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Urratakhand : मील का पत्थर साबित होंगे राष्ट्रीय खेल

एशियन गेम्स 1982 ने राजधानी दिल्ली को कुछ ही दिनों में तमाम खेलों के इंटरनेशनल आयोजन के लिए तैयार कर दिया था। इसके बाद खेलों के इन्फ्रास्ट्रक्चर का पूरे देश में इतना विस्तार हुआ कि अब हम ओलंपिक की मेज़बानी के लिए खुद को तैयार कर चुके हैं। 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों के लिए नई दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम का निर्माण और 2017 में फीफा अंडर 17 विश्व कप के लिए कोलकाता में साल्ट लेक स्टेडियम का निर्माण इस बात के उदाहरण हैं कि कैसे खेलों ने शहरीकरण और बुनियादी ढांचे की वृद्धि को प्रेरित किया है।

राष्ट्रीय खेलों ने होटल और रेस्टोरेंट उद्योग को दी ऊंची उड़ान
राष्ट्रीय खेलों की मेज़बानी ने उत्तराखंड के होटल और रेस्टोरेंट उद्योग को ऊंची उड़ान भरने का मौका दे दिया है। ऐसा लग रहा है देहरादून से लेकर पिथौरागढ़ तक होटलों की सहालग चल रही हो। जहां राष्ट्रीय खेलों के इवेंट्स हैं वहां की तो छोड़िए, आस-पास के छोटे-छोटे कस्बों तक के होटलों की बुकिंग लगभग फुल हो चुकी है। इस माहौल ने होटल व्यवसाय से जुड़े लोगों को पूरी तरह से चार्ज कर दिया है। अपने कस्टमर को बेहतर से बेहतर सुविधाएं देने की होड़ सी मची हुई है। दरअसल राष्ट्रीय खेलों के जरिए उत्तराखंड अपने यहां पर्यटन की संभावनाओं का विस्तार आंकने का मौका छोड़ना नहीं चाहता। यही वजह है कि होटल और रेस्टोरेंट व्यवसाई यहां आने वाले खिलाड़ियों, अधिकारियों और कोचिंग व सपोर्टिंग स्टॉफ के लिए गाइड की अतिरिक्त भूमिका भी निभा रहे हैं।

टूरिस्ट गाइड की भूमिका भी निभा रहे होटल कर्मचारी
दरअसल उन्हें पता है कि राष्ट्रीय खेलों के इस महोत्सव के दौरान इस आयोजन से जुड़े लोगों के पास नामचीन पर्यटन स्थल देखना बहुत ज्यादा संभव नहीं होगा, इसलिए वे उन्हें उन छिपी और खूबसूरत वादियों के बारे में जानकारी देकर उन्हें एक्सप्लोर करने के लिए यहां पहुंचे मेहमानों को लुभा रहे हैं जिन्हें देखने केलिए वे दोबारा परिवार के साथ आना पसंद करें। इसके लिए वे आकर्षक टूर पैकेजों के बारे में उन्हें बता रहे हैं। हर होटल और रेस्टोरेंट कर्मचारी यहां आने वाले खिलाड़ियों और अधिकारियों को उत्तराखंड की गुप्त और कम भीड़-भाड़ वाली वादियों के बारे में बारीक से बारीक जानकारी दे रहा है। मसलन उन्हें किस महीने आना चाहिए, अपनी पॉकेट के अनुसार किस जगह पर कौन सा होटल लेना चाहिए, ट्रैवल के लिए टैक्सी कैसे हायर करें वगैरह-वगैरह। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी मानते हैं कि राष्ट्रीय खेलों का आयोजन खेलों के साथ ही उत्तराखंड को भी आगे बढ़ाएगा। इसके लिए हम सभी की जि़म्मेदारी है कि खिलाड़ियों और मेहमानों को हम अच्छा महसूस करवाएं।

कुमाऊं और गढ़वाल को खेलों का स्थाई इन्फ्रास्ट्रक्चर मिलेगा
गढ़वाल में 23 और कुमाऊं में 15 प्रतियोगिता होंगी। यहां इन खेलों के लिए स्थाई इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया गया है जो भविष्य में इस राज्य के खेलों और खिलाड़ियों के उत्थान में मदद करेगा। यहां इन खेलों से एक माहौल तैयार हो जाएगा। तैयार इन्फ्रास्ट्रक्चर में विभिन्न खेलों की अकादमियां खुल सकेंगी, जो खेलों के लिए एक रोड मैप तैयार कर देंगी। अभी यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर नाम मात्र का ही था। गढ़वाल के देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश, कुमाऊं के नैनीताल, हल्वानी और रुद्रपुर और गुलरभोज में खेलों का स्थाई इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार हो रहा है, जिसका अगले कुछ वर्षों में उत्तराखंड को फायदा दिखने लगेगा।

राज्य में कई नए स्टेडियम, पुराने खेल स्ट्रक्चर का रेनोवेशन
राष्ट्रीय खेलों के लिए राज्य सरकार ने कई नए खेल मैदान विकसित किए। इसके अलावा बहुउद्देशीय हॉलों और पहले से मौजूद स्टेडियमों का पुनर्निर्माण किया गया। वाटर स्पोट्र्स के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के अलावा स्वीमिंग पूलों को रेनोवेट कर चालू करवाया गया। हरिद्वार, देहरादून, रुद्रपुर और हल्द्वानी को स्पोट्र्स सिटी के रूप में तब्दील करने की प्रक्रिया पहले से ही चल रही है। देहरादून की शूटिंग रेंज को नए और अत्याधुनिक उपकरणों से पहले ही लैस कर दिया गया है। इसके अलावा गल्र्स स्पोट्र्स कॉलेज बनने के बाद उत्तराखंड में खेलों के लिए माहौल तैयार हो जाएगा। उत्तरकाशी और चंपावत में भी स्टेडियम बनकर तैयार हो गए हैं। राष्ट्रीय खेलों के बाद उत्तराखंड में खेलों को नया रंग-रूप और विस्तार मिल जाएगा, इसमें किसी तरह का कोई संदेह नहीं।

2009 में यूपी से झारखंड चले गए थे राष्ट्रीय खेल : आनंदेश्वर पांडेय
आश्चर्यजनक बात यह है कि उत्तराखंड ने उत्तर प्रदेश से अलग होने के 25 वर्षों के अंदर ही अपने प्रदेश में राष्ट्रीय खेलों का आयोजन कराने की उपलब्धि हासिल कर ली लेकिन यूपी को आज तक यह मौका नहीं मिल सका। इस बारे में यूपी ओलंपिक एसोसिएशन के महासचिव आनंदेश्वर पांडेय कहते हैं कि 2009 में यूपी को नेशनल गेम्स की मेज़बानी मिली थी लेकिन यूपी में स्पोट्र्स कोड लागू हो जाने की वजह से यहां से यह खेल झारखंड शिफ्ट कर दिए गए। दरअसल, स्पोट्र्स कोड ओलंपिक चार्टर के खिलाफ था। उन्होंने कहा कि इसके बाद हम मेज़बानी का दावा इसलिए नहीं कर पाए, क्योंकि इसके लिए सरकार की ओर से हरी झंडी मिलना जरूरी होता है। सरकार तैयार होगी तो हम भविष्य में नेशनल गेम्स की मेज़बानी के लिए जरूर प्रयास करेंगे।

ओलंपिक 2036 का लक्ष्य दिखाएंगे नेशनल गेम्स
राष्ट्रीय खेलों के आयोजन से उत्तराखंड में खिलाड़ियों के भारत की मेजबानी में होने वाले 2036 के ओलंपिक खेलों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने का मौका मिल सकता है। यह खेल देवभूमि के खिलाड़ियों के लिए ओलंपिक में भागेदारी का सपना देखने के लिए बड़ा प्लेटफॉर्म साबित हो सकता है। इस आयोजन से वहां खेलों के विस्तार की संभावनाएं तो बढ़ेंगी ही, तीरंदाजी (आर्चरी) को भी काफी लोकप्रियता मिलेगी, क्योंकि तीरंदाजी का आयोजन उत्तराखंड में पहली बार हो रहा है। देखा जाए तो अभी तक एक या दो खेलों को छोड़कर वहां से अन्य खेलों में बहुत ज्यादा खिलाड़ी उभर कर सामने नहीं आ सके हैं। पूरी उम्मीद है कि राष्ट्रीय खेल में तीरंदाजी इवेंट्स इस राज्य में अपने लिए स्थाई जगह बना लेगा। बुनियादी तौर पर इस खेल से यहां के खिलाड़ियों को बहुत फायदा होगा। अभिभावक भी इस खेल को देखने के बाद अपने बच्चों को इस खेल के लिए प्रेरित करेंगे, क्योंकि जब एक बार आप आर्चरी शुरू करते हैं तो आपकी इसमें दिलचस्पी बढ़ जाती है। यह खेल खिलाड़ी को दृष्टि, धैर्य, फोकस और मानसिक संतुलन नियंत्रित रखने की क्षमता को भी बढ़ता है और यह आपके पूरे जीवन में काम आता है। आपके बगल में कोई ढोल भी बजा रहा होगा तो आप पर उसका कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि यह खेल लक्ष्य के प्रति आपको फोकस रखना बखूबी सिखाता है। यह आम जीवन में आपको शांत कोमल और धैर्यवान बनाता है। उत्तराखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मैं तीन-चार बार व्यक्तिगत रूप से मिल चुका हूं। वे खेलों के प्रति काफी उत्साहित हैं। उनका फोकस और लक्ष्य उत्तराखंड में खेलों को बढ़ाने का है। उनकी इच्छा है कि वहां के खिलाड़ी भी खेलों में काफी आगे तक जाएं।
-डॉ. अरविंद यादव, रियो 2016, पेरिस 2024 ओलंपिक, एशियन गेम्स 2014-2018 में भारतीय तीरंदाजी टीम के फीजियोथेरेपिस्ट

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