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ट्रंप का यूक्रेन को अल्टीमेटम! शांति योजना पर गुरुवार तक देना होगा जवाब

नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वह चाहते हैं कि यूक्रेन अमेरिका द्वारा तैयार की गई शांति योजना पर इस गुरुवार तक अपना अंतिम फैसला दे दे। यह योजना यूक्रेन और रूस के बीच पिछले चार साल से चल रहे युद्ध को खत्म करने के लिए बनाई गई है।

ट्रंप ने यह भी संकेत दिया कि अगर यूक्रेन इस योजना को स्वीकार करता है, तो इसके बदले उसे रूस को कुछ बड़े रणनीतिक और राजनीतिक समझौते करने पड़ सकते हैं। हालांकि उन्होंने इन रियायतों का खुलकर विवरण नहीं दिया, लेकिन अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार ड्राफ्ट प्लान में कुछ विवादित इलाकों पर रूस की बढ़त को मान्यता देने की बात शामिल हो सकती है।

थैंक्सगिविंग से पहले समाधान का दबाव
राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि वह चाहते हैं कि यूक्रेन थैंक्सगिविंग तक चार साल से चल रहे झगड़े को खत्म करने के लिए U.S. की एक बड़ी डील मान ले, जिससे कीव को यह तय करने के लिए एक हफ़्ते से भी कम समय मिल जाएगा कि वह रूस को बड़ी छूट देने वाले ड्राफ़्ट प्लान पर राज़ी होगा या नहीं। ट्रंप ने फ़ॉक्स न्यूज़ रेडियो के ब्रायन किलमीड से इस सवाल के जवाब में कहा, “हमें लगता है कि गुरुवार सही समय है।” यह सवाल यूक्रेन को प्लान पर राज़ी होने के लिए डेडलाइन देने के बारे में था। “हम इसमें सिर्फ़ एक चीज़ के लिए हैं। हम चाहते हैं कि हत्या रुक जाए।”

यूक्रेन पर बढ़ा दबाव, लेकिन रूस पर भी नजर
हालांकि यूक्रेन को तेजी से फैसला करने का दबाव दिया जा रहा है, लेकिन यह भी उम्मीद की जा रही है कि रूस भी इस योजना के कुछ हिस्सों पर सहमति दे। अमेरिका का मानना है कि लंबे समय से चल रहा युद्ध वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है और यूरोप की सुरक्षा को खतरे में डाल रहा है।

यूक्रेन की मुश्किल—क्या स्वीकार करे, क्या छोड़े?
यूक्रेनी सरकार के सामने अब कठिन स्थिति बन गई है—

यदि वे योजना को स्वीकार करते हैं, तो कुछ इलाकों पर दावा छोड़ने की मांग आ सकती है।

अगर वे इनकार करते हैं, तो युद्ध और लंबा खिंच सकता है और अमेरिका की सहायता पर भी असर पड़ सकता है।

यूक्रेन की नेतृत्व टीम अभी अमेरिका के प्रस्ताव का अध्ययन कर रही है और सहयोगी देशों से भी सलाह ले रही है।

पिछले चार साल से जारी युद्ध का क्या है हाल?
रूस-यूक्रेन संघर्ष 2021 के अंत में शुरू हुआ था और आज तक हजारों सैनिकों व नागरिकों की जान जा चुकी है। लाखों लोग विस्थापित हुए हैं। यह युद्ध यूरोप की सबसे बड़ी सुरक्षा चुनौती बन चुका है और कई देशों में महंगाई तथा ऊर्जा संकट को भी बढ़ा चुका है।

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