नई दिल्ली: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के एक समूह ने एचआईवी एड्स के साथ जी रहे लोगों में क्रिप्टोकोक्कल मेनिन्जाइटिस प्रबंधन को लेकर एक अत्यंत महत्वपूर्ण अध्ययन किया है। इस अध्ययन के मुताबिक एड्स रोगियों की समय पर जांच व इलाज से उनकी मृत्यु दर में कमी लाई जा सकती है। यह जांच बीएचयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में 500 रुपए में की जाती है।
शोध ने क्रिप्टोकोक्कल संक्रमण के प्रति अति गंभीर एचआईवी संक्रमित मरीज़ों की मृत्यु दर में कमी लाने का एक प्रभावी तरीका सुझाया है। अध्ययन में पाया गया कि उत्तर भारत में एचआईवी के साथ जी रहे कमजोर प्रतिरक्षण वाले लोगों में क्रिप्टोकोक्कल एंटीजेंस की उपस्थिति अधिक है।
उत्तर भारत में एचआईवी के साथ जी रहे लोगों में देश के अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा क्रिप्टोकोक्कल एंटीजन का प्रसार दर बहुत ऊंचा (15 प्रतिशत) है। क्रिप्टोकोकक्कल मेनिनदाइटिस केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (सीएनएस) से जुड़ा संक्रमण है, जो कवक (फंगल संक्रमण) से होता है, एचआईवी के साथ जी रहे लोगों में मृत्यु का प्रमुख कारण है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक इसका इलाज लंबा चलता है और इलाज के बाद भी मृत्यु दर अधिक होती है। हलांकि, बीएचयू के अध्ययन में पाया गया है कि गंभीर रूप से कमजोर प्रतिरक्षण वाले एचआईवी के साथ जी रहे लोगों की क्रिप्टोकोक्कल एंटीजन जांच, लक्षण दिखने से पहले ही व उचित थेरेपी शुरू कर मृत्यु दर कम किया जा सकता है।
यह शोध बीएचयू चिकित्सा विज्ञान संस्थान स्थित मेडिसीन विभाग की प्रो. जया चक्रवर्ती एवं प्रो. श्याम सुन्दर तथा माइक्रोबायोलॉजी विभाग की प्रो. रागिनी तिलक एवं डॉ. मुनेश कुमार गुप्ता तथा उनके रेज़ीडेन्ट्स द्वारा किए गए हैं।
प्रो. जया चक्रवर्ती ने बताया, “ऐसे व्यक्तियों की स्क्रीनिंग क्षेत्र के एआरटी सेंटर द्वारा की जानी चाहिए। वर्तमान में यह जांच बीएचयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में 500 रुपये प्रति परीक्षण के दर से की जाती है। हम उत्तर प्रदेश एड्स नियंत्रण समिति से परीक्षण किट्स निशुल्क प्रदान करने का अनुरोध करना चाहेंगे, जिससे एआरटी सेंटर पर ऐसे सभी लोगों की स्क्रीनिंग की जा सके।”
प्रो. चक्रवर्ती ने कहा कि यह शोध ऐसे महत्वपूर्ण समय पर आया है, जब हम स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ताओं को फंगल संक्रमण के बारे में विचार करने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए फंगल संक्रमण जागरूकता सप्ताह मना रहे हैं।
प्रो. जया चक्रवर्ती ने शोध को एचआईवी साइंस पर ब्रिस्बेन में आयोजित अंतरराष्ट्रीय एड्स सोसाइटी के 12वें सम्मेलन में भी प्रस्तुत किया था। यह सम्मेलन एड्स के प्रति जागरूकता तथा बचाव के लिए कार्य कर रहे संगठनों का सबसे प्रमुख आयोजन था। अध्ययन के नतीजे लिप्पिनकोट्ट विलियम्स व विल्किन्स के प्रतिष्ठित एड्स जनरल में हाल ही में प्रकाशित हुए हैं।