स्तम्भ

अखंड भारत दिवस माने क्या

ललित कुमार : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लिंग की पूर्ण सहमति के बाद विश्व के सबसे प्राचीन राष्ट्र के टुकड़े करके अंग्रेज अपने घर चले गए इस दुर्भाग्यशाली अवसर पर अखंड भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले लाखों स्वतंत्रता सेनानीयों की आत्मा कितना रोई होगी कितना तड़पी होगी इसका अंदाजा वह कांग्रेसी नहीं लगा सकते जो हाथ में कटोरा लेकर अंग्रेजों से आजादी की भीख मांगते रहे।

अखंड भारत वाक्यांश का उपयोग हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों शिवसेना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा विश्व हिंदू परिषद आदि द्वारा भारत की हिंदू राष्ट्र के रूप में अवधारणा के लिए भी किया जाता है इन संगठनों द्वारा अखंड भारत के मानचित्र में पाकिस्तान बांग्लादेश आदि को भी दिखाया जाता है यह संगठन भारत से अलग हुए देशों को दोबारा भारत में मिलाकर अविभाजित भारत का निर्माण चाहते हैं अखंड भारत का निर्माण सैद्धांतिक रूप से संगठन (हिंदू एकता)तथा शुद्धि से जुड़ा है

भाजपा जहां इस मुद्दे पर संशय मैं रहती है वही संघ इस विचार का हमेशा मुखर वाहक रहा है संघ के प्रचारक हो० वे० शेषाद्री की पुस्तक The Tragic Story Of Partition मैं अखंड भारत के विचार की महत्वता पर बल दिया गया है संघ के समाचार पत्र ऑर्गेनाइजर मैं सरसंघचालक मोहन भागवत का वक्तव्य प्रकाशित हुआ जिसमें कहा गया कि केवल अखंड भारत तथा संपूर्ण समाज ही असली स्वतंत्रता ला  सकते हैं वर्तमान परिस्थितियों में अखंड भारत के संबंध में यह कहना उचित होगा कि वर्तमान परिस्थितियों में अखंड भारत की परिकल्पना केवल कल्पना मात्र है ऐसा संभव प्रतीत नहीं होता है शिवसेना के सुप्रीमो एवं हिंदू हृदय सम्राट कहे जाने वाले बाल ठाकरे ने अखंड भारत की स्थापना में पहले बचे हुए भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने के लिए शिवसेना को चुनाव में उतारा है।

ललित कुमार
ललित कुमार

अखंड भारत में आज के अफगानिस्तान पाकिस्तान तिब्बत भूटान म्यांमार बांग्लादेश श्रीलंका आते हैं केवल इतना ही नहीं कालांतर में भारत का साम्राज्य में आज के मलेशिया फिलीपींस थाईलैंड दक्षिण वियतनाम कंबोडिया इंडोनेशिया आदि में सम्मिलित थे। सन 1875 तक (अफगानिस्तान पाकिस्तान तिब्बत भूटान म्यांमार बांग्लादेश श्रीलंका)भारत का ही हिस्सा थे लेकिन 1857 की क्रांति के पश्चात ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिल गई थी उन्हें लगा कि इतने बड़े भूभाग का दोहन एक केंद्र से करना संभव नहीं है उन्होंने फूट डालो शासन करो की नीति अपनाई और भारत को अनेकानेक छोटे-छोटे हिस्सों में बांट दिया केवल इतना ही नहीं यह भी सुनिश्चित किया कि कालांतर में भारतवर्ष पुन: अखंड ना बन सके।

कभी-कभी ऐसा विचार भी मन में आ सकता है कि जब हमारे श्रद्धेय नेताओं ने विभाजन स्वीकार कर लिया तो हमने भी उसे स्वीकार कर लेना चाहिए परंतु जरा विचार करें जितने भी लोगों ने स्वाधीनता के लिए प्रयास किए उनकी आंखों के सामने अखंड भारत था या खंडित भारत इसका उत्तर अखंड भारत द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी का विभाजन हो गया इतनी सख्ती थी कि अब यह विभाजन सदैव के लिए है ऐसा लगने लगा था उचलीस खंडों में बांटने के पश्चात जर्मनी का एकीकरण हुआ तो इसके पीछे वहां के लोगों का त्याग और संघर्ष की गाथा के पश्चात आज जर्मनी फिर से अपने अखंड रूप में है वियतनाम का एकीकरण हो चुका है और हजारों वर्षों तक इजराइल के लोग भी  अपनी मातृभूमि से अलग रहे अपना घर और देश क्या होता है यह बात दर-दर ठोकर खाने के बाद उन्हें अच्छी तरह मालूम हो गई थी अट्ठारह सौ वर्ष के लंबे अंतराल के पश्चात इजराइल (येरूशलम) को अपना अस्तित्व प्राप्त हुआ।

आज की युवा पीढ़ी को तोड़ मरोड़कर इतिहास पढ़ा कर भ्रम में रखा जा रहा है अगर अखंड भारत के विषय को आम लोगों के हृदय तक पहुंचाना है तो निम्न  उपाय करने होंगे अखंड भारत स्मृति दिवस का आयोजन करना होगा ताकि युवा पीढ़ी के सामने अखंड भारत का सपना बरकरार रहे अखंड भारत का चित्र अपने कमरों में लगाना यह हमारे आंखों के सामने रहेगा जिससे हमारा संकल्प और मजबूत होता रहेगा। आज की युवा पीढ़ी यह तय कर ले की पुनः खंडित भारत को अखंड राष्ट्र हिंदू राष्ट्र में परिणत किया जा सकता है तो यह संभव है।

Related Articles

Back to top button