद्ध हैं विश्व में कोल जनजाति का उद्गम स्थल भी यही है यदि हम पुरातत्व की दृष्टि से देखें तो यह स्थान पूर्व समय में अपनी गौरवशाली सभ्यता को स्पष्ट रूप से प्रकट कर रहा है यहां तीसरी शताब्दी(ईसा पूर्व) सम्राट अशोक के शासनकाल में निर्मित स्तूप आज भी मौजूद हैं जिसे देउर कोठार बौद्ध स्तूप के नाम से जाना जाता है वा इसे राष्ट्रीय पर्यटक स्थल का दर्जा प्राप्त है जिसकी देखभाल वर्तमान समय में एएसआई द्वारा की जा रही है ऐसा ही बौद्ध स्तूप बहुती जल प्रपात के समीप भी प्राप्त हुआ है जिसकी दूरी देऊर कोठार बौद्ध स्तूप से मात्र 25 किलोमीटर है यहां एक स्तूप जीर्ण अवस्था में एक बड़ा सैलाश्रय,अन्य छोटे सैलाश्रय स्तूप के लिए मार्ग ,सैकड़ों की संख्या में शैलभित्ति चित्र प्राप्त हुए हैं जो सम्राट अशोक के शासनकाल के आसपास लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के हैं खास बात यह है कि दोनों जगह के स्तूपो के ठीक बगल से हजारों फीट नीचे गहरी खाई है ऐसा माना जाता है कि कोल जनजाति का उद्गम स्थल जड़कुड़ पिपराही है जो यहां से समीप ही स्थित है पूर्व समय में इन्हीं जनजाति के बीच प्रचार-प्रसार की दृष्टि से बौद्ध भिक्षु बिहार पाटलिपुत्र से बनारस का बनारस से यहां आए जहां प्रतीक के रूप में यह स्तूप निर्मित किए ।
वास्तव में इस बौद्ध कालीन सभ्यता के बने स्तुपो को वर्तमान में टूंडी गढी के नाम से जाना जाता था वर्ष 2018 में बहुती प्रपात के समीप क्षेत्र के भ्रमण के दौरान मेरी नजर इस टूंडी गढ़ी पर पड़ी जिसके बारे में किवदंतिया थी कि यहां पर चांदी के सिक्के मिलते हैं जो किसी पुराने राजा की गढ़ी थी जिसका मूल्यांकन करने पर आसानी से ज्ञात हुआ कि यह एक बौद्ध स्तूप है सितंबर 2018 से लगातार एक नई खोज के लिए समर्पित भाव से मैंने समय दिया 20/03/ 2020 को इस संबंध में एक वीडियो भी बनाया गया इस बौद्ध स्तूप के संबंध में तत्कालीन कलेक्टर रीवा इलैया राजा टी कमिश्नर रीवा व तत्कालीन राष्ट्रीय पुरातत्व व संस्कृति समिति के सदस्य रविंद्र वाजपेई जी से चर्चा की बहुत ही प्रपात बौद्ध स्तूप के संरक्षण के लिए मैंने लगातार प्रयास किए जिनमें मुझे डॉक्टर जितेंद्र अवधिया जी का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ यदि इनकी संगति प्राप्त न होती तो शैलभित्त चित्र व समय वह समय काल का ठीक-ठीक आकलन ना हो पाता इस पूरी योजना के संपन्न होने में श्री मुकेश तिवारी इंजीनियर निवासी इटोरा तहसील जवा विद्या वारिधि तिवारी टीआई नईगढ़ी तत्कालीन प्रज्ञा त्रिपाठी रीवा व रविंद्र वाजपेई पुरातत्व व संस्कृति समिति के सदस्य जबलपुर का अविस्मरणीय योगदान था समय रहते यदि इस सभ्यता को संरक्षित ना किया गया तो यहां पास के स्थानीय लोगों द्वारा अवशेष भी समाप्त कर दिए जाएंगे पिछले 40 वर्षों से यहां से पत्थरों के जुलाई चोरी-छिपे की जा रही है जो पुरातात्विक महत्व के हैं धन के लालच से आए दिन यहां खुदाई की जा रही है एकांत वहां सुरक्षित स्थान होने के कारण यहां असामाजिक तत्वों का जमावड़ा लगा रहता है जिन सभी कारणों से सभ्यता के प्रत्येक व संकेत नष्ट हो सकते हैं अतः शासन को अपने स्तर से संरक्षण वह इस सभ्यता को संवर्धन करने का साथ ही खोजकर्ता वा सहयोगियों को सम्मानित करना चाहिए ।