कोविड-19 के बीच एलएसी पर चीन के साथ अभूतपूर्व गतिरोध को भारी लामबंदी की जरूरत थी, बोले सेना प्रमुख नरवणे
सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ((Army Chief Gen MM Naravane) ने गुरुवार को कहा कि लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line Of Actual Control) के साथ घटनाक्रम ने पश्चिमी और पूर्वी मोर्चों पर “सक्रिय और विवादित सीमाओं” पर भारतीय सेना के सामने आने वाली चुनौतियों को जोड़ा. पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के वार्षिक सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि चीन के साथ “अभूतपूर्व” सैन्य गतिरोध को तत्काल प्रतिक्रिया और संसाधनों के बड़े पैमाने पर जुटाने की आवश्यकता थी, जब देश कोविड -19 महामारी से जूझ रहा था.
“रेसिलिएंट इंडिया” विषय पर बात करते हुए नरवणे ने महामारी का मुकाबला करने में सेना की तरफ से निभाई गई भूमिका और उन्नत हार्डवेयर और हथियार प्राप्त करने में स्वदेशीकरण पर ध्यान केंद्रित किया. उन्होंने भारत को उन्नत प्रौद्योगिकी तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सबसे कम बोली लगाने वाले को रक्षा अनुबंध देने की “एल 1 सिस्टम” को खत्म करने का आह्वान किया. चीन का नाम लिए बिना नरवणे ने एलएसी पर गतिरोध से उत्पन्न चुनौतियों पर प्रकाश डाला. एलएसी पर गतिरोध पिछले साल मई में शुरू हुआ था और जिसके चलते गलवान घाटी में संघर्ष के दौरान 20 भारतीय सैनिकों और चार चीनी सैनिकों की मौत हो गई थी.
उन्होंने कहा कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ पश्चिमी और पूर्वी मोर्चे पर हमारी सक्रिय और विवादित सीमाओं पर चल रही चुनौतियों को जोड़ा. साथ ही कहा कि कोविड -19 प्रभावित वातावरण में अभूतपूर्व विकास के लिए बड़े पैमाने पर संसाधन जुटाना, बलों के ऑर्केस्ट्रेशन और तत्काल प्रतिक्रिया की आवश्यकता थी. उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि सेना ने स्वास्थ्य संकट से निपटने में सरकार के प्रयासों को मजबूत किया.
साथ ही कहा कि प्रतिद्वंद्वी सीमाओं के हमारे अजीबोगरीब माहौल और भीतरी इलाकों में चल रहे छद्म युद्ध के कारण भारतीय सेना पूरे साल सक्रिय संचालन में है, जो हमारे देश की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करती है. कोरोना महामारी एक “अद्वितीय और अभूतपूर्व” चुनौती थी और वायु सेना ने चीन, ईरान और कुवैत जैसे देशों में फंसे नागरिकों के लिए बड़े पैमाने पर निकासी अभियान चलाया. वहीं नौसेना ने पड़ोसी देशों से हजारों फंसे भारतीयों को निकालते हुए भोजन और मेडिकल आपूर्ति के परिवहन के लिए ऑपरेशन समुद्र सेतु शुरू किया.