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UP Politics : अब कृष्ण बनेंगे सियासी महाभारत में सारथी

जितेन्द्र शुक्ला

मर्यादा पुरुषोत्त श्रीराम के बाद अब श्रीकृष्ण राजनीति की नैया के खैवईया बनेंगे? यह बात सुनने में थोड़ी अटपटी जरूर लगती है लेकिन इसके लिए थोड़ा पीछे जाकर गुजरे कालखण्ड पर गौर करना होगा। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानि आरएसएस के दूसरे एजेण्डे को पूरा करने के लिए कमर कस ली गयी है। आजादी के बाद पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने श्रीकृष्ण जन्म भूमि के दर्शन किए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस कदम के बाद अब यह कयास लगाये जाने लगे हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा भगवान श्रीराम के साथ भगवान श्रीकृष्ण को भी अपने रथ का सारथी बनाने जा रही है ताकि राजनीति के कुरुक्षेत्र में विपक्ष को पराजित किया जा सके। इस बात को इसलिए भी और बल मिलता है क्योंकि श्रीकृष्ण जन्मभूमि को आने वाले समय में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तर्ज पर विकसित किए जाने की योजना पर तेजी से काम हो रहा है। सर्वविदित है कि भाजपा के संकल्प पत्र के तीर्न ंबदु रहे हैं- अयोध्या, मथुरा और काशी। संकल्प यहां बाधाओं को दूर कर भव्य मंदिर निर्माण का है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मथुरा दौरे के दौरान स्पष्ट कर दिया कि अयोध्या, काशी बदल गए हैं। अब मथुरा में दिव्यता से दर्शन का लक्ष्य बाकी है, जिस पर आगे बढ़ने की तैयारी है। प्रधानमंत्री मोदी ने मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि पहुंचकर गर्भ गृह में दर्शन-पूजन किया। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने जहां इसे अपना सौभाग्य करार दिया वहीं उन्होंने इशारों ही इशारों में कई संकेत भी दे दिए।

भले ही प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी ने श्रीकृष्ण जन्म स्थान के दर्शन पहली बार किए हों, लेकिन 32 साल पहले मोदी यहां आए थे। 1991 में भाजपा के संगठन मंत्री के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिनिधि सभा की बैठक में आए थे। तब उन्होंने श्रीकृष्ण जन्मस्थान के गर्भगृह में दर्शन किए थे। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मथुरा चौथी बार पहुंचे थे। यहां उन्होंने कृष्ण का गुजरात से तथा मीरा का राजस्थान से रिश्ता जोड़ा। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री मोदी ने मां गंगा के पुराने संवाद को दोहराते हुए अबकी बार स्वयं को कृष्ण से जोड़ा। कृष्ण के द्वारकाधीश बनने में गुजरात की भूमिका की याद दिलाई। अपने सम्बोधन में उन्होंने कहा कि यहां वही आता है, जिसे श्रीकृष्ण बुलाते हैं। यह कहते हुए स्वयं को कृष्ण भक्त बताया। इसके आगे काशी के विश्वनाथ धाम की बदली तस्वीर का चित्रण करते हुए कहा कि अब अयोध्या में राम मंदिर की तिथि आ गई है, अब वो दिन दूर नहीं जब यहां भगवान कृष्ण के दर्शन और भी दिव्य रूप में होंगे। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद कुछ लोग भारत को अतीत से काटना चाहते थे, लेकिन हम विरासत पर गर्व करते हैं। मोदी ने संबोधन का समापन करते हुए कहा कि महाभारत प्रमाण है कि जब पुनरुत्थान होता है तो वहां श्रीकृष्ण का आशीर्वाद होता है। हम उन्हीं के आशीर्वाद से संकल्प को पूरा करेंगे।

दरअसल, ब्रज क्षेत्र में मीरा बाई का 525वां जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। इसी कार्यक्रम में शामिल होने प्रधानमंत्री मोदी यहां पहुंचे थे। यहां पीएम मोदी ने मीराबाई के सम्मान में एक विशेष डाक टिकट और सिक्का भी जारी किया। मीराबाई को भगवान श्री कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति के लिए जाना जाता है। उन्होंने कई भजनों व छंदों की रचना की, जो आज भी लोकप्रिय हैं। पीएम मोदी ने कहा कि मथुरा और ब्रज विकास की दौड़ में पीछे नहीं रहेंगे। यहां भगवान के दर्शन और भी दिव्यता से होंगे। मुझे खुशी है कि यहां ब्रज तीर्थ विकास की स्थापना की गई है। संतों ने कहा है कि वृंदावन सा वन नहीं, नंदगांव जैसा गांव नहीं और वंशी वट जैसा कहीं वट नहीं। उन्होंने कहा कि यह साधारण धरती नहीं है। ब्रज की रज भी पूरे संसार में पवित्र मानी जाती है। यहां कण-कण में राधा और कृष्ण समाए हैं। दिलचस्प संयोग यह है कि प्रधानमंत्री मोदी का कार्यक्रम ऐसे समय में हुआ, जब हाईकोर्ट ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर कारिडोर बनाए जाने के लिए हरी झंडी दे चुका है। मथुरा और वृंदावन में विकास की तस्वीर बदलने का सपना भी प्रधानमंत्री मोदी अपने संबोधन के जरिए जगा गए हैं।

देवोत्थान एकादशी पर प्रधानमंत्री का मथुरा जाना और श्रीकृष्ण जन्मभूमि का दर्शन करने के अब सियासी मायने तलाशे जाने लगे हैं। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण प्रारम्भ हो जाने के बाद संघ और भाजपा के एजेण्डे में मथुरा और काशी ही शेष रह गए हैं। काशी में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वे का काम पूरा हो चुका है और आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया अब रिपोर्ट तैयार कर कोर्ट को सौंपने वाली हैं। एक ओर श्रीकृष्ण जन्मभूमि के एडवोकेट कमिश्नर से सर्वे कराए जाने के प्रकरण की इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है, वहीं दूसरी ओर प्रदेश की योगी सरकार काशी विश्वनाथ की तर्ज पर मथुरा में कॉरिडोर के निर्माण की प्रक्रिया को कोर्ट की बाधाओं को पार करते हुए काफी हद तक आगे बढ़ा चुकी है।

दरअसल, मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि का केस इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रहा है। श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर की 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक को लेकर ही पूरा मामला है। वर्तमान में श्रीकृष्ण जन्मस्थान के पास 10.9 एकड़ जमीन का मालिकाना हक है जबकि लगभग ढाई एकड़ जमीन का मालिकाना हक शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। हिन्दू पक्ष शाही ईदगाह मस्जिद को अवैध तरीके से कब्जा करके बनाया गया ढांचा बताता है और इस जमीन पर भी दावा करता आया है। हिन्दू पक्ष का दावा है कि अयोध्या की तरह मुगल शासक औरंगजेब ने 1670 ईसवी में मथुरा में केशवदेव का मंदिर तोड़कर शाही ईदगाह मस्जिद बनाई थी। हिन्दू पक्ष की याचिका में मंदिर स्थल से ईदगाह मस्जिद को हटाने की अपील की गयी है। कुल मिलाकर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विपक्ष की जातिय गोलबंदी को काउण्टर करने के लिए अयोध्या के बाद अब संघ और भाजपा के रणनीतिकारों ने मथुरा की ओर रुख किया है। श्रीकृष्ण को 2024 में होने वाले राजनीतिक महाभारत में अपना सारथी बनाने के लिए भाजपा ने कदम बढ़ा दिया है।

काशी विश्वनाथ की तर्ज पर बनेगा बांके बिहारी कॉरिडोर

इलाहाबाद हाईकोर्ट से श्री ठाकुर बांके बिहारी के कॉरिडोर निर्माण का रास्ता साफ होने के साथ ही अब वहां के दिन बहुरने वाले हैं। बिहारीजी कॉरिडोर निर्माण होने के बाद एक साथ 10 हजार लोग आराध्य के दर्शन कर सकेंगे। कॉरिडोर 5.65 एकड़ क्षेत्र में प्रस्तावित है। इसका डिजाइन काशी कॉरिडोर की तर्ज पर तैयार किया गया है। व्यवस्थाएं भी उसी तर्ज पर संचालित होने की बात कही जा रही हैं। कॉरिडोर बिहारीजी मंदिर के सामने 5.65 एकड़ क्षेत्र में प्रस्तावित है, जो जमीन की भौगोलिक स्थिति के चलते दो हिस्सों में होगा। इसे विद्यापीठ और परिक्रमा मार्ग से जोड़ा गया है। प्रस्तावित कॉरिडोर में बिहारीजी के भक्तों की प्रत्येक सुविधा का ध्यान रखा गया है। इसमें एक साथ 10 हजार लोगों की मौजूदगी हो सकेगी। इस पर करीब 505 करोड़ रुपये के खर्च का आकलन किया गया है, जिसके लिए करीब 276 से अधिक दुकान और मकानों का अधिग्रहण किया जाएगा। इसमें 149 आवासीय, 66 व्यावसायिक, 57 मिश्रित भवन हैं। काशी कॉरिडोर के पैटर्न पर प्रस्तावित बांके बिहारी कॉरिडोर की सीढ़ियां चढ़ते ही इसकी खूबसूरती भी बढ़ती जाएगी। कदंब और करील के पौधे कॉरिडोर में अपनी आभा बिखेरेंगे। कॉरिडोर के साथ ही श्रीबांकेबिहारी मंदिर के परिक्रमा मार्ग को भी नया स्वरूप दिया जाना है। इसके लिए भी बिहारीजी के आसपास की जमीन भी आपसी सहमति से ली जानी है। दरअसल बीती 18 सितंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट में बिहारीजी कॉरिडोर को लेकर सुनवाई हुई। इस सुनवाई पर कोर्ट के समक्ष जिला प्रशासन ने कॉरिडोर का प्रेजेंटेशन दिया था। इससे बताया गया कि अभी बांकेबिहारी मंदिर परिसर मदन मोहन मंदिर ट्रस्ट के नाम पर है। प्रस्तावित कॉरिडोर गेट संख्या एक से लेकर यमुना क्षेत्र की ओर 5.65 एकड़ जमीन आपसी सहमति से लेकर उस पर कॉरिडोर का निर्माण कराएगी। इससे पहले उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष इसका प्रजेंटेशन दिया था।

श्रीबांकेबिहारी मंदिर के लिए प्रस्तावित कॉरिडोर बनने के बाद श्रद्धालुओं की राधारमण, मदन मोहन देव तक पहुंच बहुत आसान हो जाएगी। ये दोनों ही प्राचीन मंदिर कॉरिडोर में पहुंच भक्तों को साफ नजर आएंगे। उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद की योजना बिहारीजी मंदिर तक आने वाले भक्तों को सुगमता पूर्वक अन्य प्राचीन मंदिरों तक पहुंचाने का भी है। प्रस्तावित कॉरिडोर योजना को और आकर्षक एवं मोहक बनाने के लिए उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद ने यमुना पर सस्पेंशन पुल का भी प्रस्ताव तैयार किया है। यह सस्पेंशन पुल कॉरिडोर के सामने ही यमुना पर बनाया जाएगा। इससे यमुना एक्सप्रेस-वे की ओर से वृंदावन आने वाले श्रद्धालुओं के वाहनों की पार्किंग की सुविधा यमुना पार की जाएगी। इसके बाद श्रद्धालु ई-रिक्शा आदि छोटे वाहन से सस्पेंशन पुल के माध्यम से कॉरिडोर तक आ सकेंगे।

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