नई दिल्ली (उदयन शर्मा) अंतरिक्ष में कदम रखने वाले पहले भारतीय राकेश शर्मा का आज यानी 13 जनवरी को जन्मदिन है। इनके शौर्य से पूरा देश और दुनिया वाकिफ हैं। बचपन से ही इन्हें अंतरिक्ष के क्षेत्र में कार्य करने की प्रबल इच्छा थी। इन्होंने सैनिक शिक्षा हैदराबाद से ग्रहण की। इसके बाद वे भारतीय वायुसेना में बतौर टेस्ट पायलट भी चुने गए। 1949 में पंजाब के पटियाला में जन्मे राकेश शर्मा ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में पायलट के रूप में भाग लिया था। ये भारत के पहले और विश्व के 138वें अंतरिक्ष यात्री थे। इन्होंने लो ऑर्बिट में स्थित सोवियत स्पेस स्टेशन की उड़ान भरी और सात दिनों तक स्पेस स्टेशन में रहे। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राकेश शर्मा से पूछा कि अंतरिक्ष से भारत कैसा लगता है तो उन्होंने कहा कि ‘ सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा’।
20 सितंबर 1982 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ‘ इसरो’ के जरिए इन्हें अंतरिक्ष एजेंसी इंटरकॉस्मोस के अभियान के लिए चुना गया। 1982 में भारतीय-रूसी अंतरिक्ष अभियान में शर्मा ने खुद शामिल होने का फैसला किया था। शर्मा ने दो सोवियत यात्रियों के साथ अंतरिक्ष में सात दिन 21 घंटे और 40 मिनट गुजारे थे। उन्होंने अंतरिक्ष से भारत की बहुत सारी तस्वीरें ली थीं।
उनके लिए यह अविस्मरणीय पल था जब 2अप्रैल 1984 को उन्हें सोवियत संघ के बैकानूर से सोयूज टी- 11 अंतरिक्ष यान से अन्य दो अंतरिक्ष यान के कमांडर वाई. वी मालिशेव और फ्लाइट इंजिनियर जी.एम स्ट्रकोलॉफ अंतरिक्ष यात्रियों के साथ उड़ान भरने का मौका मिला। इस मिशन में राकेश शर्मा भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
इस अंतरिक्ष मिशन को सकुशल पूरा करके लौटने पर भारत सरकार ने अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा और उनके अन्य दोनों ही साथियों को ‘ अशोक चक्र’ से सम्मानित किया। इसके अलावा सोवियत सरकार ने भी उन्हें ‘ हीरो ऑफ सोवियत यूनियन’ सम्मान से भी नवाजा गया।
राकेश शर्मा चकाचौंध से दूर तमिलनाडु के कुन्नूर में अपनी पत्नी मधु बिना किसी पब्लिसिटी अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। शर्मा इसरो की गगनयान के लिए बनाई गई नेशनल एडवायजरी काउंसिल का हिस्सा रहे हैं जो कि एस्ट्रोनॉट सेलेक्शन प्रोग्राम चलाती है।