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जवाबदेही की मांग करता अनलॉक

अहमद रज़ा

नई दिल्ली: लॉकडाउन के चार फेज़ के बाद अब भारत अनलॉक की तरफ बढ़ रहा है। वर्तमान नियमों के अनुसार अब पाबंदियाँ सिर्फ कंटेन्मेंट ज़ोन तक ही सीमित रह गयी हैं। अन्य स्थलों को कुछ विशेष दिशानिर्देश जारी करके खोल दिया गया है। लेकिन हमें यह नही भूलना चाहिए कि कोविड महामारी न तो गयी है न ही इसके संक्रमण की गति धीमी हुई है।

संक्रमण अभी अपनी चरमावस्था पर भी नही पहुँचा, ऐसे में तालाबंदी खोलने का निर्णय विशुद्ध आर्थिक कारणों से लिया गया है। आज हम ऐसे दोराहे पर खड़े हैं, जहाँ एक ओर लोगों को बेरोजगारी और भुखमरी से बचाना है तो दूसरी ओर महामारी से। इसलिए आगे की रणनीति तय करने के लिए गंभीर चिंतन और दूरदर्शिता की ज़रूरत है।

लेकिन लॉकडाउन और अनलॉक दोनों में सरकारों की अदूरदर्शिता नज़र आ रही है। लॉकडाउन इतना कठोर था कि इसने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी। शुरुआत से ही लॉकडाउन का प्रारूप आलोचना के केंद्र में रहा था। लॉकडाउन के दौरान सामाजिक दूरी और मानव से मानव संपर्क के बिना कई कल-कारख़ाने चलाये जा सकते थे। ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल, टेलीकॉम जैसी कई ईकाइयां और सेक्टर्स ऑटोमेशन और न्यूनतम मानव संसाधनों से चलते हैं।

कुछ दिशानिर्देशों के साथ इनमें काम जारी रख सकते थे। अन्य सेक्टर्स में भी कम संसाधनों के साथ आर्थिक गतिविधि जारी रखी जा सकती थी। कृषि क्षेत्रों में छूट काफी देरी से मिली, ई-कामर्स भी जारी रखा जा सकता था। इसके अलावा रेड, ऑरेंज और ग्रीन ज़ोन की परिभाषा भी काफी कठोर थी। इन सबसे संक्रमण पर कोई विशेष अंकुश तो नही लगा लेकिन बड़े आर्थिक नुकसान हुए। माँग-आपूर्ति श्रृंखला पूरी तरीके से क्षतिग्रस्त हो गयी। यह थोड़ी भी चलती रहती तो भुखमरी, बेरोजगारी और पलायन जैसे संकट सामने नही आते। बड़ी क्षति फिर भी रोकी जा सकती थी यदि यह सिर्फ तीन हफ्ते तक ही लगाया जाता।

अनलॉक के बाद तालाबंदी की आलोचना इसलिए ज़रूरी है ताकि अनलॉक बेहतर नीति और दूरदर्शिता के साथ हो। लेकिन देखा ये जा रहा है कि अनलॉक सिर्फ आर्थिक नुकसान की भरपाई को केंद्र में रखकर किया जा रहा है। अनलॉक में पूजा स्थल खोलने जैसी कुछ ऐसी गतिविधियों की इजाज़त दी जा रही है जो अब भी ग़ैर-ज़रूरी है। सरकार की अदूरदर्शिता इसलिए भी नज़र आ रही है क्योंकि अब वह न तो भुखमरी और बेरोजगारी की समस्या को एड्रेस कर रही है न महामारी की रोकथाम के लिए कोई विशेष दिशानिर्देश जारी कर रही है।

पिछले 48 घंटों में कोरोना संक्रमण के लगभग बीस हज़ार नए मामले सामने आए हैं और छह सौ से अधिक मौतें हुई हैं। अब तक कुल कोरोना पॉजिटिव मामलों की संख्या सवा दो लाख के ऊपर है और दर्ज की गई कुल मौतों के मामले 6348 हैं। यदि संक्रमण की गति यही रही तो हफ़्ते भर में भारत इटली, ब्रिटेन, स्पेन को पीछे छोड़ते हुए कोरोनॉ की चरम स्थिति में विश्व में चौथे स्थान पर होगा।

संभव है की संक्रमण और कोविड से मौतों के पूरे मामले सामने नही आ रहे हों। यदि तालाबंदी के 10 हफ़्तों के बाद हमारे पास यही आँकड़े हैं तो यह बेहद निराशाजनक और गंभीर स्थिति है। आज भी हम महज 3000 टेस्ट/मिलियन कर रहे हैं जो बेहद कम है। यह हमारी अदूरदर्शिता और संवेदनहीनता को दिखाता है।

अब जबकि अर्थव्यवस्था पर गहरा आघात लग चुका है। सरकारों का राजस्व खाली होने की कगार पर है। ऐसे में अनलॉक इस तरीके से किया गया है जैसे कोविड-19 पर सफलता पा ली गयी हो। तेज़ी से बढ़ते संक्रमण के माहौल में किस प्रकार गतिविधियाँ शुरू हों, इसके लिए सरकारों के पास कोई नीति नही है। ऐसा लगता है सरकार ने अब अपनी जिम्मेदारी छोड़ कर जनता को अपने हाल पर छोड़ दिया है। लेकिन बिना जवाबदेही तय किये कोरोना जैसी महामारी पर अंकुश लगाना संभव नही है।

भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का ख़स्ता हाल सामने आ चुका है। महानगरों से खबरें आ रही हैं कि डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल में बेड्स नही हैं। सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य कर्मियों का बुरा हाल है। पर्याप्त टेस्टिंग किट्स उपलब्ध नही है। दिल्ली के एम्स जैसे संस्थान में 479 स्वास्थ्य कर्मी कोविड पॉज़िटिव पाए गए हैं। एम्स में ही कई स्वास्थ्य कर्मियों की मौतें हुई हैं। ये सब कोविड के कुप्रबंधन की वजह से ही हुई हैं।

निजी अस्पतालों में इलाज इतने महंगे हैं कि आम आदमी उसे वहन नही कर सकता। एक तरह से कहें तो आज देश भर में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर किसी की जवाबदेही नही है। आम आदमी इस बात से ज़्यादा डरा हुआ है कि संक्रमण हो जाने के बाद उसका क्या होगा? क्योंकि हॉस्पिटल तो मरीज को उनके हाल पर छोड़ दे रहे हैं।

ऐसे में यदि सरकार को सब कुछ पहले जैसा खोल देना है तो उसे यह बताना होगा कि यदि संक्रमण और मौतों के मामले बढ़ने लगे तो इसका जिम्मेदार कौन होगा? स्वयं जनता या सरकार? यदि जनता पर ही सब कुछ छोड़ दिया गया है तो 9 हफ़्तों की तालाबंदी करके उसे भुखमरी और अप्रवास के लिए विवश क्यों किया गया?

सरकार की तरफ से यह साफ है कि वह अब सिर्फ आर्थिक सुधार और अर्थव्यवस्था के रुके पहिये खोलने पर ध्यान दे रही है। हालांकि 10 हफ़्तों की तालाबंदी के बाद अब यह आवश्यक भी है। लेकिन कोविड की रोकथाम, उपचार और स्वास्थ्य सेवाओं से पूरी तरह मुँह फेर लेना हमें फिर से तालाबंदी की तरफ ही ले जाएगा।

ऐसे में सरकार को आगे की राह पर ध्यान देना बेहद ज़रूरी है। आर्थिक गतिविधियों को अनलॉक करें लेकिन कुछ अहम दिशानिर्देशों के साथ। गैर-जरूरी सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक जन-जमावड़ों पर अभी भी प्रतिबंध रखे। केंद्र और राज्य सरकारें कोविड की रोकथाम और उपचार को अपनी उच्च प्राथमिकता में रखें।

टेस्टिंग क्षमता में तेजी से विस्तार हो। भारत की स्थिति देखते हुए यह कम से कम पचास हजार टेस्ट प्रति मिलियन हो। कोविड-19 के मरीज के इलाज का खर्च सरकार उठाये। भले ही वह निजी अस्पताल में हो। सरकार चाहे तो बीमा कंपनियों को आगे करे, लोग सस्ती दरों पर बीमा कराएं और बीमा कम्पनियां इलाज का खर्च वहन करें। सभी राज्यों के जिला स्तर पर डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल हो। उनमें आईसीयू और वेंटीलेटर की सुविधा में तेजी से विस्तार हो।

प्रयास हो कि 50 आयुवर्ग के मरीज और को-मोर्बोडीटी के सिमटोमेटिक या एसिमटोमेटिक मरीज़ सीधे उन्नत और आधुनिक सुविधा से युक्त अस्पतालों में रखे जाएं। अन्य मेडिकल उपकरण और अच्छे गुणवत्ता के पीपीई किट्स सभी चिकित्सा कर्मियों के लिए उपलब्ध हो। सरकारें निजी अस्पतालों का व्यापक स्तर पर अधिग्रहण करें।

पैरामेडिकल स्टाफ़ की नई भर्ती हो, उन्हें विशेष ट्रेनिंग दिया जाए ताकि वे ख़ुद सुरक्षित रहकर मरीजों की बेहतर देखभाल कर सकें। यदि सरकार इन बातों को अब गंभीरता से लेती है और जितनी जल्दी हो सके इन तैयारियों को अमली जामा पहनाती है तभी कोविड-19 के लिए बेहतर प्रबंधन हो सकेगा।

वरना हमें फिर से तालाबंदी और विभिन्न आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियों के लिए भी तैयार रहना चाहिए। सरकारें और जनता दोनों ये याद रखें कि हम अब लॉकडाउन से भी क्रिटिकल अवस्था में पहुँच चुके हैं।

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