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ऐसे शुरू हुआ था झूलन गोस्वामी का क्रिकेट करियर

स्पोर्ट्स डेस्क : इंटरनेशनल क्रिकेट में झूलन गोस्वामी 7 मार्च से वापसी करने जा रही है. वही झूलन गोस्वामी ने दो दशक तक इंटरनेशनल क्रिकेट में भारत का नाम रोशन किया है. इन दिनों झूलन गोस्वामी राजधानी लखनऊ के इकाना स्टेडियम में भारतीय महिला टीम और दक्षिण अफ्रीका महिला टीम के बीच 7 मार्च से वनडे और टी-20 सीरीज के लिये काफी प्रैक्टिस कर रही है.

झूलन गोस्वामी फ़िलहाल फार्म में हैं. वही झूलन गोस्वामी की निगाह 4 मार्च से 3 अप्रैल 2022 तक न्यूज़ीलैंड में आयोजित होने वाले आईसीसी महिला वर्ल्ड कप पर है. वही झूलन गोस्वामी आईसीसी महिला वर्ल्ड कप 2022 के लिये तैयारियों में लगी है. कलकत्ता के चाकदाह में पैदा हुईं झूलन गोस्वामी शुरुआती दिनों में फुटबॉल फैन थीं.

वही 15 वर्ष तक होते-होते उन्हें क्रिकेट से जुड़ाव हो गया. 1992 के क्रिकेट वर्ल्ड कप से शुरू हुई ये कहानी 1997 के महिला क्रिकेट वर्ल्ड से मजबूत हुई. वैसे ये फैसला भारत के हर बच्चा का होता है, लेकिन इस दौरान आने वाली समस्याओं को सुलझाना सभी के बस की बात नहीं है. लड़कियों के लिये तो मामला और कठिन होता है.

झूलन भी ऐसी तमाम समस्याओं का सामना करते हुए आगे बढ़ीं. उन्होंने जब क्रिकेट खेलने का फैसला किया तो पहला सवाल था क्रिकेट की सुविधाएं. चाकदाह में क्रिकेट की सुविधा नहीं थी. वहां से नजदीकी क्रिकेट सुविधा कोलकाता के विवेकानंद पार्क में थी.

वो ट्रेन और बस की यात्राएं करके सुबह साढ़े सात बजे कोलकाता पहुंचती थीं. हमेशा भरी रहती है और चढऩा और उतरना एक टास्क होता है. बाद में ट्रेनिंग के लिये एक मिनट की देरी हुई तो कोच उस दिन ट्रेनिंग नहीं करने देते थे. लेकी बोलते है कि किसी चीज को दिल से चाहो तो सफलता जरुर मिलती है.

झूलन क्रिकेट खेलने के लिये कुछ भी करने के लिये तैयार थीं. वर्ष 2012 में पद्मश्री मिलने के बाद उन्होंने बोला भी था, मुझे नहीं मालूम क्रिकेट के बिना मैं क्या करती. अगर उन्होंने मुझे खेलने से रोका होता. मुझे नहीं पता मैं क्या करती. क्रिकेट मेरे लिये काफी मायने रखता था. मैं सच में इस खेल के लिये पैशनेट हूं.

इस पैशन में घर के माहौल का रोल था. झूलन के घर के सारे पुरुष क्रिकेट के फैन थे. जब उन्होंने ईडन गार्डन्स में 1997 के विमिंस विश्व कप का फाइनल देखा तो सोचा कि अब तो क्रिकेट ही खेलना है. शुरुआत में घरवाले नहीं माने. फिर कोच स्वप्न साधू ने उनके घरवालों से बात करके मनाया. जानकारी के तहत शुरुआत में झूलन को अकेले यात्रा करने में डर लगता था. मां या पिता उनके साथ जाते थे. लेकिन झूलन को ये बात समझ में आई कि पिता जी को दिन भर काम होता है.

माताजी को घर की देखभाल करनी होती है. झूलन ने हिम्मत जुटाई और एक दिन बोला डाला मैं अकेले जाऊंगी और अकेले वापसी करुँगी. केवल 19 वर्ष की उम्र में वर्ष 2002 में भारतीय टीम के लिये डेब्यू किया. पूरी दुनिया में न केवल अपने देश का तिरंगा लहराया. साथ ही में झूलन दुनिया की तेज महिला गेंदबाज बनीं. उन्हें तमाम अवार्ड्स मिले. वनडे में सबसे अधिक विकेट लेने वाली गेंदबाज बनीं. वर्ष 2018 में अपने 300 इंटरनेशनल विकेट पूरे किये.

वर्ष 2007 में आईसीसी विमिंस क्रिकेटर ऑफ द इयर चुनी गयी. 2010 में अर्जुन और 2012 में पद्मश्री हासिल करने वाली झूलन इन दिनों लखनऊ में मौजूद हैं. यहां पर वो दक्षिण अफ्रीका को अपनी गेंदबाजी से चित करने के मूंड में दिखाई दे रही है. 38 वर्षीय चाकदाह एक्सप्रेस अभी क्रिकेट से रिटायर होने के मूड में नहीं हैं.

सूत्रों की माने तो 2022 विश्व कप में झूलन देश के तिरंगे को जीत के साथ लहराना चाहती हैं. उनका लक्ष्य 2022 का विश्व कप खेलना है. 2017 के वर्ल्ड कप फाइनल की हार की कसक बाकी है. रिटायरमेंट से पहले झूलन दुनिया जीतने के लिये बेकरार हैं.

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