देहरादून(गौरव ममगाई): दशहरे पर देशभर में हर्षोल्लास से रावण दहन किया जाता है, लेकिन देश में दो गांव ऐसे भी है जहां लोग रावण दहन नहीं करते. यहां लोग युद्ध करते हुए पश्चाताप करते हैं. आपको जानकर हैरानी हो रही होगी, लेकिन यह सच है. ऐसी अनोखी परंपरा वाले गांव हैं उत्तराखंड के उत्पाल्टा और कुरोली. देहरादून जिले के कालसी ब्लॉक में बसे उत्पाल्टा और कुरोली में कई दशकों से यह परंपरा चली आ रही है. इस गांव की यह परंपरा देश-विदेश में खासी चर्चित हो रही है. इस परंपरा का आधार दो बहनों की विशेष कहानी को माना जाता है.
कैसे होता है युद्ध :::
सर्वप्रथम गांववासी चौक पर एकत्र होते हैं. ढ़ोल-नागाड़े और रणसिंघा बजाकर पर्व युद्ध शुरू होने का ऐलान करते हैं. इसके बाद ग्रामीण हाथों में गागली के डंठल व पत्तों को लहराते हुए नाचते-गाते हैं. फिर गागली के डंठल से एक दूसरे को मारते हैं. काफ़ी देर तक यह युद्ध चलता है. युद्ध संपन्न होने पर ग्रामीण एक-दूसरे को गले लगाते हैं. इसके बाद पारंपरिक तांदी, हारुल, रासो नृत्य किया जाता है.
परंपरा के पीछे यह है मान्यता :
किवदंति है कि उत्पाल्टा गांव की दो बहनें रानी और मुन्नी गांव कुछ दूरी पर स्थित एक कुएँ से पानी भरने गयी थी. पानी निकालते समय रानी अचानक कुएँ में गिर गयी. मुन्नी ने घर आकर सबको इसकी जानकारी दी. इस पर गांव वालों ने उल्टा मुन्नी पर ही आरोप लगा दिया कि उसने ही रानी को कुएँ में धक्का दिया होगा. यह बात सुनकर मुन्नी इतनी आहत हुई कि उसने भी कुएँ में कूदकर जान दे दी. जब सच्चाई का पता चला तो सबको अपनी गलती का अहसास हुआ. इस पाप से मुक्ति के लिए गांव वाले दशहरे के दिन पश्चताप करते हैं.