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उत्तराखंड की आर्थिकी ने पकड़ी बुलेट की रफ्तार

दस्तक ब्यूरो, देहरादून

दो साल पहले उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव के बाद दूसरी बार पुष्कर सिंह धामी ने एक बार फिर मुख्यमंत्री के रूप से शपथ ली तो उसी दिन उन्होंने कहा कि उत्तराखंड को आने वाले समय में एक विकसित राज्य बनाया जाएगा। देश केबड़े-बड़े राज्यों से अधिक विकास की गति पर उत्तराखंड को दौड़ाना उनकी प्राथमिकता होगी। तब लगा था कि क्या यह धरातल पर उतार पाएंगे, लेकिन पहले दो साल के कार्यकाल को देखकर कहा जा सकता है कि धामी ने प्रदेश को विकसित राज्य बनाने के लिए जिस प्रकार की नीतियों को धरातल पर उतारा है, उससे इतना तो साफ है कि उत्तराखंड अच्छी स्थिति में है, लेकिन अभी भी कई चुनौतियां धामी सरकार की राह में हैं, लेकिन अब देखना होगा कि वह कैसे इन चुनौतियों से पार पाते हैं? उत्तराखंड की आर्थिकी को पांच वर्ष में दोगुना करने के संकल्प के धरातल पर आकार लेने की उम्मीदें बंधी हैं। विकास दर की गति, वित्तीय अनुशासन और पूंजीगत मद में बजट के तेजी से उपयोग को लेकर पुष्कर सिंह धामी सरकार की पहल से अर्थव्यवस्था को उछाल मिला। वित्तीय वर्ष 2023-24 में ग्रोस स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट (जीएसडीपी) ने 3.03 लाख करोड़ से 3.46 लाख करोड़ रुपये तक लंबी छलांग लगाई है। प्रति व्यक्ति आय भी चालू वित्तीय वर्ष में 12.46 प्रतिशत वृद्धि के साथ 2,60,201 तक पहुंच रही है, लेकिन, आर्थिकी के चमकदार आंकड़ों के बाद भी पर्वतीय जिलों में सामाजिक-आर्थिक असमानता को बढ़ने से रोकने की चुनौती सरकार के सामने है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने दूसरी बार सरकार की कमान हाथ में आने के बाद वर्ष 2025 तक सशक्त उत्तराखंड का निर्माण और राज्य की अर्थव्यवस्था को आगामी पांच वर्ष तक दोगुना करने का संकल्प लिया।

अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर धामी सरकार को बड़ी सफलता मिली है। दूसरे कार्यकाल के पहले वर्ष में विकास दर सात प्रतिशत रही तो एक वर्ष बाद ही यह बढ़कर 7.58 प्रतिशत हो गई। विकास दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। अच्छी विकास दर के बूते ही सरकार को भी यह भरोसा बढ़ा है कि आर्थिकी का आकार निर्धारित समय में बढ़ाने का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकेगा। कोरोना के कारण प्रदेश में विकास कार्य, पर्यटकों, श्रद्धालुओं की आवाजाही समेत ठप पड़ी आर्थिक गतिविधियां अब तेज हुई हैं। धामी सरकार ने दो वर्षों के कार्यकाल में विकास कार्यों को रफ्तार दी है। शहरों और एवं ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों के साथ ही हवाई सेवा नेटवर्क के विस्तार ने पर्यटन गतिविधियों को विस्तार दिया है। आर्थिकी में सेकेंडरी सेक्टर का योगदान 46 प्रतिशत और सर्विस सेक्टर का योगदान 43 प्रतिशत से अधिक है। निर्माण कार्यों के साथ ही औद्योगिक गतिविधियां भी प्रदेश में तेज हुई हैं। यद्यपि, सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती प्राइमरी सेक्टर यानी कृषि और संबंधित क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में भागीदारी बढ़ाने की है। इस सेक्टर का योगदान 10 प्रतिशत से कम है, जबकि पर्वतीय और ग्रामीण क्षेत्रों में खेती, किसानी, पशुपालन, बागवानी पर काफी संख्या में व्यक्ति रोजगार और आजीविका के संसाधन के लिए निर्भर हैं।

सरकार के लिए राहत यह है कि कर संग्रह में लगातार वृद्धि हो रही है। नौ नवंबर, 2000 को अलग उत्तराखंड राज्य बनने पर वर्ष 2000-2001 में कर संग्रह 233 करोड़ रुपये था। वर्ष 2022-23 में यह लगभग 52 गुना बढ़कर 12,028.68 करोड़ हो गया। कर संग्रह का सीधा असर प्रदेश की वित्तीय सेहत पर पड़ा है। विभिन्न क्षेत्रों में कर चोरी सरकार के लिए अब भी समस्या है। इस पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है। बेरोजगारी और बहुआयामी गरीबी के आंकड़ों ने सरकार को राहत बंधाई है। वर्ष 2021-22 में उत्तराखंड में बेरोजगारी की दर 8.4 प्रतिशत से वर्ष 2022-23 में घटकर 4.9 प्रतिशत रह गई है। धामी सरकार ने रोजगार को प्राथमिकता में रखा है। सेवायोजन कार्यालयों के माध्यम से 131 रोजगार मेले आयोजित किए गए। इनमें 2161 युवाओं को रोजगार के अवसर प्राप्त हुए। बहुआयामी गरीबी की दर वर्ष 2015-16 में 17.67 प्रतिशत थी। वर्ष 2019-21 में यह घटकर 9.67 प्रतिशत रह गई है। पांच साल के अंतराल में राज्य के 9,17,299 व्यक्ति बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले। बेरोजगारों की तेजी से बढ़ती संख्या को देखते हुए स्वरोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए सरकार को आवश्यक कदम उठाने होंगे।

पूंजीगत बजट खर्च को लेकर चालू वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में भी उत्तराखंड का प्रदर्शन सुधरने जा रहा है। गत वित्तीय वर्ष की तुलना में अब तक 300 करोड़ अधिक धनराशि यानी 8700 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। अब वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक 10 हजार करोड़ तक धनराशि खर्च हो सकती है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट में पूंजीगत बजट खर्च का लक्ष्य 13 हजार करोड़ रुपये निर्धारित किया गया था। यद्यपि, केन्द्र सरकार की ओर से इसी वर्ष के लिए यह लक्ष्य 8797 करोड़ रुपये रखा गया है। प्रदेश सरकार अब तक पूंजीगत मद में 8700 करोड़ खर्च कर चुकी है। माना जा रहा है कि यह लक्ष्य कुछ ही दिनों में पार हो जाएगा। वित्तीय वर्ष 2022-23 में 8400 करोड़ की राशि पूंजीगत मद में खर्च की गई थी। इस वित्तीय वर्ष की पहली छमाही यानी 30 सितंबर के भीतर पूंजीगत बजट की लगभग 4800 करोड़ की राशि खर्च करने में सरकार को बड़ी सफलता मिली थी। इस कारण उत्तराखंड स्कीम फार स्पेशियल एसिस्टेंस टू स्टेट्स फार कैपिटल इन्वेस्टमेंट के अंतर्गत 450 करोड़ की तृतीय किस्त पाने का पात्र हो गया। वित्तीय वर्ष के अंतिम माह में लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने के दृष्टिगत प्रदेश सरकार की ओर से पूंजीगत बजट खर्च को लेकर विभागों को पहले ही सतर्क कर दिया था।
अर्थशास्त्री भी मानते हैं कि उत्तराखंड में सरकार ने जो पांच साल का रोडमैप बनाया है उससे राज्य की अर्थव्यवस्था सही दिशा में बढ़ रही है। एसजीआरआर कालेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. वीए बौड़ाई कहते हैं कि उत्तराखंड सरकार ने अपने बजट में शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर अधिक ध्यान दिया है। उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रदर्शन और एनएएसी जैसी केन्द्रीय रैंकिंग को बढ़ाने के सार्थक प्रयास होने चाहिए। दून विवि के डीन, स्कूल आफ मैनेजमेंट के विभागाध्यक्ष प्रो. एचसी पुरोहित कहते हैं कि बजट संपन्नता और सतत विकास पर केन्द्रित है, क्योंकि बजट में सबसे अधिक 15 हजार करोड़ से अधिक रुपये का प्रावधान शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए किया गया है जिससे राज्य का मानव संसाधन विकास सुदृढ़ होगा। साथ ही 13,780 करोड़ रुपये से अधिक रुपये का प्रावधान राज्य में ढांचागत विकास यानि अवसंरचना कार्यों के लिए किया गया है। इससे स्पष्ट है कि पूंजीगत व्यय में लगभग 37 प्रतिशत है जो रोजगार सृजन में एक महत्वपूर्ण कारक सिद्ध होगा।

मिशन मिलेट योजना पर रंग लाई उत्तराखंड सरकार की पहल

सरकार के प्रयास रंग लाए तो श्रीअन्न यानी मोटे अनाज के उत्पादन में उत्तराखंड निकट भविष्य में लंबी छलांग लगाएगा। स्टेट मिशन मिलेट के अंतर्गत मंडुवा, झंगोरा व रामदाना जैसे मोटे अनाज का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए घाटियों एवं अन्य क्षेत्रों में ऐसी बेकार पड़ी कृषि योग्य भूमि तलाशी जा रही है, जिसमें इनकी खेती हो सकती है। इसके पीछे सरकार की मंशा क्षेत्रफल बढ़ाकर उत्पादन में बढ़ोतरी करना है, ताकि श्रीअन्न की बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके। उत्तराखंड में पहाड़ से लेकर मैदान तक अलग-अलग भू-आकृतियां हैं। स्थान की ऊंचाई के साथ जलवायु और वनस्पतियां बदलती रहती हैं। पहाड़ में बजरी व हल्की बनावट वाली मिट्टी होती है, जो लंबे समय तक पानी नहीं रखती। इसे मंडुवा, झंगोरा, रामदाना जैसे स्माल मिलेट के लिए उपयुक्त माना जाता है। ये फसलें अपने लचीलेपन के लिए जानी जाती हैं। यानि ये विविध परिस्थिति में तालमेल बैठाने में सहायक होती हैं। यही कारण है कि राज्य के 10 पर्वतीय जिलों में इनकी खेती होती आई है। ये फसलें पूरी तरह जैविक होने के कारण इनकी मांग भी अधिक है। बावजूद इसके, मोटे अनाज का क्षेत्रफल घट रहा है। आंकड़ों को देखें तो वर्ष 2000-01 में राज्य में मंडुवा का क्षेत्रफल 127733 हेक्टेयर था, जो वर्ष 2021-22 में घटकर 85880 हेक्टेयर पर आ गया। यह बात अलग है कि उत्पादकता में वृद्धि हुई है। वर्ष 2000-01 में मंडुवा की उत्पादकता 12.71 क्विंटल प्रति हेक्टेयर थी, जो अब बढ़कर 14.78 हो गई है। इसी तरह झंगोरा का क्षेत्रफल भी घटकर 40814 हेक्टेयर पर आ गया है, लेकिन इसकी उत्पादकता में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

इस बीच केन्द्र सरकार ने श्रीअन्न यानी मोटे अनाज को प्रोत्साहन देने की कसरत प्रारंभ की तो उत्तराखंड ने भी वर्ष 2023-24 से 2027-28 तक के लिए स्टेट मिलेट मिशन की घोषणा की। इसके लिए 73.16 करोड़ का प्रावधान किया गया, जिसमें मोटे अनाज का क्षेत्रफल व उत्पादन बढ़ाने के दृटिगत कृषि विभाग को 53.16 करोड़ और मंडुवा, झंगोरा, रामदाना की खरीद के लिए सहकारिता विभाग को 20 करोड़ की राशि प्रदान की गई। चालू वित्तीय वर्ष में अब 7429 किसानों से 16500 मीट्रिक टन मोटे अनाज की खरीद हो चुकी है। सरकार ने मोटे अनाज को प्रोत्साहन के दृष्टिगत सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से प्रति राशन कार्ड एक किलो मंडुवा उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही महिला एवं बाल पोषाहार की योजनाओं में मिलेट को शामिल किया गया है। ऐसे में वर्तमान में मंडुवा, झंगोरा का जितना उत्पादन हो रहा है, वह इस आपूर्ति के लिए कम पड़ सकता है। इसी के दृष्टिगत अब इसका क्षेत्रफल बढ़ाने को कसरत चल रही है। मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने हाल में मिशन मिलेट की समीक्षा के दौरान राज्य के पर्वतीय जिलों में घाटियों व अन्य स्थानों पर ऐसी कृषि योग्य भूमि चयनित करने के निर्देश दिए, जो बंजर या बेकार पड़ी है। इस भूमि में सामूहिक या सहकारिता के माध्यम से मंडुवा, झंगोरा, रामदाना की खेती की योजना है। इससे जहां इन फसलों का क्षेत्रफल बढ़ेगा, वहीं उत्पादन में भी बढ़ोतरी होगी, साथ ही इससे किसानों को फायदा मिलेगा। कृषि मंत्री गणेश जोशी कहते हैं कि मिशन मिलेट को लेकर सरकार गंभीरता से कदम बढ़ा रही है। मंडुवा, झंगोरा जैसे मोटे अनाज के क्षेत्रफल के साथ ही उत्पादन बढ़ाने पर विशेष जोर दिया जा रहा है। मोटे अनाज के लिए नए वित्तीय वर्ष के बजट में भी प्रावधान किया गया है।

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