दौड़ेगी ट्राम लखनऊ में ! वाह !!
स्तंभ: आम यात्री का रथ कभी ट्राम होता था। गत सदी में दुनिया भर के राष्ट्रों में यह बंद हो गया। कोलकता जहां सर्वप्रथम (27 मार्च 1902) यह चला था, अब सुधार कर फिर चलाया जाएगा। आह्लाद-मिश्रित अचरज तो यह है कि अवध नगरी लखनऊ की सड़कों पर अब इसे दौड़ाने की योजना सरकार ला रही है। गत सदी में ही ऐसा हो जाना चाहिए था। मेट्रो के पहले। अब योगी सरकार का महत्वाकांक्षी प्रयास है। फिर गोमती रिवर फ्रंट को चांद लग जाएगा। वह चमक उठेगी। मगर सिहरन होती है इस ख्याल पर कि वाहनों की खचाखच और पैदल जन के ठसाठस में ट्राम यात्रा गतिशील रह पाएगी ? फिर भी लखनऊ वालों के लिए ट्राम नायाब उपहार तो होगा ही। शासकीय सूचना के अनुसार लखनऊ सैर के लिए एक हेरिटेज ट्राम चलेगा, हुसैनाबाद से लामार्टिनियर कॉलेज तक। इसके लिए एलडीए गोमती रिवर फ्रंट को विकसित करेगा। रूट बनेगा कैसरबाग से परिवर्तन चौक-हजरतगंज-राजभवन-विक्रमादित्य मार्ग चौराहा-कालिदास चौराहा होकर लामार्टिनियर कालेज तक। हालांकि इसके लिए पहले एक संयुक्त सर्वे होगा। सर्वे से पहले विकास प्राधिकरण एक निजी कंसलटेंसी एजेंसी से विजन डाक्यूमेंट तैयार कराएगा।
चेन्नई (तब मद्रास) में ट्राम चला करती थी। उसे मद्रास ट्रामवेज कहते थे। डॉक और अंतर्देशीय क्षेत्रों के बीच माल और यात्रियों को ले जाने के लिए संचालित होता था। यह प्रणाली 7 मई, 1895 को शुरू हुई थी। भारत का सबसे पुराना बिजली ट्राम थी। भारी भार लेजा सकती थीं और रोजाना इसमे हजारों सवारियां भी होती थी। मार्ग में माउंट रोड (अन्ना सलाई), पैरी कॉर्नर, पूनमल्ली रोड और रिपन बिल्डिंग आदि शामिल थे। मेरे बचपन कि याद इससे जुड़ी हैं। मै भी सवार हो चुका हूँ। यह ट्राम कंपनी लगभग 1950 में दिवालिया हो गई और 12 अप्रैल 1953 को बंद हो गई।
याद आया लखनऊ में ट्राम-योजना के ठीक 115 साल पूर्व (जून 1907) में औद्योगिक नगरी कानपुर में ट्राम चली थी। यह चार मील (6.4 किमी) ट्रैक और 20 सिंगल-डेक ओपन ट्राम थी। रेलवे स्टेशन को गंगा के किनारे सिरसया घाट से जोड़ती थी। कानपुर ट्राम की तस्वीरें दुर्लभ हैं। इलेक्ट्रिक-ट्रैक्शन सिंगल-कोच था। इसका इस्तेमाल दिल्ली, मुंबई और चेन्नई में भी किया जाता रहा। मगर 16 मई, 1933 को यह सेवा भी बंद हो गयी। गत सदी में पटना में शहरी परिवहन के रूप में घोड़ों द्वारा खींची जाने वाली ट्राम थी। वह अशोक राजपथ के आबादी वाले इलाके में पटना शहर से बांकीपुर तक जाती थी, जिसका पश्चिमी टर्मिनस सब्जीबाग (पीरबहोर पुलिस स्टेशन के सामने) में था। कम सवारियों के कारण इसे 1903 में बंद कर दिया गया था, इस वजह से पश्चिम की ओर मार्ग का विस्तार करने की योजना कभी भी अमल में नहीं आई। दिल्ली में ट्राम का संचालन (6 मार्च, 1908) शुरू हुआ तो 1921 में ऊंचाई पर था। जामा मस्जिद, चांदनी चौक, चावड़ी बाजार, कटरा बड़ियां, लाल कुआं, दिल्ली और फतेहपुरी सब्जी मंडी, सदर बाजार, पहाड़गंज, अजमेरी गेट, बड़ा हिंदू राव और तीस हजारी से जुड़े थे। फिर 1963 में शहरी भीड़भाड़ के कारण यह सिस्टम बंद हो गया।
भारत में ट्राम के रूमानी और रूहानी सफर में अगली फरवरी (2023) एक नया मोड़ आ रहा है जब कोलकता अपनी “ट्राम-यात्रा” की 150वीं जयंती पर विशाल समारोह मनायेगा। यह कार्यक्रम मेलबॉर्न (ऑस्ट्रेलिया) और कोलकाता ने 1996 में प्रारंभ किया था, हालांकि अब यह सीमित और संकुचित हो गया है। कभी तटवर्ती नगर जो प्रसिद्ध ब्रिटिश और अन्य यूरोपीय उपनिवेशवासियों का सियासी क्रीडा स्थल रहा कोलकता अब पुरानी यादों को संजोये है। यहां कोलकाता ट्राम सेवा बिजली से संचालित होती है। अतः पर्यावरण के लिए ये नुकसानदेह नहीं रही। साथ ही इस पर खर्चे भी ज्यादा नहीं हैं। मेट्रो और अन्य स्पीड वाहन के आने से इसके परिचालन में चुनौतियाँ आने लगी है। गौर करने वाली बात ये है कि ट्राम पर्याप्त स्पीड में चलने वाली गाड़ी है लेकिन मुख्य सड़क से ओपन ट्रैक गुज़रने के कारण अन्य वाहन उसके ट्रैक पर जाम लगाए रहते हैं। लिहाजा ट्राम की सवारी बाधित होकर समय भी ज्यादा लेती है। अब इस पुरानी यातायात व्यवस्था को एक धरोहर के रूप में रखा जा रहा है। धर्मतल्ला में इसको लेकर म्यूजियम भी बना दिया गया है, ट्राम के इतिहास को जानने के लिए। साल 1938 में बनी एक पुरानी ट्राम को सजाकर म्यूज़ियम में तब्दील कर दिया गया है। इसमें ट्राम के 150 वर्षों के इतिहास को समेटकर रखा गया है। इस म्यूज़ियम की शुरुआत 19 सितम्बर 2014 की गई थी। ट्राम के पहले डिब्बे को कैफेटेरिया और दूसरे डब्बे में जानकारियों से भरा गया है। आज भी यह लोगों में आकर्षण बना हुआ है। पर्यटक तो इसे खासकर देखने आते ही हैं बल्कि यहाँ के लोग भी अपने दैनिक यात्राओं में इसका इस्तेमाल चाव से करते हैं। नई परिस्थिति में ट्राम को सड़कों पर बनाए रखने के क्या किया जा सकता है इसके लिए टूरिस्टों के लिए विशेष ट्राम के साथ अत्याधुनिक ट्रामों को भी सड़कों पर उतारा गया है।
ट्राम की रूचिकर और रोमांचकारी यात्रा मैं करता रहा हूँ। कोलकता, दिल्ली, मुंबई आदि सभी नगरों में। यूं तो मुंबई में लोकल ट्रेन, बसे और टैक्सीयां चलती हैं, पर 31 मार्च 1964 में बंद करने तक ट्राम इस स्वर्णनगरी का अविस्मृत दैनिकी भाग रहा। ट्राम की अंतिम यात्रा हुई थी तब मैं उस पर सवार था। मेरे सीनियर रिपोर्टर बहराम कांट्रेक्टर (बिजीबी) मुझे ले गए थे। मानो मैं इतिहास का साक्षी हो रहा था। सन 1907 में पहली बार चली थी, करीब आधी सदी बीती। आखिरी ट्राम की यात्रा का मधुर वर्णनवाली रपट आज भी “टाइम्स ऑफ इंडिया” की पुरानी फाइलों में कैद है। कवितामय थी। बुजुर्ग लोग हमेशा याद करते रहते हैं। अंतिम ट्रामयात्रा की गाथा को।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)