शुगर या डायबिटीज अब हमारे लिए अनजाने शब्द नहीं रह गए हैं। कम ही परिवार ऐसे हैं, जहां इस बीमारी के मरीज ना हों। डायबिटीज टाइप-1 और डायबिटीज टाइप-2 दोनों के मरीजों की संख्या हमारे देश में काफी बड़ी है। हमारा देश दुनियाभर के डायबिटीज रोगियों की राजधानी है। आइए, आज समझते हैं कि आखिर कौन-से ऐसे लक्षण हैं, जिन पर समय रहते गौर करके हम इस बीमारी को गंभीर होने से रोक सकते हैं…
क्या होती है डायबिटीज?
-डायबिटीज एक ऐसी समस्या है, जिसमें ब्लड के अंदर ग्लूकोज का स्तर नियंत्रित नहीं हो पाता है। अब आपके मन में यह सवाल आएगा कि आखिर यह नियंत्रित क्यों नहीं हो पाता? साथ ही पहले ऐसा क्या था शरीर के अंदर जो यह नियंत्रित हो रहा था? तो आइए, इन दोनों सवालों के जबाव जानते हैं…
-दरअसल, हमारे शरीर के अंदर पैंक्रियाज नाम की एक ग्रंथि होती है। यह इंसुलिन नाम का हॉर्मोन बनाती है। यह हॉर्मोन हमारे शरीर में प्रवाहित होनेवाले रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित रखने का काम करता है।
-लेकिन जब कुछ कमियों के चलते पैंक्रियाज इंसूलिन का उत्पादन कम कर देती है या बंद कर देती है तो रक्त में ग्लूकोज का स्तर लगातार बढ़ने लगता है और अंत में डायबिटीज का रूप ले लेता है।
कैसे परेशान करती है डायबिटीज?
-रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाने से रक्त में उपस्थित अव्यवों का संतुलन बिगड़ जाता है। जैसे, रक्त में श्वेत रक्त कोशिकाएं (WBC) और लाल रक्त कोशिकाएं (RBC) होती हैं। इनके साथ ही प्लाज्मा भी होता है। ऑक्सीजन भी ब्लड फ्लो के साथ शरीर में प्रवाहित होती है।
-लेकिन जब रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है तो लाल रक्त कोशिकाएं जो घाव को जल्दी भरने का काम करती हैं, ग्लूकोज की अधिकता के कारण वे अपना काम नहीं कर पाती हैं।
-श्वेत रक्त कोशिकाएं जो हमारे शरीर को संक्रमण और रोगों से बचाने का काम करती हैं, उनका प्रभाव ग्लूकोज की अधिकता के कारण कम हो जाता है। वो शरीर पर हमला करनेवाले वायरस और बैक्टीरिया से उतनी तीव्रता से आक्रमण नहीं कर पाती हैं, जैसा कि सामान्य अवस्था में करती हैं।
-इस कारण शुगर के मरीजों के संक्रमण और इंफेक्शन जल्दी-जल्दी होने लगते हैं। साथ ही सामान्य स्थिति की अपेक्षा जल्दी बीमारियां पकड़ने लगती हैं लेकिन इनके ठीक होने का समय कई गुना बढ़ जाता है।
डायबिटीज के प्रारंभिक लक्षण
अब हम बात करते हैं, उन स्थितियों पर जो डायबिटीज के शुरुआती स्तर पर हमारे शरीर में बदलावों के रूप में दिखाई देती हैं। अगर समय रहते हम इन लक्षणों के पहचानकर अपनी दिनचर्या में बदलाव करें और जरूरी दवाओं का सेवन करें तो डायबिटीज को घातक स्तर पर जाने से रोक सकते हैं…
ब्लड प्रेशर हाई रहने की समस्या
-ऐसा आमतौर पर होता है कि जिन लोगों में रक्त के अंदर ग्लूकोज का स्तर सामान्य से अधिक बढ़ जाता है, उनमें हाई ब्लड प्रेशर की समस्या होने लगती है। साथ ही अगर किसी को हाई ब्लड प्रेशर की समस्या पहले से है तो उनमें प्री-डायबिटिक सिंप्टम्स दिखने की संभावना बढ़ जाती है।
-ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ग्लूकोज की अधिकता के कारण ब्लड सामान्य से गाढ़ा हो जाता है। इस गाढ़े ब्लड को पंप करने और इसे पूरे शरीर में पहुंचाने के लिए हमारे हृदय को अधिक जोर लगाना पड़ता है।
-यही वजह है कि शुगर के मरीजों को और हाई बीपी के मरीजों को हार्ट संबंधी समस्याओं का खतरा सामान्य लोगों की तुलना में कहीं अधिक होता है।
त्वचा संबंधी बीमारियां
- जब ब्लड में ग्लूकोज का स्तर बढ़ने लगता है और वाइड ब्लड सेल्स की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है तो त्वचा पर इंफेक्शन, जलन, रैशेज होना, डार्क पैचेज बनना जैसी दिक्कते बहुत जल्दी-जल्दी होने लगती हैं और इन्हें ठीक होने में समय लगता है।
आंखों पर असर
-ब्लड में बढ़ा हुआ ग्लूकोज का स्तर केवल हमें शुगर का मरीज ही नहीं बनाता है बल्कि हमारी आंखों की रोशनी पर भी बुरा असर डालता है। क्योंकि शुगर लगातार बढ़ने से आंखों का पर्दा कमजोर ही जाता है और हमें देखने में दिक्कत होने लगती है।
-दरअसल, आंखों के लैंस में शुगर जमा होनी शुरू हो जाती है। इससे शुगर के मरीजों में रेटिना कमजोर होने लगता है और व्यक्ति अपना विजन धीरे-धीरे खोने लगता है। यही वजह है कि डायबिटीज के पेशंट्स को हर 6 महीने में आंखों के चेकअप की सलाह दी जाती है।
किडनी पर भी असर करता है
-शुगर का असर किडनी पर भी होता है। यह तो हम सभी जानते हैं कि शुगर के मरीजों को जल्दी-जल्दी यूरिन पास होता है। लेकिन यह हममें से कम ही लोग जानते हैं कि आखिर ऐसी समस्या होती क्यों हैं? चलिए इसी को समझते हैं…
- किडनी हमारे शरीर में तरल पदार्थों को फिल्टर (छानना) करने का काम करती है। इस दौरान वेस्ट लिक्विड को अलग करती है और जरूरी लिक्विड को अलग। इसे बाद किडनी इसी प्रॉसेस को सेम लिक्विड के साथ दोहराती है।
-यानी जो वेस्ट लिक्विड निकाला था, उसमें से बचे रह गए पोषक तत्वों को फिर से सोखती है। लेकिन शुगर हो जाने के कारण किडनी की फिल्टर करने की क्षमता कम हो जाती है और लिक्विड को फिर से सोखने की क्षमता भी कम हो जाती है। इस कारण शुगर के मरीजों को जल्दी-जल्दी पेशाब आता है।
गाउट की समस्या का उभर आना
- बल्ड में ग्लूकोज का स्तर बढ़ने से हमारे शरीर के कई बायॉलजिकल फंक्शन पर असर पड़ता है। इन्हीं कारणों से हमारे शरीर के जॉइंट्स में यूरिक एसिड क्रिस्टल्स जमा होने लगते हैं।