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मृत्यु आने से पहले मिलते हैं ये संकेत, जानिए क्या कहते हैं शास्त्र?

मनुष्य का जन्म नौ महीने तक माता के गर्भ में रहने के बाद होता है। ठीक इसी तरह मृत्यु आने से नौ महीने पहले ही कुछ ऐसी घटनाएं होने लगती हैं जो इस बात का संकेत देती हैं। यह संकेत इतने सूक्ष्म होते हैं कि हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में उन पर ध्यान ही नहीं देते और जब मृत्यु एकदम करीब आ जाती है तो पता लगता है कि अब देर हो चुकी है, कई काम अधूरे रह गए हैं।

ऐसी स्थिति में अंतिम क्षण में मन भटकने लगता है और मृत्यु के समय कष्ट की अनुभूति होती है। पुराणों के अनुसार अगर मृत्यु के समय मन शांत और इच्छाओं से मुक्त हो तो बिना कष्ट से प्राण शरीर त्याग देता है और ऐसे व्यक्ति की आत्मा को परलोक में सुख की अनुभूति होती है। ज्योतिष शास्त्री पंडित जयगोविंद शास्त्री बताते हैं कि भारतीय-योग विज्ञान के अनुसार मनुष्य के शरीर में सात चक्र होते हैं। सहस्रार: शीर्ष चक्र, आज्ञा: ललाट चक्र, विशुद्ध: कंठ चक्र, अनाहत: ह्रदय चक्र, मणिपूर: सौर स्नायुजाल चक्र, स्वाधिष्ठान: त्रिक चक्र, मूलाधार: आधार चक्र जब मनुष्य प्राण त्याग करता है जो इन्हीं चक्रों में से किसी चक्र से आत्मा शरीर से बाहर निकलती है।

योगी, मुनि और पुराणों की मानें तो मृत्यु का समय करीब आने पर सबसे पहले नाभि चक्र में गतिविधियां शुरु हो जाती हैं। नाभि चक्र यानी की मणिपुर ध्यान चक्र टूटने लगता है। नाभि शरीर का केन्द्र स्थान होता है जहां से जन्मकाल में शरीर की रचना शुरू होती है। इसी स्थान से प्राण शरीर से अलग होना शुरू करता है, इसलिए मौत के करीब आने की पहली आहट को नाभि चक्र के पास महसूस किया जा सकता है। एक दिन में नहीं टूटता है, इसके टूटने की क्रिया लंबे समय तक चलती है और जैसे-जैसे चक्र टूटता जाता है मृत्यु के करीब आने के दूसरे कई लक्षण प्रकट होने लगते हैं।

मृत्यु पूर्व जिस प्रकार के अनुभव और लक्षण प्रकट होने लगते हैं इसका उल्लेख कई ग्रंथों में किया गया है। गरुड़ पुराण, सूर्य अरुण संवाद, समुद्रशास्त्र एवं कापालिक संहिता इसके प्रमुख स्रोत माने जाते हैं। इन ग्रंथों में बताया गया है कि मृत्यु का समय समीप आने पर व्यक्ति को कई ऐसे संकेत मिलने लगते हैँ जिनसे यह जाना जा सकता है कि शरीर त्यागने का समय करीब आ गया है।इन ग्रथों में जो सबसे प्रमुख लक्षण बताया गया है उसके अनुसार मृत्यु के समीप आने पर व्यक्ति को अपनी नाक दिखाई देना बंद हो जाती है।

जन्म के साथ हर व्यक्ति अपनी हथेली में कई रेखाएं लेकर आता है। हस्तरेखा के जानकर कहते हैं कि यह ब्रह्मा का लेख होता है जिसमें व्यक्ति की सांसें यानी वह कितने दिन जीवित रहेगा यह लिखा होता है। हस्तरेखा पढ़ने वाले इन्हीं रेखाओं को देख पढ़कर व्यक्ति की भविष्यवाणी करते हैं। अगर आप भी अपनी हथेली में मौजूद रेखाओं को गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि यह रेखाएं समय-समय पर बदलती रहती हैं। जब आप गंभीर रूप से बीमार होते हैं तो रेखाएं धुंधली होने लगती हैं। समुद्रशास्त्र कहता है कि जब मृत्यु करीब आ जाती है तो हथेली में मौजूद रेखाएं अस्पष्ट और इतनी हल्की हो जाती है कि यह ठीक से दिखाई भी नहीं देती हैं।

ज्योतिष शास्त्री पंडित जयगोविंद के अनुसार जिस तरह घर में नए सदस्य के आने की खबर मिलने पर हम मनुष्य उत्साहित रहते हैं और उनके स्वागत की तैयारी करते हैं। कुछ इसी तरह जब कोई व्यक्ति संसार को छोड़कर परलोक की यात्रा पर जाने वाला होता है तो परलोक गए उनके पूर्वज और आत्माएं उत्साहित रहते हैं और अपनी दुनिया में नए सदस्य के आने की खुशी में रहते हैं। इसलिए मृत्यु के करीब पहुंच चुके व्यक्ति को अपने आस-पास कुछ सायों के मौजूद होने का एहसास होता रहता है। ऐसे व्यक्तियों को अपने पूर्वज और कई मृत व्यक्ति नजर आते रहते हैं। कई बार तो व्यक्ति को इन चीजों का इतना गहरा एहसास होता है कि वह डर जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मणिपुर ध्यानचक्र के कमजोर होने से आत्मबल घटने लगता है इसलिए व्यक्ति को इस तरह की अनुभूतियां होती हैं।

पंडित जयगोविंद कहते हैं कि स्वप्नशास्त्र कहता है कि सपने कई बार भविष्य में होने वाली घटनाओं का संकेत देते हैं। सूर्य अरुण संवाद एवं स्वप्नशास्त्र में बताया गया है कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु करीब आ जाती है तो उसे अशुभ स्वप्न आने लगते हैं। व्यक्ति खुद को गधे पर सवार होकर यात्रा करते हुए देखता है। सपने में मृत व्यक्ति और पूर्वजों का दिखाई देना भी मृत्यु के करीब आने का संकेत होता है। खुद को बिना सिर के देखना भी मृत्यु नजदीक आने का इशारा होता है।

कहते हैं कि परछाई हमेशा साथ चलती है इसलिए अपने कई बार अपने आस-पास अपनी परछाई को देखा होगा। लेकिन समुद्रशास्त्र और सूर्य अरुण संवाद के अनुसार जब व्यक्ति की आत्मा उसे छोड़कर जाने की तैयारी करने लगती है तो परछाई भी साथ छोड़ देती है। ऐसा नहीं है कि उस समय व्यक्ति की परछाई नहीं बनती है। परछाई तो उस समय भी बनती है लेकिन व्यक्ति की दृष्टि अपनी परछाई को देख नहीं पाती है क्योंकि आंखें परछाई देखने की ताकत खो देती है। गरुड़ पुराण कहता है कि जब बिल्कुल मृत्यु करीब आ चुकी होती है तो व्यक्ति को अपने करीब बैठा इंसान भी नजर नहीं आता है। ऐसे समय में व्यक्ति के यम के दूत नजर आने लगते हैं और व्यक्ति उन्हें देखकर डरता है।

ज्योतिष शास्त्री पंडित जयगोविंद शास्त्री के अनुसार जब तक सांसें चलती हैं तब तक जीवन है जैसे ही सांस रुक जाती है व्यक्ति मृत घोषित कर दिया जाता है। इस तरह जीवन का आधार सांसें हैं इसलिए जब मनुष्य पैदा होता है तब से मृत्यु तक उसकी सांसें लगातार चलती रहती हैं।कोई न तो सांसों को बढ़ा सकता है और न कम कर सकता है। कोशिश करने पर कुछ देर के लिए चाहें तो सांसें रोक सकते हैं लेकिन सांसों पर जीव का कोई अधिकार नहीं है।

गरुड़ पुराण कहता है कि जब तक जीवन चक्र चलता रहता है तब तक सांसें सीधी चलती हैं। लेकिन जब किसी व्यक्ति की मृत्यु करीब आ जाती है तो उसकी सांसें उल्टी यानी उर्ध्व चलने लगती हैं।नोटः यह लेख विविध शास्त्रों में मृत्यु के बारे में वर्णित तथ्यों और सूचनाओं के आधार पर तैयार किया गया है। लेख में शामिल बातें ज्योतिष शास्त्री पंडित जयगोविंद से बातचीत के आधार पर लिखी गई हैं।

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