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कांग्रेस के ट्वीट्स पर विवेक अग्निहोत्री ने किया ऐसा रिप्लाई, सच आ गया सामने

नई दिल्ली: कश्मीरी पंडितों के विस्थापन और जिहादियों की ओर से उन पर हुए अत्याचारों पर बनी फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) जबरदस्त धूम मचा रही है. अब तक देश के 5 राज्य इस फिल्म को टैक्स फ्री करने की घोषणा कर चुके हैं. इसी बीच केरल कांग्रेस (Kerala Congress) ने कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandit) पर कटाक्ष भरे ट्वीट करके पार्टी को मुसीबत में डाल दिया है.

केरल कांग्रेस (Kerala Congress) ने फिल्म में दिखाए गए विषय को लेकर कहा कि कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandit) के विस्थापन के लिए उस समय के गवर्नर रहे जगमोहन सिंह जिम्मेदार थे. जगमोहन सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य थे, जबकि उस वक्त केंद्र में बीजेपी की ओर से समर्थित वीपी सिंह की सरकार थी. उसके बावजूद कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ और सरकार ने कुछ नहीं किया.

केरल कांग्रेस ने ट्वीट कर यह भी कहा कि पिछले 17 सालों (1990-2007) में कश्मीर में हुए आतंक हमलों में 399 कश्मीरी पंडित मारे गए हैं. इसी अवधि में आतंकवादियों की ओर से मारे गए मुसलमानों की संख्या 15,000 है. केरल कांग्रेस (Kerala Congress) के इस ट्वीट पर अभी तक राहुल गांधी, सोनिया या प्रियंका गांधी वाड्रा की ओर से अब तक कोई टिप्पणी नहीं आई है. जिसे एक तरह से ट्वीट पर उनकी सहमति माना जा रहा है.

इसी बीच ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) के डायरेक्टर विवेक रंजन अग्निहोत्री (Vivek Ranjan Agnihotri) ने ट्विटर पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का एक पत्र साझा किया है. यह पत्र उन्होंने 8 जनवरी 1981 को न्यूयार्क में रहने वाले कश्मीरी पंडित डॉक्टर एन मित्रा को लिखा था. दरअसल डॉ मित्रा ने कश्मीर में रह रही अपनी भतीजी के अचानक लापता हो जाने पर तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी को चिट्ठी लिखी थी. जिसके जवाब में इंदिरा गांधी ने उन्हें पत्र भेजा था. विवेक रंजन अग्निहोत्री (Vivek Ranjan Agnihotri) ने इंदिरा गांधी के इसी पत्र का स्क्रीन शॉट ट्विटर पर शेयर करते हुए लिखा, ‘प्रिय राहुल गांधी जी, आपकी दादी की राय अलग थी.’

पत्र में इंदिरा गांधी ने डॉ मित्रा को लिखा, ‘मैं आपकी चिंता समझती हूं. मैं भी दुखी हूं कि ना तुम जो कश्मीर में पैदा हुई, न मैं, जिसके पूर्वज कश्मीर से आते हैं, दोनों ही कश्मीर में एक छोटा टुकड़ा जमीन भी नही खरीद सकते. लेकिन फिलहाल, मामला मेरे हाथ में नहीं है. मैं इस मुद्दे को ठीक करने के लिए जो चीजें जरूरी हैं वो अभी कर नहीं सकती, क्योंकि भारतीय प्रेस और विदेशी प्रेस दोनों ही मेरी छवि एक दबंग सत्तावादी के रुप में दिखा रहे हैं.’ उन्होंने आगे कहा, ‘लद्दाख में कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandit) और बौद्धों के साथ बहुत गलत व्यवहार किया जा रहा है और उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है.’

बताते चलें कि वर्ष 1989 में कश्मीर घाटी से रातोंरात 4.5 लाख कश्मीरी हिंदुओं को अपना घर-बार छोड़कर भागना पड़ा था. जिहादी आतंकियों की ओर से उन्हें दो विकल्प दिए गए थे. पहला विकल्प वे कश्मीर छोड़कर भाग जाएं. दूसरा, इस्लाम धर्म कबूल कर लें. कश्मीरी हिंदुओं को धमकी दी गई थी कि दोनों में से कोई भी विकल्प न चुनने वालों को मार डाला जाएगा.

उनकी धमकी से डरकर कई परिवार कश्मीर (Kashmir) छोड़कर चले गए. जो वहां से निकलने को तैयार नहीं हुए, जिहादियों ने एक-एक करके उन्हें गोलियों से भूनना शुरू किया. कश्मीर की सड़कों पर हर रोज कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandit) की लाशें मिलने लगी. फिर एक शाम कश्मीर की तमाम मस्जिदों से कश्मीरी पंडितों के घाटी छोड़ने या मरने के लिए तैयार रहने की धमकी दी. इन धमकियों से डरे लाखों हिंदू परिवार, हर संभव साधनों के जरिए रातोंरात कश्मीर से निकल आए और अपने ही देश में हमेशा के लिए शरणार्थी बनकर रह गए.

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