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Uttarakhand : अब किसानों के द्वार पहुंचेगी धामी सरकार

गोपाल सिंह पोखरिया, देहरादून

बेहद सामान्य से किसान परिवर में जन्मे और विषम परिस्थितियों में पले-बढ़े सीएम पुष्कर सिंह धामी ने खेतों में भी लंबा समय बिताया है। सीएम धामी किसान-खेती से जुड़े हर पहलू से भली-भांति परिचित हैं। किसान के रूप में धरती से जुड़ाव का ही परिणाम है कि आज मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्हें कभी अहंकार नहीं आया। अब जब कृषि पृष्ठभूमि वाले पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड की जिम्मेदारी मिली है तो फिर भला वो किसान और कृषि के विकास एवं कल्याण को कैसे भूल सकते थे? सुशासन, सामाजिक न्याय व आर्थिक प्रगति के बाद अब सीएम पुष्कर सिंह धामी ने किसान व कृषि के उत्थान का जिम्मा उठाया है। इसी कड़ी में उन्होंने ‘धामी सरकार, किसान के द्वार’ योजना लॉंच की है। इसके तहत अब अधिकारियों को स्वयं किसानों के पास जाना होगा और समस्याओं को न सिर्फ सुनना होगा, बल्कि समाधान भी करना होगा। वहीं, सीएम धामी झंगोरे के न्यूनतम समर्थन मूल्य को केन्द्र की मंजूरी दिलाने के प्रयास के साथ पहाड़ी उत्पादों के उत्पादन को विशेष बढ़ावा देने में जुटे हैं।

दरअसल, उत्तराखंड का 86 प्रतिशत हिस्सा पर्वतीय है, जिसके कारण दुर्गम क्षेत्रों में रह रहे किसान सरकारी विभागों तक पहुंच नहीं पाते हैं। यही वजह है कि सीएम धामी ने कृषकों के हित में यह बड़ा निर्णय लिया है। दूसरा यह लाभ होगा कि अधिकारी-कर्मचारी मौके पर पहुंचकर खेती की वास्तविकता को भी समझ सकेंगे। किसान की क्या-क्या समस्याएं हैं, क्या आवश्यकताएं हैं, क्या चुनौतियां हैं? उन सभी का भौतिक निरीक्षण एवं सत्यापन भी हो सकेगा। इससे सरकारी प्रक्रिया की गति में भी सुधार होगा। सर्वविदित है कि उत्तराखंड की पलायन जैसी मुख्य समस्या का असल कारण कृषि एवं औद्यानिकी की बदहाल स्थिति ही रहा है। सुविधाओं एवं अनुकूल परिस्थितियों के अभाव में लोग खेती छोड़ते रहे हैं, जिससे पर्वतीय भूमि बंजर होती रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य गठन के बाद से अब तक 72 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि बंजर हुई है, जबकि राज्य गठन के वक्त एक लाख हेक्टेयर बंजर भूमि विरासत में मिली थी। पर्वतीय क्षेत्रों में बंजर भूमि का रकबा बढ़ा है। ऐसा नहीं कि पहाड़ में खेती नहीं हो रही, लेकिन जहां यह हो रही है, वहां मौसम व वन्यजीवों की दोहरी मार भारी पड़ रही है। यही कारण भी है कि कृषि एवं औद्यानिकी की दशा सुधारने को तमाम योजनाएं संचालित करने के बावजूद इसके आशानुरूप परिणाम सामने नहीं आ पाए हैं।

इन सबसे अनुभव लेते हुए धामी सरकार ने अब किसानों के द्वार पहुंचकर उनसे सीधे संवाद करने का निर्णय लिया है। सचिव कृषि एवं उद्यान दीपेंद्र कुमार चौधरी ने कहा कि कृषि और औद्यानिकी के विकास एवं विस्तार हेतु विशेष मॉनीटरिंग की जायेगी। इसके तहत शासन से लेकर मंडल स्तर तक के अधिकारियों को प्रत्येक दो माह में दो जिलों में जाकर किसानों से सीधे संवाद करने के सख्त निर्देश दिये गये हैं। अधिकारी किसानों की समस्याएं जानने के अलावा यह भी सुनिश्चित करेंगे कि सरकारी योजनाओं का प्रत्येक कृषक को लाभ मिल भी रहा है या नहीं। कृषकों से आवश्यक सुधार हेतु सुझाव भी लिये जाएंगे।

पशुपालन से बढ़ेगी किसानों की आय पशु चिकित्सा पर विशेष जोर

प्रदेश के किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए उन्हें पशुपालन से भी जोड़ने पर विशेष जोर दिया जा रहा है। केन्द्र की मोबाइल वेटरनरी यूनिट की तर्ज पर अब धामी सरकार योजना से वंचित शेष 35 ब्लॉकों को भी पशु चिकित्सा का लाभ पहुंचायेगी, इसके लिए राज्य सरकार द्वारा भी मोबाइल वेटरनरी यूनिट का संचालन करने का निर्णय लिया गया। कैबिनेट से इसे मंजूरी भी मिल चुकी है। जल्द अन्य ब्लॉकों में भी यूनिट का संचालन हो सकेगा। वहीं, धामी सरकार पशु चिकित्सालयों की स्थिति में भी सुधार कर रही है। इसी कड़ी में सरकार ने स्वास्थ्य अस्पतालों की भांति पशु चिकित्सालयों को भी यूजर चार्ज की 75 प्रतिशत राशि को औषधि समेत अन्य उपकरणों की खरीद में व्यय का अधिकार दे दिया है। इससे अब पशु चिकित्सालयों में भी पर्याप्त दवा व आवश्यक उपकरण उपलब्ध हो सकेंगे। इसके अलावा देहरादून के ट्रांसपोर्ट नगर में स्थापित राज्य स्तरीय रेफरल सेंटर लघु पशु (कुत्ता व बिल्ली) में रेडियो टेक्नीशियन, लैब टेक्नीशियन, कंप्यूटर आपरेटर, स्टोर कीपर, पशुधन सहायक, सफाई नायक, चौकीदार के कुल नौ पदों को आउटसोर्स से भरने जैसे अहम फैसले भी लिये गये हैं। यह सेंटर सातों दिन 24 घंटे संचालित होगा। अन्य जिलों के पशु चिकित्सालयों से भी पशुओं को यहां रेफर किया जा सकेगा। सेंटर में पशुओं की पैथोलाजी समेत विभिन्न जांच की सुविधा मिलेगी।

झंगोरा के न्यूनतम समर्थन मूल्य को केंद्र से मिलेगी हरी झंडी!

उत्तराखंड में श्रीअन्न यानी मोटे अनाज को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से स्टेट मिलेट मिशन संचालित कर रही सरकार ने झंगोरा (सांवा) के न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए केन्द्र की चौखट पर दस्तक दी है। राज्य में मोटे अनाजों में मंडुवा के बाद झंगोरा दूसरी मुख्य फसल है। न्यूनतम समर्थन मूल्य न होने के कारण झंगोरा की सरकारी स्तर पर खरीद नहीं हो पा रही है। झंगोरा को न्यूनतम समर्थन मूल्य की सूची में शामिल करने के लिए शासन द्वारा केन्द्र सरकार को दोबारा प्रस्ताव भेजा जा रहा है। साथ ही इसका समर्थन मूल्य मंडुवा से अधिक रखने का आग्रह किया जा रहा है। मंडुवा का न्यूनतम समर्थन मूल्य 38.46 रुपये प्रति किलोग्राम है।

वर्तमान में प्रदेश में झंगोरा की खेती का क्षेत्रफल 38820 हेक्टेयर और उत्पादन 61260 मीट्रिक टन है। यद्यपि तमाम कारणों से झंगोरा के क्षेत्रफल में भी कमी आई है, लेकिन प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़ी है। प्रदेश में झंगोरा का प्रति हेक्टेयर 15.78 क्विंटल उत्पादन है। उत्तराखंड का झंगोरा पौष्टिकता के आधार पर देश में सर्वश्रेष्ठ है। बाल विकास व पीएम पोषण योजना में भी झंगोरे को शामिल किया जा रहा है। प्रदेश की आर्थिकी व पौष्टिक आहार झंगोरे की फसल का समर्थन मूल्य घोषित करने के संबंध में पूर्व में केन्द्रीय खाद्य मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा गया था, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी। अब सरकार इसे दोबारा भेजने की तैयारी में है।

राज्य में झंगोरा का उत्पादन

जिला क्षेत्रफल उत्पादन
टिहरी 10463 18555
अल्मोड़ा 9582 13172
पौड़ी 6751 9537
रुद्रप्रयाग 4187 7291
चमोली 4110 6787
उत्तरकाशी 1861 2822
पिथौरागढ़ 759 1281
चंपावत 568 978
बागेश्वर 344 553
नैनीताल 176 255
देहरादून 19 29
(नोट : क्षेत्रफल हेक्टेयर और उत्पादन मीट्रिक टन में)

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