उत्तर प्रदेशराज्यवाराणसी

सोने का कंगन और 1,11,116 से सम्मानित किए गए वेदमूर्ति देवव्रत

फूलों की बारीश, पटाखों की गूंज के बीच भव्य रथ-शोभायात्रा, बटूक बने आकर्षण, रथ पर सवार देवव्रत, आगे चल रहे बटूक और दक्षिण भारतीय वाद्य, जुलूस को दिया अनोखा वैदिक रंग, 19 वर्षीय देवव्रत महेश रेखे ने शुक्ल यजुर्वेद ‘डंडकम् परायण’ पूर्ण कर रचा इतिहास

सुरेश गांधी

वाराणसी : काशी शनिवार को एक अद्भुत आध्यात्मिक दृश्य की साक्षी बनी, जब 19 वर्षीय वेदमूर्ति देवव्रत महेश रेखे का भव्य सम्मान जुलूस पूरे शहर का केंद्रबिंदु बन गया। शंकराचार्य शृंगेरी पीठ के आशीर्वाद से सम्पन्न यह आयोजन, वैदिक परंपरा की उस गरिमा को पुनर्जीवित करने जैसा था, जिसमें अद्वितीय साधना, अलौकिक धैर्य और अनुष्ठानिक शुचिता के लिए युवा ऋषिभाव को प्रणाम किया गया।

रथयात्रा चौराहा से निकलकर महमूरगंज तक चली शोभायात्रा में दक्षिण भारतीय वाद्ययंत्रों की थाप, शंखध्वनि, ढोल – नगाड़े, और बैण्ड – बाजे लगातार गूँजते रहे। रथ के आगे चल रहे 500 से अधिक बटूक पूरे मार्ग का आकर्षण बने रहे। उन्हें देखकर श्रद्धालुओं की तालियां थमती नहीं थीं। रथ को फूलों, कलशों और वैदिक चिह्नों से इस तरह सजाया गया था मानो शहर में किसी देव यात्रा का आगमन हो गया हो।

मार्ग भर लोगों ने शोभायात्रा पर फूलों की वर्षा, मालाओं से स्वागत और पटाखों की गूंज से वातावरण को उत्सव में बदल दिया। हर मोड़ पर भीड़ का रेला उमड़ पड़ता था। मतलब साफ है काशी की धरती ने शनिवार को न केवल एक युवा वैदिक प्रतिभा को अभिवादन किया, बल्कि यह भी दिखा दिया कि परंपरा केवल संरक्षित नहीं होती, उत्सव बनकर पुनर्जीवित भी होती है। देवव्रत का यह सम्मान, सोने का कंगन, 1,11,116 का आशीर्वाद और भव्य शोभायात्रा, काशी की स्मृति में लंबे समय तक दर्ज रहेगा।

देश में 200 साल बाद काशी में वैदिक इतिहास रचने वाले देवव्रत का अद्वितीय सम्मान किया गया. महाराष्ट्र के अहिल्यानगर निवासी 19 वर्षीय वेदमूर्ति देवव्रत महेश रेखे ने शुक्ल यजुर्वेद की माध्यंदिनी शाखा के करीब 2000 मंत्रों के दंडक्रम पारायण को लगातार 50 दिनों तक सम्पन्न किया। यह उपलब्धि लगभग 200 वर्ष बाद किसी ने सम्पूर्णता और शास्त्रीय परंपरा के अनुसार की। इसी मौलिक साधना के सम्मान में उन्हें सोने का कंगन और ₹1,11,116 की सम्मान राशि भेंट की गयी, जो शृंगेरी शंकराचार्य जगद्गुरु भारती तीर्थ जी के आशीर्वाद का प्रतीक था।

विद्वान-संत-आचार्यों ने किया अभिनंदन
समारोह में आयुष मंत्री दयाशंकर मिश्र ‘दयालु’, चिंतामणि गणेश मंदिर के महंत चल्ला सुब्बा राव शास्त्री, प्रो. माधव जनार्दन रटाटे, आचार्य राजाराम शुक्ल, आचार्य हृदयरंजन शर्मा सहित अनेक वैदिक आचार्यों ने उपस्थित होकर देवव्रत को आशीष दिया। देवव्रत के पिता एवं गुरु महेश चंद्रकांत रेखे, पारायण संयोजक नीलेश केदार जोशी, और श्रोता देवेंद्र रामचंद्र गढीकर का भी सम्मान किया गया।

श्रद्धा, शुचिता और संकल्प, तीनों का संगम बनी काशी
वल्लभराम शालिग्राम सांगवेद विद्यालय, रामघाट में 2 अक्टूबर से 30 नवंबर तक सम्पन्न यह पारायण काशी के वैदिक परंपरा को नई चमक देने वाला सिद्ध हुआ। सुबह 8 से दोपहर 12 बजे तक चलने वाला दंडक्रम पारायण अपनी कठिनतम विधि और उच्चारण – शुद्धता के लिए जाना जाता है। इतनी कम उम्र में इसे निरंतर करना विद्वानों की नजर में असाधारण उपलब्धि है। आयोजन की कमान चंद्रशेखर द्रविड धनपति, प्रदीप पाठक और माधव रटाटे के नेतृत्व में संभाली गई। समारोह के मुख्य अतिथि संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति आचार्य राजाराम शुक्ल थे। सरस्वत अतिथि के रूप में हरिद्वार से पधारे श्री श्री महेश चैतन्य ब्रह्मचारी महाराज, विशिष्ट अतिथि के रूप में महंत शंकरपुरी जी महाराज, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता आचार्य हृदय रंजन शर्मा ने की।

आयोजन में काशी की धार्मिक, सामाजिक संस्थाओं की बड़ी भूमिका
काशी की विभिन्न शिक्षण, सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं ने इस आयोजन को मिलकर सम्पन्न किया। मुख्य श्रोता वेदमूर्ति देवेंद्र रामचंद्र गढ़ीकर, परायण संयोजक वेदमूर्ति नीलेश केदार, समिति अध्यक्ष अन्नपूर्ण प्रसाद, स्वागत समारोह में शामिल वेंकेटेश रमेश घनपाठी, महामंत्री सुब्बा राव, संयोजक डॉ. अनिल किनजड़ेकर, उपाध्यक्ष चंद्रशेखर धनपति, मंत्री प्रो. माधव रटाटे, सह संयोजक पांडुरंग पुराणिक, सचिव प्रदीप पाठक, आदि ने संयुक्त रूप से पत्रकारों और अतिथियों का स्वागत किया।

‘वेद की विकृतियों के शोधन’ के कठिन दंडक्रम का परायण
विद्वानों ने बताया कि देवव्रत ने केवल पारायण ही नहीं किया, बल्कि वेद की विकृतियों का अध्याय भी पूरा किया। वेद की सबसे कठिन विकृति दंडकक्रम, जिसमें स्वर, संधि और विलोम संधि की अत्यंत जटिल गणना होती हैकृउसे बिना रुके पूर्ण करना असाधारण क्षमता का परिचायक माना गया। आचार्य राम शुक्ल ने कहा, “वेद साक्षात शिवरूप हैं। जो वेद पढ़ता है, वही शिवस्वरूप बन जाता है। दंडक्रम वेद का मुकुट है; इसे 19 वर्ष की आयु में पूर्ण करना अद्भुत है।”

विश्व में केवल तीन बार हुआ दंडक्रम परायण
विद्वानों ने ऐतिहासिक तथ्य साझा करते हुए बताया 1. पहलाः महाराष्ट्र में नारायण शास्त्री द्वारा, लगभग 100 दिनों में, 2. दूसराः 300 दिनों में, सामूहिक रूप से, 3. अब काशी मेंः देवव्रत महेश रेखे द्वारा, केवल 50 दिनों में. यह उपलब्धि वेद परंपरा में एक अद्वितीय कीर्तिमान है। कई विद्वानों ने कहा कि यदि यह लौकिक विषय होता तो गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स भी इसे दर्ज करती।

श्रृंगेरी शंकराचार्य के प्रतिनिधि का विशेष संदेश
समारोह में श्रृंगेरी मठ के प्रतिनिधि विद्वान डॉ. तंगीलाल शिवकुमार शर्मा उपस्थित रहे। उन्होंने शंकराचार्य जी का संदेश सुनाया, “जो वेद की रक्षा करता है, वही धर्म की रक्षा करता है। देवव्रत का यह परायण काशी की तपोभूमि के लिए गौरव का विषय है।” काशीद- महाराष्ट्र सेवा समिति, विभिन्न मठदृमंदिरों के महंत और कई प्रतिष्ठित वेदपाठी इस अवसर पर उपस्थित रहे।

काशी के लिए ऐतिहासिक रहा
वेद परंपरा के इस अद्वितीय उत्सव ने सिद्ध किया कि ज्ञान, तप, साधना और गुरुदृकृपा का संगम जब होता है तो उम्र बाधा नहीं बनती। 19 वर्षीय देवव्रत ने जो परंपरा जीवित की है, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेगी।

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