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UP Politics : अगड़ों के सहारे पिछड़ों की सियासत चमकाती बीजेपी

डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की नाराजगी ने बढ़ाई सियासी सरगर्मी

-संजय सक्सेना

भारतीय जनता पार्टी जो कभी अगड़ों की राजनीति करती थी, उसने पिछले दो-तीन दशक में अपना चाल, चरित्र और चेहरा काफी बदल लिया है। अब उसे अगड़ों के साथ दलित और पिछड़ों के वोटों की भी दरकार रहती है। दलितों और पिछड़ों को अपने पाले में लाने के लिए बीजेपी ने सबसे पहले उत्तर प्रदेश को इसकी ‘प्रयोगशाला’ बनाया था। यह उस दौर की बात थी जब समाजवादी पार्टी के पूर्व प्रमुख मुलायम सिंह यादव अपने आप को पिछड़ों का और बसपा सुप्रीमो मायावती दलितों का मसीहा समझती थीं। बीजेपी ने हिन्दुत्व के नाम पर इनके वोट बैंक में सेंधमारी की, जिसका परिणाम यह हुआ कि यूपी में कल्याण सिंह जैसा पिछड़ा समाज का नेता उभर कर आया। कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे थे। आज भी कल्याण सिंह के सरकार चलाने की क्षमता का लोग लोहा मानते हैं लेकिन यूपी बीजेपी में सभी पिछड़े समाज के नेताओं का भाग्य कल्याण सिंह जैसा नहीं रहा। बीजेपी में लोध समाज से आने वाले कल्याण सिंह सबसे बड़े ओबीसी नेता के तौर पर उभरे थे तो इसी समय प्रेमलता कटियार, विनय कटियार, रमापति शास्त्री, ओम प्रकाश सिंह जैसे नेता मंडल-कमंडल दोनों की राजनीति में कोई खास फिट बैठे या कहें अगड़ों की पार्टी में यह नेता कहीं न कहीं ‘पिछड़’ गये। वैसे बता दें कि कल्याण सिंह जैसे बड़े नेता को भी कई बार पार्टी के भीतर अपमानित होना पड़ा था। एक बार तो उन्होंने पार्टी तक छोड़ दी थी।

बीजेपी ने 2014 से मंडल की राजनीति को जिस तरह हिन्दुत्व में समाहित कर यूपी में सपा-बसपा, कांग्रेस के सारे समीकरण ध्वस्त कर दिए, उसके बाद भी बीजेपी में पिछड़े समाज के नेताओं की ‘ताकत’ में इजाफा नहीं हो पाया। क्षत्रिय मुख्यमंत्री और संगठन में शीर्ष पदों पर सवर्ण नेताओं के बीच पार्टी ने पिछड़ों को लुभाने के लिए अपने ओबीसी नेताओं को आगे करने की बजाये अपना दल, निषाद समाज और ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा को अपने पाले में लाकर पटेल, निषाद और राजभर जैसी जातियों को भरोसा हासिल किया। यही वजह है कि 2022 के पहले स्वामी प्रसाद, दारा सिंह जैसे बड़े नेताओं के पाला बदलने का भी फर्क चुनाव में नहीं पड़ा। बीजेपी 255 सीटों के साथ दोबारा सत्ता में आई। संभवत: इसी के साथ बीजेपी के लिए उसके पिछड़ा समाज से आने वाले नेता और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की ‘कीमत’ भी कम हो गई है। योगी टू सरकार में केशव प्रसाद मौर्य को कोई बहुत महत्वपूर्ण सरकारी विभाग भी नहीं दिया गया है।

उत्तर प्रदेश में बीजेपी की पिछड़ा सियासत के बड़े खिलाड़ी और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को भी इस बात का अहसास हो रहा है कि बीजेपी आलाकमान और योगी सरकार उनके साथ ‘यूज एंड थ्रो’ वाली राजनीति कर रही है। इसी के चलते वह आजकल अपनी ही सरकार और संगठन (बीजेपी) से नाराज चल रहे हैं। इससे भी बड़ी बात यह है कि केशव की नाराजगी दूर करने का अभी तक न तो बीजेपी आलाकमान ने किसी तरह की पहल की है और न ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने डिप्टी सीएम के गुस्से की फिक्र करते नजर आ रहे हैं, जो काफी चौंकाने वाला है। वैसे यह बता देना जरूरी है कि केशव अक्सर ही अपने सियासी दांवपेंच के चलते सुर्खियों में बने रहते हैं। उनकी नाराजगी को राजनैतिक गलियारों में गंभीरता से लिया जाता है, क्योंकि सब जानते हैं कि बीजेपी की पिछड़ा सियासत में केशव बड़ा चेहरा हैं। खासकर पिछड़ा समाज को लुभाने के लिए बीजेपी आलाकमान वर्षों से केशव प्रसाद मौर्य की ‘ताकत’ का इस्तेमाल करता रहा है।

पूर्वांचल में केशव का खास दबदबा है। केशव की ताकत का अंदाजा इसी से लग जाता है कि बीजेपी ने 2017 का विधानसभा चुनाव केशव प्रसाद मौर्य को सीएम के चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट करके लड़ा और समाजवादी पार्टी को बड़े अतंर से हार का सामना पड़ा था, लेकिन जब सीएम बनने की बारी आई तो केशव मौर्य को उनके खिलाफ चल रहे कुछ मुकदमों का हवाला देते हुए साइड लाइन कर दिया गया और बीजेपी आलाकमान ने हिन्दुत्व का नया प्रयोग करते हुए सीएम के रूप में गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आत्दियनाथ का चेहरा आगे कर दिया परंतु बाद में पिछड़ों की नाराजगी को भांपते हुए केशव प्रसाद मौर्य को डिप्टी सीएम की कुर्सी दी गई, जिस पर बैठने से पहले तो केशव ने मना कर दिया, लेकिन हाईकमान के कहने पर उन्हें बेमन से डिप्टी सीएम बनना पड़ गया। उनके साथ ही ब्राहमणों को लुभाने के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर डा. दिनेश शर्मा को भी उप मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ दिलाई गई। बाद में दिनेश शर्मा की जगह बृजेश पाठक को यह (उप मुख्यमंत्री की) जिम्मेदारी सौंप दी गई। केशव डिप्टी सीएम तो बन गये थे, लेकिन इसके साथ ही उनकी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ ट्यूनिंग नहीं बैठने की खबरें भी आने लगीं।

केशव प्रसाद मौर्य व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कालिदास मार्ग पर सरकारी आवास अगल-बगल था, परंतु इनके बीच मुलाकात नहीं होती थी। हद तो तब हो गई जब केशव प्रसाद मौर्य के पिता का निधन हो गया और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उनके आवास जाकर शोक व्यक्त करने में हफ्तेभर का समय लग गया। इसके बाद तो अक्सर ही कुछ महीनों के अंतराल पर योगी और केशव के बीच मनमुटाव की खबरें आम होने लगीं, जिसको समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव खूब हवा देते हैं। अखिलेश डिप्टी सीएम को स्टूल वाला उप मुख्यमंत्री तक कहकर संबोधित करते रहे हैं। वह अक्सर कहते रहते हैं कि केशव यदि समाजवादी पार्टी में आ जायें तो समाजवादी पार्टी उन्हें सीएम बना देगी। दरअसल बीजेपी में केशव प्रसाद मौर्य की बेइज्जती की खबरें फैलाकर अखिलेश पिछड़ों को बीजेपी के खिलाफ भड़काने की मुहिम लम्बे समय से चला रहे हैं। इधर आजकल एक बार फिर से केशव प्रसाद मौर्य की नाराजगी की खबरें आ रही हैं। हाल ही में अयोध्या में योगी की कैबिनेट की बैठक और इसके बाद अयोध्या में ही दीपोत्सव कार्यक्रम से लेकर अन्य कई सरकारी कार्यक्रमों में केशव प्रसाद मौर्य की अनुपस्थिति को केशव की नाराजगी से जोड़कर देखा जा रहा है। इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं। क्या यह महज एक संयोग है या फिर बात कुछ और है। आजकल केशव प्रसाद मौर्य के मन में क्या चल रहा है, इसे लेकर कई सवाल उठ रहे हैं।

जरूरी नहीं कि हर बात जुबान से कही जाए। कई बार तो इशारे और कुछ मौकों पर उनकी गैर मौजूदगी ही सब कुछ कह जाती है जिन्हें समझना है वे समझ ही जाते हैं। केशव प्रसाद मौर्य पिछड़ा समाज से आते हैं और पिछड़ा समाज को लुभाने के लिए बीजेपी एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है, फिर केशव की अनदेखी क्यों हो रही है, इस सवाल का जवाब हर जागरूक नागरिक और बीजेपी के नेता/कार्यकर्ता जानना चाहते हैं। केशव की नाराजगी या कहें पार्टी में उनकी अनदेखी के चलते राजनीति के गलियारे में यह चर्चा आम है कि बीजेपी क्यों किसी बड़े दलित या पिछड़ा समाज के नेता को आगे बढ़ा या पचा नहीं पाती है।

आज बीजेपी में पिछड़े और दलित नेताओं का पूरी तरह से अभाव है, जो एक-दो दलित या ओबीसी नेता सामने दिखाई भी देते हैं, उनकी अपने समाज में पैठ नहीं के बराबर है। कुल मिलाकर आज की तारीख में बीजेपी आलाकमान ने दलितों और ओबीसी को लुभाने के लिए अपने कुछ अगड़ी जाति के नेताओं को आगे कर रखा है। ऐसे में लोकसभा चुनाव के समय यह सही तरह से पता चल पायेगा कि दलितों और ओबीसी समाज को ऊंची जाति के रहनुमाओं की सरपरस्ती कितनी रास आती है? सीएम योगी और डिप्टी सीएम केशव के मनमुटाव की खबरें आती रहती हैं। इसीलिए पूछा जा रहा है यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य दीपोत्सव कार्यक्रम में अयोध्या क्यों नहीं गए? जितने लोग, उतनी बातें। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक समेत कई मंत्री उस दिन वहां मौजूद रहे। केशव प्रसाद मौर्य के लिए हेलिकॉप्टर लखनऊ में था। अयोध्या रवाना होने से पहले डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक अपने सहयोगी डिप्टी सीएम मौर्य के घर पहुंचे। दोनों लोगों को एक ही हेलिकॉप्टर से अयोध्या जाना था, लेकिन केशव मौर्य ने पेट में दर्द के कारण अयोध्या यात्रा रद्द कर दी।

ब्रजेश पाठक को अकेले अयोध्या जाना पड़ा, बताया जाता है कि इसी हेलिकॉप्टर में एक ऐसे व्यक्ति बैठे थे जिनका साथ डिप्टी सीएम केशव को पसंद नहीं है, पर क्या यही असली वजह थी, यह केशव ही बता सकते हैं। यह सवाल इसीलिए उठ रहा है कि क्योंकि पिछले कुछ दिनों में केशव प्रसाद कई मौकों पर गैरहाजिर रहे। लखनऊ से बाहर पहली बार अयोध्या में 9 नवंबर को यूपी कैबिनेट की बैठक हुई। योगी सरकार के सभी मंत्रियों ने पहले हनुमानगढ़ी में पूजा की, फिर सबने रामलला के दर्शन किए। कैबिनेट की मीटिंग में डिप्टी सीएम केशव नहीं पहुंचे। अयोध्या में योगी कैबिनेट की बैठक में केशव के न पहुंचने पर बताया गया कि उन्हें एमपी चुनाव की जिम्मेदारी दी गई थी, इसलिए वह नहीं आ पाये। इसके बाद लखनऊ में होते हुए भी जब मौर्य अयोध्या में हुए भव्य दीपोत्सव में नहीं पहुंचे तो सोशल मीडिया पर तरह तरह की चर्चाएं शुरु हो गईं।

गौर करने वाली बात यह है कि इससे पूर्व लखनऊ में होने के बावजूद केशव मौर्य 31 अक्टूबर की कैबिनेट की बैठक में भी शामिल नहीं हुए थे। उसी दिन मुख्यमंत्री ने लोकभवन में मंत्रिमंडल के सहयोगियों के साथ अभिनेत्री कंगना रनौत की फिल्म तेजस देखी, लेकिन उसमें भी मौर्य दिखाई नहीं दिए। उस दिन लखनऊ में आयोजित दूसरे कार्यक्रमों में मौर्य शामिल हुए थे। खैर, जहां तक बात केशव की नाराजगी में विपक्ष के चटखारे लेने की है तो समाजवादी पार्टी तो केशव के मामले में मौके की ताक में बैठी ही रहती थी। उसे यह मौका सोशल मीडिया के एक पोस्ट से मिल गया। केशव प्रसाद मौर्य ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर एक री-पोस्ट किया था, बाद में उसे हटा लिया गया। डायल 112 में काम करने वाली लड़कियां अपना वेतन बढ़ाने को लेकर धरने पर थीं, इस पर एक रिपोर्ट को डिप्टी सीएम केशव ने री-पोस्ट कर दिया था। समाजवादी पार्टी के चर्चित प्रवक्ता आईपी सिंह ने उनका यह पोस्ट शेयर किया है। उन्होंने लिखा है कि बीजेपी पिछड़ा और दलित विरोधी है। जातीय जनगणना की मांग करने के कारण बीजेपी अब डिप्टी सीएम मौर्य से किनारा कर रही है।

बहरहाल, तमाम किन्तु-परंतुओं के बीच सोशल मीडिया से लेकर सत्ता के गलियारों में तरह तरह की बातें हो रही हैं, बीजेपी कैंप में भी इस बात को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। पूरे मामले में केशव प्रसाद मौर्य खामोश हैं। यह भी कहा जा रहा है कि उन्हेंफूलपुर से लोकसभा चुनाव भी लड़ाया जा सकता है। हाल के दिनों में वे दिल्ली जाकर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी मिलते रहे हैं। कुछ दिनों पहले गृह मंत्री अमित शाह से भी उनकी मुलाकात हुई थी। साल 2017 में चौदह साल के बनवास के बाद यूपी में बीजेपी की सरकार बनी थी, तब केशव प्रसाद मौर्य प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष थे। उनका नाम मुख्यमंत्री के दावेदारों में था पर मौका योगी आदित्यनाथ को मिला था।

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