डीयू में तीन साल से है यूजीसी का सर्कुलर, फिर भी नहीं बनी कमेटी
नई दिल्ली: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की अवर सचिव ने विश्वविद्यालयों के कुलसचिवों को विश्वविद्यालयों, उच्च शिक्षण संस्थानों, कॉलेजों में जातीय आधारित भेदभाव की निगरानी के लिए एक सकरुलर जारी किया था। शिक्षण संस्थानों से कहा गया था कि भेदभाव संबंधी शिकायत दर्ज करने के लिए वह अपना वेबसाइट पेज निमित्त करे। हालांकि तीन साल बीत जाने पर भी अधिकांश विश्वविद्यालयों और कॉलेजों ने इस पर कोई कार्यवाही नहीं की।
यूजीसी ने यह सकरुलर दिल्ली विश्वविद्यालय, इलाहबाद विश्वविद्यालय, डॉ आंबेडकर विश्वविद्यालय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, जेएनयू, जामिया मिलिया इस्लामिया, इग्नू, एमडीयू, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, आईपी यूनिवर्सिटी, अम्बेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली समेत देशभर के विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलसचिवों को सकरुलर जारी किया था।
यूजीसी ने यह सकरुलर 958 उन विश्वविद्यालयों और संस्थानों को भेजा था जो यूजीसी की लिस्ट में है और जो उससे अनुदान प्राप्त करती है। इन संस्थानों को यूजीसी के द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करना अनिवार्य है। दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन ( डीटीए ) के अध्यक्ष डॉ. हंसराज सुमन ने दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्बद्ध विभागों, कॉलेजों में एससी, एसटी, ओबीसी के शिक्षकों, कर्मचारियों और छात्रों के साथ हो रही जातीय आधारित घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है। यूजीसी ने इस सकरुलर के आधार पर विश्वविद्यालय व कॉलेज स्तर पर जातीय उत्पीड़न रोकने के लिए जातीय उत्पीड़न निवारण सैल की स्थापना किए जाने की मांग की है।
उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर पी.सी. जोशी से यह मांग की है कि डीयू के विभागों, कॉलेजों में जातीय आधारित किसी भी भेदभाव की निगरानी करने के लिए विश्वविद्यालय व कॉलेज स्तर पर जातीय उत्पीड़न सुरक्षा कमेटी गठित की जाए। कमेटी में एससी, एसटी और ओबीसी के शिक्षकों व कर्मचारियों को रखा जाए। उन्होंने यूजीसी की अवर सचिव द्वारा विश्वविद्यालयों को भेजे गए सकरुलर में उन्होंने याद दिलाया है कि यूजीसी ने 19 जुलाई से 15 मई 2017 तक इस संदर्भ में उचित कार्यवाही करने हेतु कई पत्र जारी किए हैं।
डॉ. सुमन ने बताया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिकांश ऐसे कॉलेज है जहां एससी,एसटी ,ओबीसी के शिक्षकों, कर्मचारियों के साथ जातीय भेदभाव की घटनाएं घटित हुई है। ऐसे मामले राष्ट्रीय अनुसूचित जाति, जनजाति आयोग और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग में दर्ज है। दोनों आयोगों द्वारा कार्यवाही करने के लिए कॉलेज प्रशासन व विश्वविद्यालय को लिखा जाता है, लेकिन समाधान नहीं हो पाता।
उन्होंने बताया है कि सबसे ज्यादा मामले शिक्षकों की नियुक्ति में रोस्टर व आरक्षण का सही ढंग से पालन न करना है। इसी तरह से कर्मचारियों की नियुक्ति व पदोन्नति के मामले आयोग में पंजीकृत है। उनका कहना है कि जातीय भेदभाव के आधार कर्मचारियों के मामले ज्यादा है। उन्होंने कुलपति को तथा अपने विद्वत परिषद के सदस्य के समय ये मामले उठाएं थे लेकिन उनका समाधान आज तक नहीं हो पाया। हाल ही में दो महिला कॉलेजों में इस तरह की घटना हुई है लेकिन विश्वविद्यालय ने कोई संज्ञान नहीं लिया।