video: अद्भुत है इस मां का चमत्कार, यहां मां हर माह करती हैं अग्नि स्नान
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एजेन्सी/ वीरता, त्याग और बलिदान की कहानी तो हमेशा से मेवाड़ की धरती कहती आई है लेकिन यह शक्ति और भक्ति की भूमि भी है। यहां कई शक्तिपीठ हैं जो लोगों की आस्थाओं से जुड़े हुए हैं। मंदिरों में स्थापित मां दुर्गा के विविध रूप के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं। मां के दर्शनों से कई रोग निवारण होते हैं तो लोगों के कष्टों को भी मां हरती है।
नवरात्रा में भक्तों की आस्था देखने लायक होती है। कोई सैकड़ों किमी. दूर से पैदल चला आ रहा है तो कोई लोटते हुए दर्शनों के लिए पहुंच रहा है। कोई मांगी गई मन्नतों के लिए अनुष्ठान करवा रहा है तो कोई सोने-चांदी के चढ़ावे कर रहा है।
यह सब लोगों की आस्था व श्रद्धा ही है जिसके कारण इनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। नवरात्र के अवसर पर पेश है मेवाड़ के सबसे प्रमुख शक्तिपीठों में से एक ईडाणा माता मंदिर की कहानी। यहां देवी स्वत: अग्नि स्नान करती हैं। इस चमत्कार को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।
उदयपुर जिले के कुराबड़ सलूम्बर मार्ग पर ईडाणा गांव के निकट लोक देवी की महिमा इस अंचल में अपना विशिष्ट महत्व रखती है। एक छोटे से गांव में रावत समुदाय ने इस देवी की पूजा वर्षों पहले प्रारंभ की थी और आज यह जन-जन की श्रद्धा का केंद्र है। यहां देवी अपने अग्नि स्नान के लिए प्रसिद्घ है। यहां कई त्रिशूल गड़े हैं। स्वरूप नित्य श्रंगारित रहता है किंतु अग्नि स्नान के बाद प्रत्येक सप्ताह पोशाक परिवर्तित की जाती है। लोगों में विश्वास है कि लकवा ग्रसित रोगी यहां मां के दरबार में आकर ठीक होकर जाते हैं।
मान्यता है कि यहां देवी की प्रतिमा माह में दो से तीन बार स्व जागृत अग्नि से स्नान करती है। इस अग्नि स्नान से मां की सम्पूर्ण चढ़ाई गई चुनरियां, धागे आदि भस्म हो जाते हैं। इसी अग्नि स्नान के कारण यहां मां का मंदिर नहीं बन पाया। मां की प्रतिमा के पीछे अगणित त्रिशूल लगे हुए हैं। यहां भक्त अपनी मन्नत पूर्ण होने पर त्रिशूल चढाऩे आते हैं। संतान की मिन्नत रखने वाले दम्पत्तियों द्वारा पुत्र रत्न प्राप्ति पर यहां झूला चढाऩे की भी परम्परा है।
इसके अतिरिक्त लकवाग्रस्त शरीर के अंग विशेष के ठीक होने पर रोगियों के परिजनों द्वारा यहां चांदी या काष्ठ के अंग बनाकर चढ़ाए जाते हैं। प्रतिमा स्थापना का कोई इतिहास यहां के पुजारियों को ज्ञात नहीं है। बस इतना बताया जाता है कि वर्षों पूर्व यहां कोई तपस्वी बाबा तपस्या किया करते थे, बाद में धीरे-धीरे पड़ोसी गांव के लोग यहां आने लगे। इस शक्तिपीठ की विशेष बात यह है कि यहां मां के दर्शन चौबीस घंटे खुले रहते हैं। सभी लकवा ग्रस्त रोगी रात्रि में माँ की प्रतिमा के सामने स्थित चौक में आकर सोते हैं, नवरात्रि में यहां भक्तों की काफ ी भीड़ रहती है।