एक ही सीट पर दो मुस्लिम प्रत्याशी सपा बसपा और कांग्रेस के लिए चुनौती
बुलंदशहर: सियासी बिसात बिछ चुकी है। मोहरे भी बैठाए जा चुके हैं। अब जनता अपना दांव 10 फरवरी को लगाएगी। यह वे सीटें हैं जहां से निकला संदेश पूरे यूपी के चुनाव की चाल तय करेगा। पश्चिमी यूपी की इन 58 सीटों में कई ऐसी हैं जो मुस्लिम बाहुल्य हैं और इनमें से लगभग एक दर्जन से ज्यादा सीटें ऐसी हैं, जहां से विभिन्न पार्टियों के दो मुस्लिम प्रत्याशी खड़े हैं। ऐसे में वोटों का बंटवारा रोकना कड़ी चुनौती होगी। पिछले चुनावों में भाजपा ने यहां की 90 फीसदी से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की थी। पहले चरण में ढाई दर्जन से ज्यादा मुसलमान प्रत्याशी हैं।
पश्चिमी यूपी में सत्ता पक्ष को अपनी बढ़त बनाए रखने की चुनौती होगी तो विपक्षी दलों को इन्हें उखाड़ फेंकने की लेकिन एक ही सीट पर दो मुस्लिम प्रत्याशी खड़े होने से खेल बिगड़ने का भी अंदेशा है। कैराना, थाना भवन, चरथावल, मीरापुर, सिवालखास, मेरठ शहर, बागपत, छपरौली, लोनी, धौलाना, बुलंदशहर, शिकारपुर, कोल ऐसी सीटें हैं जहां कांग्रेस, सपा व बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं। वहीं दो सीटें ऐसी हैं, जहां से तीन-तीन प्रत्याशी उतारे गए हैं। मेरठ दक्षिण से सपा ने आदिल चौधरी, बसपा ने दिलशाद अली और कांग्रेस ने नफीस जैदी को टिकट दिया है तो अलीगढ़ सीट से सपा-रालोद ने जफर आलम, बसपा ने रजिया खान व कांग्रेस ने सलमान इम्तियाज पर दांव लगाया है। वोटों के बंटवारे के गणित को पिछले यानी 2017 के विधानसभा चुनावों से समझा जा सकता है।
पिछले चुनावों में मेरठ दक्षिण से बसपा ने मो. याकूब कुरैशी और कांग्रेस ने आजाद सैफी को मैदान में उतारा था। दोनों को मिलाकर 1,46947 वोट मिले थे जबकि यहां से विजेता भाजपा के सोमेन्द्र सिंह तोमर को 111325 वोट मिले थे लेकिन इस बार सपा, कांग्रेस और बसपा तीनों ने मुलसमान प्रत्याशी दिया है। लिहाजा, मुसलमान बाहुल्य होने के बाद भी यहां से उनके वोट बंटने की पूरी संभावना है। इसी तरह मीरापुर से सपा के लियाकत अली यूं तो 193 वोट से चुनाव हारे थे लेकिन यहां से ही बसपा के नवाजिश आलम को 39689 वोट मिले थे। यहां से कई निर्दलीय मुसलिम प्रत्याशियों ने भी खेल खराब किया था। यही हाल लोनी, थाना भवन, सिवालखास, बुलंदशहर, अलीगढ़ आदि का रहा, जहां एक से ज्यादा मुसलमान प्रत्याशी खड़े होने की वजह से भाजपा प्रत्याशी को जीत हासिल हुई।