वेस्ट नील वायरस का बढ़ रहा प्रकोप , जानें क्या है वेस्ट नील वायरस
नई दिल्ली: वेस्ट नील वायरस, वायरस से संबंधित एक फ्लेविवायरस है जो सेंट लुइस इंसेफेलाइटिस, जापानी इंसेफेलाइटिस तथा पीत ज्वर पैदा करने के लिये भी ज़िम्मेदार है। यह एक मच्छर जनित, सिंगल स्ट्रैंडेड आरएनए वायरस है। यह रोग पक्षियों से मनुष्यों में एक संक्रमित क्यूलेक्स मच्छर के काटने से फैलता है। यह मनुष्यों में घातक तंत्रिका तंत्र रोग को भी जन्म दे सकता है।
सभी प्रमुख पक्षी प्रवासी मार्गों पर वेस्ट नील वायरस प्रकोप स्थल पाए जाते हैं। अफ्रीका, यूरोप, मध्य पूर्व, उत्तरी अमेरिका और पश्चिम एशिया ऐसे क्षेत्र हैं जहांँ आमतौर पर यह वायरस पाया जाता है। आमतौर पर अधिकांश देशों में वेस्ट नील वायरस संक्रमण उस अवधि के दौरान चरम पर होता है जब वाहक मच्छर सबसे अधिक सक्रिय होते हैं तथा परिवेश का तापमान वायरस के गुणन के लिये पर्याप्त उच्च होता है।
वेस्ट नील वायरस से संक्रमित लोगों में आमतौर पर कोई लक्षण नहीं होते हैं या हल्के लक्षण होते हैं। रोग के लक्षणों में सिरदर्द, बुखार, त्वचा पर लाल चकत्ते, शरीर में दर्द और सूजी हुई लसीका ग्रंथियां शामिल हैं। वायरस के लक्षण कुछ दिनों से लेकर कई हफ्तों तक रह सकते हैं, और आमतौर पर, वे अपने आप चले जाते हैं।वेस्ट नील वायरस अगर दिमाग़ में पहुंच गया तो ये ख़तरनाक होने के साथ जानलेवा भी साबित हो सकता है। यह बीमारी ब्रेन में सूजन का कारण बन सकती है, जिसे एन्सेफलाइटिस कहा जाता है या मेनिन्जाइटिस, जिसमें रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क के आसपास ऊतकों में सूजन आ जाती है।
वेस्ट नील वायरस पहली बार 1937 में युगांडा के वेस्ट नाइल ज़िले में एक महिला में पाया गया था। 1953 में नील डेल्टा क्षेत्र में पक्षियों में इसकी पहचान की गई थी।भारत की बात करें तो केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और असम से एकत्र किये गए मानव सीरम में वेस्ट नील वायरस न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी मौज़ूद पाई गई है ।