दस्तक-विशेष

जीईपी लागू करने वाला पहला राज्य बना उत्तराखंड

दस्तक टाइम्स ब्यूरो, देहरादून

उत्तराखंड सरकार ने सूबे में सबसे पहले समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू कर सामाजिक न्याय की दिशा में ऐतिहासिक निर्णय लिया और अब सकल पर्यावरणीय उत्पाद (जीईपी) को लागू कर पर्यावरण स्वास्थ्य की दिशा में क्रांतिकारी कदम उठाया है। सामान्य रूप में पर्यावरणीय स्वास्थ्य के प्रति सभी राज्र्य चिंता तो व्यक्त करते हैं, लेकिन इस दिशा में किसी भी राज्य ने अब तक कोई ठोस पहल नहीं की। परंतु मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यह स्पष्ट कर दिया कि हिमालयी राज्य उत्तराखंड में जितनी महत्वपूर्ण आर्थिक तरक्की है, उतना महत्व पर्यावरणीय स्वास्थ्य का भी होगा। सीएम धामी के इस ऐतिहासिक निर्णय के बाद देशभर में सभी राज्यों में जीईपी के महत्व पर जोर दिया जाने लगा है। आज विश्व में जलवायु परिवर्तन को ज्वलंत समस्या के रूप में देखा जा रहा है। इससे पर्यावरण को क्षति पहुंच रही है, जिससे आमजन जीवन प्रभावित हो रहा है। जिस प्रकार जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करना अति आवश्यक है, उसी प्रकार पर्यावरण के मूल घटकों का संरक्षण भी बेहद आवश्यक है। इसमें हवा, मिट्टी, पानी व जंगल को शामिल किया गया है। उत्तराखंड में लागू किये गये जीईपी के अंतर्गत अब उत्तराखंड सरकार राज्य की जीडीपी की गणना की भांति पर्यावरणीय घटकों का भी आकलन करेगी। इससे इन चारों घटकों की मात्रा व शुद्धता का पता लग सकेगा और परिस्थिति के अनुसार आवश्यक कदम उठाये जा सकेंगे। इसलिए जीईपी को सामान्य भाषा में प्रकृति के स्वास्थ्य का सूचक या संकेतक के रूप में भी जाना जाता है।

जीईपी को लागू करना उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्य के लिए इसलिए भी बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि 86 प्रतिशत पर्वतीय भूभाग होने के कारण यह ग्लेशियर, वन संपदा व जल संसाधनों से संपन्न है। राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय शोध रिपोर्ट में यह सामने आया है कि जलवायु परिवर्तन का दुष्परिणाम हिमालयी राज्यों में आपदा के रूप में भी देखने को मिल रहा है। इनमें ग्लेशियर का टूटना एवं पिघलना, नदी जल स्तर कम होना, बाढ़, भूस्खलन आदि आपदाएं हैं। दिसंबर 2023 में देहरादून में हुई आठवीं राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन सम्मेलन में भी देश-विदेश के वैज्ञानिकों ने उत्तराखंड सहित हिमालयी राज्यों में आपदा प्रबंधन की दिशा में ठोस कदम उठाने की सिफारिश की थी। इसी कड़ी में अब उत्तराखंड के सीएम पुष्कर्र ंसह धामी ने कई वर्षों से लंबित जीईपी को लागू कर न सिर्फ अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए उदाहरण पेश किया है, बल्कि उत्तराखंड में अभी तक जीईपी को गंभीरता से नहीं लेने वाले पूर्व मुख्यमंत्रियों को भी स्पष्ट संदेश दिया है।

सतत विकास सूचकांक में उत्तराखंड राज्य पहले स्थान पर
सतत विकास सूचकांक (सस्टेनेबल डेवलपमेंट इंडेक्स) में उत्तराखंड ने पहला स्थान हासिल किया है। सूबे की धामी सरकार ने 3.04 लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था बनने व अगले पांच वर्षों में अर्थव्यवस्था को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। ऐसे में विकास में पर्यावरणीय मानकों का पालन करते हुए किस प्रकार आर्थिक विकास की गति में वृद्धि की जा सकती है, धामी सरकार ने यह भी बता दिया है। वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्र ने सभी देशों को विकास में सतत विकास की अवधारणा का पालन करने को कहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी पर्यावरणीर्य चिंताओं को दूर करने हेतु सतत विकास के महत्व पर जोर देते हुए राज्यों से इसका पालन करने की अपेक्षा व्यक्त की है। अभी तक गुजरात, केरल, कर्नाटक सहित सीमित राज्यों ने इस दिशा में प्रयास शुरू किए हैं, लेकिन उत्तराखंड जैसे छोटे हिमालयी राज्य ने सतत विकास को अपनाते हुए सकारात्मक परिणाम भी दिए हैं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इकोनॉमी व इकोलॉजी मॉडल को लागू करते हुए 15 वर्ष बाद डीजल वाहन बाहर करने सहित कई ऐसे कठिन निर्णय भी लिए, जिनकी आलोचना भी संभावित थी, परंतु सीएम धामी ने राजनीति से अधिक प्रदेश के हित को महत्व दिया। आज सीएम धामी के इन प्रयासों से अन्य राज्य भी कठिन निर्णय लेने को प्रेरित हो रहे हैं।

मोदी सरकार के बजट से उत्तराखंड की उम्मीदों को लगे पंख
मोदी सरकार 3.0 के पहले बजट से उत्तराखंड की उम्मीदों को भी नए पंख लगते दिख रहे हैं। केन्द्रीय बजट में किए गए प्रावधानों से राज्य की झोली में फौरी राहत आने के साथ ही दीर्घकालिक योजनाओं के लिए भी पर्याप्त राशि मिल सकेगी, जिसमें करों के हस्तांतरण से लेकर, केन्द्र पोषित योजनाओं और दीर्घकालिक ब्याज मुक्त ऋण के रास्ते उत्तराखंड के लिए भी खुल जाएंगे। यह हमारे अधिकारियों की कार्यकुशलता और कार्य प्रबंधन पर है कि केन्द्र सरकार के खजाने का कितना रुख हम अपनी तरफ मोड़ पाते हैं। केंद्र सरकार के बजट में सबसे बड़ी राहत आपदा प्रबंधन के रूप में नजर आ रही है। केन्द्रीय बजट में प्रदेश में आपदा के जख्मों पर मरहम लगाने के लिए विशेष प्रावधान किया गया है। जोशीमठ में भूधंसाव के चलते प्रभावितों के पुनर्वास और आपदा प्रबंधन के अन्य कार्यों के लिए उत्तराखंड सरकार ने बजट में 1,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था। अब केन्द्रीय बजट में उत्तराखंड के लिए व्यवस्था कर दिए जाने के बाद इस राशि को जुटाने के लिए राज्य सरकार को खास मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी।

करों के हस्तांतरण (डिवोल्यूशन आफ टैक्स) में 13 हजार 900 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है। इस राशि में से उत्तराखंड को 900 करोड़ रुपये से अधिक मिल सकेंगे। इसके अलावा राज्यों के लिए 1.5 लाख करोड़ रुपये के ब्याज मुक्त ऋण के दरवाजे खोले गए हैं। उत्तराखंड के मौजूदा प्रदर्शन के हिसाब से राज्य को कम से कम 1,750 करोड़ रुपये का ऋण आसानी से प्राप्त हो जाएगा। दूसरी तरफ केन्द्र पोषित योजनाओं की बात की जाए तो इस मोर्चे पर भी राज्य की झोली भरी नजर आएगी। राज्य में 17 से अधिक केन्द्र पोषित योजनाएं ऐसी हैं, जिनमें प्रदेश को 90-10, 80-20 के अनुपात में केन्द्रीय अनुदान मिलता है। ऐसी योजनाओं में केन्द्र के बजट में भारी भरकम प्रावधान होने के चलते राज्य के वित्तीय भार को सहारा मिल सकेगा।

केन्द्र सरकार के बजट में जिन प्रावधानों से राज्य को सीधे लाभ मिलता दिख रहा है, उससे अधिक लाभ उन योजनाओं में मिल सकता है, जिन्हें विकास के पैमाने पर सभी के लिए खुला रखा गया है, क्योंकि, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास की भारी-भरकम बजट वाली तमाम योजनाएं ऐसी हैं, जिन पर उत्तराखंड सरकार कुछ न कुछ कदम बढ़ा चुकी है। लिहाजा, हमारे अधिकारी यदि बेहतर प्रयास करते हैं तो राज्य के बजट में कम से कम तीन से चार हजार करोड़ रुपये की बढ़ोतरी करा सकते हैं। सचिव वित्त दिलीप जावलकर भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं। उनका कहना है कि अगले पांच साल तक प्रदेश सरकार तमाम योजनाओं में केन्द्रीय बजट के प्रावधानों के अनुरूप पर्याप्त धनराशि प्राप्त कर सकती है। इसके लिए तैयारी भी शुरू कर दी गई है और कई योजनाओं की दिशा में कदम बढ़ाए भी गए हैं।

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