चंडीगढ़ : प्रकाश सिंह बादल जीवन या राजनीति के क्षेत्र में आसानी से हार मानने वालों में से नहीं थे। पिछले साल ही, शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने विधानसभा चुनाव के लिए पंजाब के मुक्तसर जिले में लंबी सीट से उन्हें उम्मीदवार बनाया था। प्रकाश सिंह बादल यह चुनाव भले हार गए थे, लेकिन देश में चुनाव लड़ने वाले सबसे उम्रदराज व्यक्ति होने के नाते रिकॉर्ड बुक में उनका नाम दर्ज हो गया।
बठिंडा जिले के बादल गांव के सरपंच बनने के साथ शुरू हुए लंबे राजनीतिक करियर में यह उनकी 14वीं चुनावी लड़ाई थी। बादल एक अलग पंजाबी भाषी राज्य के लिए चलाए गए आंदोलन का हिस्सा भी रहे। पंजाब के पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके बादल का मंगलवार को चंडीगढ़ के पास मोहाली के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। सांस लेने में परेशानी होने के बाद उन्हें नौ दिन पहले ही अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वह 95 वर्ष के थे। पंजाब की राजनीति के दिग्गज नेता बादल पहली बार 1970 में मुख्यमंत्री बने और उन्होंने एक गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया, जिसने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया। इसके बाद वह 1977-80, 1997-2002, 2007-12 और 2012-2017 में भी राज्य के मुख्यमंत्री रहे।
बादल 11 बार विधायक रहे और केवल दो बार राज्य विधानसभा का चुनाव हारे। वर्ष 1977 में वह केंद्र में कृषि मंत्री के रूप में मोरारजी देसाई की सरकार में थोड़े समय के लिए शामिल हुए। अपने राजनीतिक जीवन के आखिरी दौर में 2008 में बादल ने अकाली दल की बागडोर बेटे सुखबीर सिंह बादल को सौंप दी, जो उनके अधीन पंजाब के उपमुख्यमंत्री भी बने। प्रकाश सिंह बादल का जन्म आठ दिसंबर 1927 को पंजाब के बठिंडा के अबुल खुराना गांव में हुआ था। बादल ने लाहौर के फॉरमैन क्रिश्चियन कॉलेज से स्नातक किया।
उन्होंने 1957 में कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में मलोट से पंजाब विधानसभा में प्रवेश किया। 1969 में उन्होंने अकाली दल के टिकट पर गिद्दड़बाहा विधानसभा सीट से जीत हासिल की। जब पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री गुरनाम सिंह ने 1970 में दल-बदल करके कांग्रेस का दामन थामा था तब अकाली दल फिर से संगठित हो गया तथा इसके बाद इसने जनसंघ के समर्थन से राज्य में सरकार बनाई। वह तब देश के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने। यह बात दीगर है कि यह गठबंधन सरकार एक वर्ष से थोड़ा अधिक चली। वर्ष 2017 में बतौर मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल समाप्त किया तो वह इस पर रहने वाले सबसे अधिक उम्र के नेता थे। वर्ष 1972 में बादल सदन में विपक्ष के नेता बने, लेकिन बाद में फिर से मुख्यमंत्री बने।
बादल के नेतृत्व वाली सरकारों ने किसानों के हितों पर अपना ध्यान केंद्रित किया। उनकी सरकार के महत्वपूर्ण निर्णयों में कृषि के लिए मुफ्त बिजली देने का निर्णय भी शामिल था। अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल ने सतलुज यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के विचार का कड़ा विरोध किया, जिसका उद्देश्य पड़ोसी राज्य हरियाणा के साथ नदी के पानी को साझा करना था। इस परियोजना को लेकर एक आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए 1982 में उन्हें गिरफ्तार किया गया था। यह परियोजना पंजाब के निरंतर विरोध के कारण अभी तक लागू नहीं हो सका है। उनके नेतृत्व में राज्य विधानसभा ने विवादास्पद पंजाब सतलुज यमुना लिंक नहर (स्वामित्व अधिकारों का हस्तांतरण) विधेयक, 2016 पारित किया। यह विधेयक परियोजना पर तब तक की प्रगति को उलटने के लिए था। उनकी पार्टी ने 2020 में केंद्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से अपना नाता तोड़ लिया।
प्रकाश सिंह बादल की पत्नी सुरिंदर कौर बादल की 2011 में कैंसर से मौत हो गई थी। उनका बेटा सुखबीर सिंह बादल और बहू हरसिमरत कौर बादल दोनों ही राजनीति में सक्रिय हैं। सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था अकाल तख्त ने उन्हें ‘पंथ रतन फख्र-ए-कौम’ – या प्राइड ऑफ द फेथ – की उपाधि से सम्मानित किया, जिसकी कई लोगों ने आलोचना भी की।