नई दिल्ली : देश के विभिन्न हिस्सों में विधानसभा और उसके बाद राज्यसभा चुनाव में मिली सफलता से भाजपा उत्साहित है। लेकिन राजस्थान को लेकर चिंता बरकरार है। राजस्थान में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में भाजपा नेतृत्व जल्दी ही राज्य में किसी वरिष्ठ नेता को बतौर चुनाव प्रभारी की कमान सौंप सकता है। माना जा रहा है कि पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी या कोई और प्रभावी नेता राजस्थान की कमान संभाल सकते हैं।
राजस्थान में वसुंधरा राजे समर्थक और विरोधी खेमों में बंटी पार्टी केंद्र की लगातार कोशिशों के बावजूद एकजुट नहीं दिख पा रही है। केंद्रीय नेतृत्व सामूहिक नेतृत्व में चुनाव मैदान में जाने की तैयारी में है, लेकिन एक धड़ा वसुंधरा के चेहरे को आगे रखने का दबाव बनाए हुए है। केंद्रीय नेतृत्व ने पिछले माह जयपुर में राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक कर नेताओं को एकजुट कर सामूहिक नेतृत्व में आगे बढ़ाने की पहल की थी। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने साफ संकेत दिए थे कि विधानसभा चुनाव में पार्टी सामूहिक नेतृत्व में चुनाव मैदान में जाएगी। इसके बावजूद खेमेबाजी कम नहीं होती दिख रही है।
हाल में राज्यसभा चुनाव में भाजपा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार सुभाष चंद्रा की हार में भी पार्टी के मतभेद सामने आ गए। पार्टी की एक विधायक शोभारानी कुशवाहा ने तो क्रॉस वोटिंग भी की। शोभा रानी कुशवाहा वसुंधरा के गृह क्षेत्र धौलपुर से विधायक हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के पहले भी केंद्रीय नेतृत्व ने मौजूदा केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की कोशिश की थी, लेकिन तब भी वसुंधरा समर्थक के दबाव में पार्टी शेखावत को आगे नहीं कर सकी थी। मदन लाल सैनी को कमान सौंपी गई थी।
जब राजस्थान कांग्रेस में अंदरूनी कलह बढ़ा तब भी सचिन पायलट को लेकर भाजपा में मतभेद कायम रहे थे। हालांकि पायलट ने कांग्रेस से बगावत नहीं की। इसके बाद राज्य में हुए विधानसभा उपचुनाव में भी भाजपा को झटका लगा। दूसरी तरफ कांग्रेस लगातार मजबूत बनी रही है। भाजपा के लिए यह बड़ी चिंता का कारण भी है। चूंकि, राजस्थान के विधानसभा चुनाव लोकसभा के ठीक पहले होने हैं जिसका असर लोकसभा चुनावों पर भी पड़ सकता है।
सूत्रों के अनुसार, भाजपा नेतृत्व अब राज्य में खेमेबाजी को थामने के लिए किसी बड़े नेता को बतौर चुनाव प्रभारी जिम्मेदारी सौंप सकता है। इनमें दो वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री और पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी के नाम उभर सकता है। गडकरी और वसुंधरा के व्यक्तिगत संबंध बेहतर रहे हैं। पूर्व में जब वसुंधरा राजे का केंद्रीय नेतृत्व से टकराव हुआ था तब नितिन गडकरी ने पार्टी की कमान संभालने के बाद ही उसे समाप्त करवाया था।