चीन से निपटने के तरीके
नई दिल्ली : भारत चीन सीमा पर विवाद गहराता जा रहा है एक दिन पहले ही चीन की घुसपैठ का करारा जवाब देते हुए हमारे 20 जवान शहीद हो गए।यह अपने आप में ह्रदय विदारक घटना है। हमारे जवानों ने भी चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया है लेकिन चीन जैसे कायर देश ने अपने मृतक सैनिकों की संख्या भी जाहिर नहीं की। युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता बल्कि युद्ध अपने आप में समस्या है। भारत और चीन दोनों दुनिया की बड़ी आर्थिक और सैनिक शक्तियां हैं।
युद्ध के परिणाम की विभीषिका से दोनों देश भलीभांति परिचित हैं क्योंकि इससे पूर्व दोनों एक युद्ध लड़ चुके हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि चीन के अंदर अचानक इतनी बौखलाहट क्यों आ गई?
चीन की बौखलाहट के पीछे कई कारण हो सकते हैं लेकिन इनमें से सबसे प्रमुख कारण है आर्थिक कारण-चीन एक विशुद्ध बाजारवादी अर्थव्यवस्था है, उत्पादन के मामले में विश्व में शीर्ष पर काबिज होने के साथ-साथ दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश बन बैठा चीन अपने उत्पादों को खपाने के लिए विश्व के नए बाजारों की तलाश में लगातार लगा है।
ऐसे में ‘वन बेल्ट वन रोड’ जैसी परियोजनाओं की शुरुआत उसके व्यापारिक महत्वाकांक्षा का ही परिणाम है। भारत चीन के लिए सबसे बड़ा और सुगम बाजार है क्योंकि भारत की जनसंख्या दुनिया में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है और इतनी बड़ी जनसंख्या के उपभोग के लिए भारत को आयात पर निर्भर ही रहना पड़ता है। यही कारण है कि भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा लगातार बना रहा है।
कोविड-19 महामारी के काल में विश्व के सभी देशों में आयात निर्यात ठप हो गया है। विश्व के समस्त देशों ने चीन के साथ आयात और निर्यात के व्यवहार पर रोक लगा दिया क्योंकि कोरोना वायरस की शुरुआत चीन के वुहान शहर से हुई और चीन को इस वायरस को पूरी दुनिया में फैलाने का जिम्मेदार माना गया। ऐसे में चीन पूरे विश्व समुदाय में आलोचना का केंद्र बना हुआ है।
चीन की बौखलाहट तब और बढ़ गई जब भारत ने अपने देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के नियमों में परिवर्तन करते हुए कहा कि जिन देशों की सीमाएं भारत से मिलती हैं उनके लिए भारत के किसी भी कंपनी में निवेश करने से पहले सरकार की अनुमति लेना अनिवार्य होगा। ऐसे में चीन ही भारत का ऐसा पड़ोसी है जिससे भारत में अधिक निवेश की संभावना रहती है।
चीन ने भारत के इस नए नियम को अपने आर्थिक महत्वाकांक्षाओं पर चोट के रूप में लिया क्योंकि कुछ दिनों पहले ही चीन के सेंट्रल बैंक ‘द पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना’ ने भारत के सबसे बड़े निजी बैंक एचडीएफसी के 1.72 करोड़ शेयर खरीदे थे। भारत के इस नए एफडीआई नियम से चीन को अपने हाथ से एक बहुत बड़ा बाजार फिसलता हुआ नजर आ रहा है।
चीन की चिंता का दूसरा सबसे बड़ा कारण यह हो सकता है कि भारत सरकार ने भारत के अंदर आत्मनिर्भर भारत अभियान की घोषणा कर दी है। जिसमें सरकार द्वारा 20 लाख करोड़ के महा आर्थिक पैकेज को लाया गया है, जिसमें ‘लोकल फॉर वोकल’ की चर्चा की गई है।
अब इस बात पर चर्चा जोरों शोरों से शुरू हो गई है कि देश के अंदर विनिर्माण का ऐसा माहौल पैदा किया जाए कि हमें छोटी से छोटी वस्तुओं के लिए अपने पड़ोसी देश चीन पर निर्भर ना होना पड़े। क्योंकि दिवाली हमारी हो, लरी और झालर चाइना क्यों बनाए, गणेश उत्सव मनाएं और गणेश की मूर्तियां चाइना क्यों बनाएं, मकरसंक्रांति हम मनाएं और पतंग का मांझा चाइना क्यों बनाए?
भारत को चीन के साथ युद्ध बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए हमें चीन को वहां चोट करनी चाहिए जहां से वह सबसे ज्यादा प्रभावित हो भारत सरकार अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों के कारण बंधी हो सकती है लेकिन एक नागरिक के रूप में हम मजबूर नहीं है, प्रयास यही होना चाहिए कि चीन के उत्पादों का प्रयोग कम से कम हो।
ग्रामीण स्तर पर उद्योगों को बढ़ावा दिया जाए देश की बहुत बड़ी अकुशल श्रमिक जनसंख्या को छोटी-छोटी उस वस्तुओं के उत्पादन और विनिर्माण से जोड़ा जाए। विनिर्माण की छोटी सी छोटी सी इकाइयां भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित की जाए जिससे सही अर्थों में लोकल फॉर वोकल को चरितार्थ किया जा सके।