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निरस्त होगा उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड, मदरसों व कावेंट स्कूलों की पढ़ाई पर अब सरकार की नजर

धामी सरकार का एक और ऐतिहासिक फैसला अन्य राज्यों के लिए बनेगा मिसाल

देहरादून (दस्तक ब्यूरो)। उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड का अस्तित्व एक जुलाई 2026 से खत्म हो जाएगा। सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कैबिनेट बैठक में कांग्रेस सरकार के जमाने से चले आ रहे मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम समाप्त करने का फैसला लिया है। इसकी जगह अब एक उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण का गठन किया जाएगा। जिसे न केवल अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जा और अनुदान देने का अधिकार होगा बल्कि वह अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता भी तय करेगा। इसके लिए उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार विधानसभा के आगामी सत्र में उत्तराखंड अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान विधेयक 2025 लाने जा रही है। ये धामी सरकार का ऐतिहासिक फैसला है जो समान नागरिक संहिता व नकल कानून की तरह देश के अन्य राज्यों के लिए बनेगा मिसाल बनेगा।

उत्तराखंड विधानसभा का आगामी सत्र 19 अगस्त से शुरू होने जा रहा है।उत्तराखंड में अभी तक मुस्लिम समुदाय से जुड़े शिक्षण संस्थानों को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलता था। मगर नए विधेयक में सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी धर्म से जुड़े शिक्षण संस्थानों को भी अल्पसंख्यक का दर्जा मिल सकेगा। सरकार का दावा है कि विधेयक के कानून बनने से अल्पसंख्यक समुदाय के संस्थानों के मान्यता देने की प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी। समुदाय के संवैधानिक अधिकारों के साथ-साथ शिक्षा की गुणवत्ता भी सुधरेगी। उत्तराखंड के मंत्री सुबोध उनियाल ने बताया कि कैबिनेट ने अल्पसंख्यक कल्याण बोर्ड के नियमों में संशोधन को मंजूरी दी दी है। समान नागरिक संहिता पंजीकरण की अवधि भी बढ़ाई गई है। अहम मुद्दों को सदन में रखा जाएगा और कई विधेयकों को पेश किया जाएगा।

उत्तराखंड सरकार के मुताबिक विधेयक के पास होने के बाद मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों में गुरुमुखी और पाली भाषा की पढ़ाई भी होगी। इसके अलावा 1 जुलाई 2026 से उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम- 2016 और उत्तराखंड गैर-सरकारी अरबी एवं फारसी मदरसा मान्यता नियम- 2019 से निरस्त माने जाएंगे।

नए कानून के कुछ अहम बिन्दु
1.उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण का गठन किया जाएगा। इसके बाद अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जा और अनुदान देने का अधिकार होगा।

  1. उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण छात्रों के निष्पक्ष मूल्यांकन और पारदर्शिता की निगरानी करेगा। यह भी देखेगा कि अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई-लिखाई उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा बोर्ड के मानकों के मुताबिक हो रही है या नहीं।
    3.किसी भी संस्थान को ट्रस्ट अधिनियम, कंपनी अधिनियम या सोसाइटी अधिनियम के तहत रजिस्ट्रेशन कराने के बाद ही मान्यता मिलेगी।
    4.शैक्षणिक संस्थान के बैंक खाते, भूमि और अन्य संपत्तियों का अधिकार संस्थान के पास होना अनिवार्य है।
    5.अगर संस्थान में पारदर्शिता की कमी, धार्मिक और सामाजिक सद्भाव के खिलाफ क्रिया-कलाप या वित्तीय कुप्रबंधन मिलता है तो उसकी मान्यता को रद्द किया जा सकता है।
    6.अगर सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और मुस्लिम समुदाय किसी शिक्षण संस्थान को अल्पसंख्यक का दर्जा दिलाना चाहता है तो उसे पहले प्राधिकरण से मान्यता हासिल करना होगा। बिना मान्यता के यह दर्जा नहीं मिलेगा।
  2. नया विधेयक अगर पास होता है तो यह अधिनियम अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन में दखल नहीं देगा। सिर्फ शिक्षा की गुणवत्ता पर फोकस होगा।

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