यूनिफॉर्म सिविल कोड को ऐसे समझें : अब कोई पर्सनल लॉ नहीं

यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है कि देश में रहने वाले सभी नागरिकों यानी हर धर्म, जाति, लिंग के लोगों के लिए एक ही कानून होना। अगर किसी राज्य में सिविल कोड लागू होता है तो विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे तमाम विषयों में हर नागरिक के लिए एक समान कानून होगा। यूसीसी को लेकर कई परस्पर विरोधी धारणाएं और तमाम सारे भ्रम हैं। यहां ‘दस्तक टाइम्स’ ने यूसीसी को लेकर मन में उठने वाले कुछ सहज सवालों के जवाब देने की कोशिश की है।
किसी भी देश में दो तरह के कानून होते हैं। क्रिमिनल कानून और सिविल कानून। क्रिमिनल कानून में चोरी, लूट, मार-पीट, हत्या जैसे आपराधिक मामलों की सुनवाई की जाती है। इसमें सभी धर्मों या समुदायों के लिए एक ही तरह के कोर्ट, प्रोसेस और सजा का प्रावधान होता है। यानी कत्ल हिंदू ने किया है या मुसलमान ने या इस अपराध में जान गंवाने वाला हिंदू था या मुसलमान, इस बात से एफआईआर, सुनवाई और सजा में कोई अंतर नहीं होता। सिविल कानून में सजा दिलवाने की बजाय सेटलमेंट या मुआवजे पर जोर दिया जाता है। मसलन दो लोगों के बीच प्रॉपर्टी का विवाद हो, किसी ने आपकी मानहानि की हो या पति-पत्नी के बीच कोई मसला हो या किसी पब्लिक प्लेस का प्रॉपर्टी विवाद हो। ऐसे मामलों में कोर्ट सेटलमेंट कराता है, पीड़ित पक्ष को मुआवजा दिलवाता है। सिविल कानूनों में परंपरा, रीति-रिवाज और संस्कृति की खास भूमिका होती है। विवाह और संपत्ति से जुड़ा मामला सिविल कानून के अंदर आता है। भारत में अलग-अलग धर्मों में शादी, परिवार और संपत्ति से जुड़े मामलों में रीति-रिवाज, संस्कृति और परंपराओं का खास महत्व है। इन्हीं के आधार पर धर्म या समुदाय विशेष के लिए अलग-अलग कानून भी हैं।
यही वजह है कि इस तरह के कानूनों को हम पसर्नल लॉ भी कहते हैं। जैसे- मुस्लिमों में शादी और संपत्ति का बंटवारा मुस्लिम पर्सनल लॉ के जरिए होता है। वहीं, हिंदुओं की शादी हिंदू मैरिज एक्ट के जरिए होती है। इसी तरह ईसाई और सिखों के लिए भी अलग पर्सनल लॉ हैं। इधर यूनिफॉर्म सिविल कोड के जरिए पर्सनल लॉ को खत्म करके सभी के लिए एक जैसा कानून बनाए जाने की मांग की जा रही है। यानी भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए निजी मामलों में भी एक समान कानून, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। जैसे- पर्सनल लॉ के तहत मुस्लिम पुरुष 4 शादी कर सकते हैं, लेकिन हिंदू मैरिज एक्ट के तहत पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी करना अपराध है।
मुस्लिम समुदाय के लोग क्यों कर रहे विरोध?
यूनिफॉर्म सिविल कोड का सबसे ज्यादा विरोध अल्पसंख्यक खासकर मुस्लिम समुदाय के लोग कर रहे हैं। उनका कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 25 में सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है। इस कारण शादी और परंपराओं से जुड़े मामले में सभी पर समान कानून थोपना संविधान के खिलाफ है। मुस्लिम जानकारों के मुताबिक, शरिया कानून 1400 साल पुराना है। यह कानून कुरान और पैगम्बर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं पर आधारित है। लिहाजा, यह उनकी आस्था का विषय है।
संविधान में यूसीसी के बारे में क्या कहा गया है?
संविधान के अनुच्छेद 44 के भाग-4 में यूनिफॉर्म सिविल कोड की चर्चा है। राज्य के नीति-निदेशक तत्व से संबंधित इस अनुच्छेद में कहा गया है कि ‘राज्य, देशभर में नागरिकों के लिए एक यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू कराने का प्रयास करेगा।’ हमारे संविधान में नीति निदेशक तत्व सरकारों के लिए एक गाइड की तरह हैं। इनमें वे सिद्धांत या उद्देश्य बताए गए हैं, जिन्हें हासिल करने के लिए सरकारों को काम करना होता है।
बीजेपी का यूसीसी मुद्दे पर क्या स्टैंड है?
बीते दिनों एक इंटरव्यू में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था, ‘जब से हमारी पार्टी बनी है, तब से यूनिफॉर्म सिविल कोड हमारा मुद्दा रहा है। एक भी घोषणा पत्र ऐसा नहीं है, जिसमें हमने यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात न की हो। पंथ निरपेक्ष देश में कानून का आधार धर्म नहीं हो सकता। हमारे संविधान निर्माताओं ने भी कहा कि जब कभी भी अनुकूलता हो, देश के विधान मंडलों और संसद को यूनिफॉर्म सिविल कोड लाना चाहिए।’
यूसीसी का मुद्दा सबसे पहले कब उठा?
1835 में ब्रिटिश सरकार ने एक रिपोर्ट पेश की। इसमें क्राइम, एविडेंस और कॉन्ट्रैक्ट्स को लेकर देशभर में एक समान कानून बनाने की बात कही गई। 1840 में इसे लागू भी कर दिया गया, लेकिन धर्म के आधार पर हिंदुओं और मुसलमानों के पर्सनल लॉ को इससे अलग रखा गया। बस यहीं से यूनिफॉर्म सिविल कोड की मांग की जाने लगी। 1941 में बीएन राव कमेटी बनी। इसमें हिंदुओं के लिए कॉमन सिविल कोड बनाने की बात कही गई। आजादी के बाद 1948 में पहली बार संविधान सभा के सामने हिंदू कोड बिल पेश किया गया। इसका मकसद हिंदू महिलाओं को बाल विवाह, सती प्रथा, घूंघट प्रथा जैसे गलत रिवाजों से आजादी दिलाना था।
दुनिया के अन्य देशों में यूसीसी जैसा कुछ है क्या?
अभी देश में गोवा ही अकेला राज्य है जहां यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है। यह पुर्तगाली सिविल कोड 1867 के नाम से जाना जाता है। 1961 में गोवा का भारत में विलय हुआ। इसके बाद भी वहां ये कानून लागू रहा। अगर दूसरे देशों की बात करें तो ज्यादातर मुस्लिम देश शरिया लॉ फॉलो करते हैं। पाकिस्तान, इराक, ईरान, यमन और सउदी अरब जैसे देशों में सबके लिए एक ही कानून है। इजिप्ट, सिंगापुर, मलेशिया और श्रीलंका जैसे देशों में शरिया लॉ सिर्फ पर्सनल लॉ के रूप में लागू है। इजराइल में अलग-अलग धर्मों के लिए अलग फेमिली लॉ हैं। अमेरिका सहित ईसाई बहुल देशों में शादी, तलाक और संपत्ति से जुड़े मसलों के लिए सभी नागरिकों के लिए कॉमन लॉ है। अमेरिका में ट्राइबल कम्युनिटी के लिए शादी और तलाक से जुड़े मामलों में छूट है।

यूसीसी से यहां क्या कुछ बदल जाएगा?
समान संपत्ति अधिकार : बेटे और बेटी दोनों को संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा। इससे फर्क नहीं पड़ेगा कि वह किस कैटेगरी के हैं।
मृत्यु के बाद संपत्ति: अगर किसी व्यक्ति की मौत जाती है तो यूनिफॉर्म सिविल कोड उस व्यक्ति की संपत्ति को पति/पत्नी और बच्चों में समान रूप से वितरण का अधिकार देता है। इसके अलावा उस व्यक्ति के माता-पिता को भी संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा। पिछले कानून में ये अधिकार केवल मृतक की मां को मिलता था।
समान कारण पर ही मिलेगा तलाक: पति-पत्नी को तलाक तभी मिलेगा, जब दोनों के आधार और कारण एक जैसे होंगे। केवल एक पक्ष के कारण देने पर तलाक नहीं मिल सकेगा।
लिव इन का रजिट्रेशन जरूरी: उत्तराखंड में रहने वाले कपल अगर लिव इन में रह रहे हैं तो उन्हें इसका रजिस्ट्रेशन कराना होगा। हालांकि ये सेल्फ डिक्लेशन जैसा होगा, लेकिन इस नियम से अनुसूचित जनजाति के लोगों को छूट होगी।
संतान की जि़म्मेदारी : यदि लिव इन रिलेशनशिप से कोई बच्चा पैदा होता है तो उसकी जि़म्मेदारी लिव इन में रहने वाले कपल की होगी। दोनों को उस बच्चे को अपना नाम भी देना होगा। इससे राज्य में हर उस बच्चे को पहचान मिलेगी।
देवभूमि की संस्कृति के विरुद्ध हैं लिव इन के प्रावधान : करन माहरा
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू किए जाने पर कांग्रेस ने प्रदेश की भाजपा सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने समान नागरिक संहिता के प्रावधानों में एक वर्ष तक रहने वाले व्यक्ति को राज्य का निवासी मानने पर कड़ी आपत्ति की है। लिव इन को लेकर बनाए गए कानून को देवभूमि की संस्कृति के विरुद्ध बताया और कहा कि आपत्तिजनक प्रावधानों को लेकर राज्यभर में जनजागरुकता अभियान छेड़ा जाएगा। करन माहरा ने कहा कि समान नागरिक संहिता न तो व्यावहारिक और न ही संवैधानिक है। संविधान के अनुच्छेद-44 में जिस समान नागरिक संहिता की कल्पना की गई है, यह उससे काफी भिन्न है। समान नागरिक संहिता पूरे देश में लागू होने की कल्पना की गई है, किसी राज्य विशेष में नहीं। इस कानून की मांग कभी भी राज्य की सार्वजनिक मांग का हिस्सा नहीं रही। ऐसे में यह कानून राजनीतिक पैंतरेबाजी के रूप में लाया गया है।
माहरा ने कहा कि इस कानून में सबसे अधिक आपत्तिजनक लिव इन रिलेशन के बारे में किया गया प्रावधान है। इसके अंतर्गत धारा-378 से 389 तक कुल 12 धारा हैं। यह प्रदेश की संस्कृति से मेल नहीं खाती। कोई भी माता-पिता अपने बच्चों को विवाह पूर्व संबंधों के लिए मान्यता नहीं दे सकते। यह कानून अवैध संबंधों को संरक्षण प्रदान करता है। कांग्रेस को इस पर घोर आपत्ति है। उन्होंने कहा कि इस कानून का अन्य विवादास्पद प्रावधान, उत्तराखंड में मात्र एक वर्ष तक रहने वाले व्यक्तियों को राज्य का निवासी मानने से संबंधित है। यह विभिन्न संगठनों की लंबे समय से चली आ रही मांग मूल निवासियों के लिए 1950 को कट आफ वर्ष के रूप में मान्यता मिले, उसका खंडन करता है। उन्होंने कहा कि जिस प्रदेश के लिए यह कानून लाया गया, उसमें उसका पूरा प्रतिनिधित्व होना चाहिए। समान नागरिक संहिता के लिए बनाई गई समिति में प्रदेश का केवल एक ही व्यक्ति रखा गया।
देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब के खिलाफ है यूसीसी: मौलाना शाहबुद्दीन
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने के फैसले का विरोध शुरू हो गया है। आल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शाहबुद्दीन रिजवी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर तीखा हमला बोला है। ऑल इंडिया मुस्लिम जमात एक भारतीय गैर-सरकारी धार्मिक संगठन है जो सुन्नी इस्लाम के बरेलवी आंदोलन से जुड़ा है। मौलाना ने कहा, यह फैसला देश की गंगा-जमुनी तहजीब के खिलाफ है। सीएम धामी भारत में हिंदुत्व के अलंबरदार बनने की कोशिश कर रहे हैं और उनका यह फैसला पूरी तरह से एकतरफा है। उन्होंने आरोप लगाया कि यूसीसी लागू करने से पहले मुस्लिम समुदाय से कोई राय-मशविरा नहीं लिया गया और जानबूझकर उन्हें दरकिनार किया गया। मौलाना ने कहा, मुसलमान हमेशा कानून का सम्मान करता है, लेकिन अगर यूसीसी का कोई प्रावधान शरीयत के उसूलों के खिलाफ हुआ तो मुसलमान उसे मानने को मजबूर नहीं होंगे।