ज्ञानेंद्र शर्मादस्तक-विशेषस्तम्भ

क्या रखा है हिंदी में यार

ज्ञानेन्द्र शर्मा

प्रसंगवश

स्तम्भ: शनिवार 27 जून को जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी केरल की मारथोमा गिरजाघर के 90-वें जयंती समारोह को वीडियो से संबोधित कर रहे थे, तब लगभग उसी समय यू0पी0 बोर्ड की हाई स्कूल व इंटर की परीक्षा का परीक्षाफल घोषित किया गया। दोनों घटनाओं में जबर्दस्त विरोधाभास था। प्रधानमंत्री जहॉ अपना भाषण अंग्रेजी में दे रहे थे, यू0पी0 बोर्ड के नतीजे बता रहे थे कि मातृभाषा हिंदी में 8 लाख परीक्षार्थी फेल हो गए।

साल दर साल ऐसे ही परीक्षाफल आ रहे हैं जबकि हजारों नहीं लाखों की संख्या में परीक्षार्थी हिंदी में फेल हो जा रहे हैं। इंटर की हिंदी परीक्षा में 2,69,960 परीक्षार्थी अनिवार्य प्रश्नपत्र में पास होने लायक अंक नहीं ला पाए। ऐसे ही हाई स्कूल की हिंदी परीक्षा में कुल 5,27,866 परीक्षार्थी फेल हो गए। दोनों परीक्षाओं में कुल मिलाकर 7,97,826 परीक्षार्थी हिंदी में फेल हो गए। हिंदी मेें फेल होने का यह सिलसिला कई साल से चल रहा है।

पिछले साल करीब 10 लाख परीक्षार्थी हिन्दी में फेल हो गए थे। 2016 की बात लीजिए। उस साल हिंदी की इंटर की परीक्षा में 4.3 प्रतिशत परीक्षार्थी असफल हो गए थे जबकि अंग्रेजी में फेल होने वालों की संख्या इससे आधी करीब 2.49 प्रतिशत थी। मतलब यह कि हिंदी की बजाये अंग्रेजी को छात्र-छात्राएं ज्यादा गंभीरता से पढ़ते हैं।

बात असल यह है कि हिन्दी को कोई गंभीरता से न लेता है, न पढ़ता है। यह मानकर चला जाता है कि हिन्दी में तो पास हो ही जाएंगे, अंग्रेजी पढ़ लो , बेटा। यही बात बड़े -बड़ों पर भी लागू होती है जो बात तो हिन्दी की करते हैं, उसकी तरफदारी करते हैं लेकिन अंग्रेजियत से परहेज नहीं कर पाते। अंग्रेजी में बात करना इन बड़े -बड़ों की शान-शौकत में शुमार होता है।

अपनी बात पर जोर देने के लिए में आपको विदेशी धरती पर ले चलता हूॅ और उन घटनाओं को फिर से दोहराना चाहता हूॅ जिनसे हिंदी की असलियत का पता चल जाता है। 2000 में भारत और रूस के विदेश मंत्रियों के बीच होने वाली द्विपक्षीय वार्ता को कवर करने के लिए मैं मास्को गया था। वार्ता के बाद दोनों विदेश मंत्रियों की संयुक्त प्रैस कान्फ्रेंस हुई।

भारतीय विदेश मंत्री अंग्रेजी में बोले जबकि रूसी विदेश मंत्री अपनी मातृभाषा रशियन में बोले। रूसी विदश मंत्री के वक्तव्य का तत्काल अंग्रेजी भाषा में अनुवाद साथ-साथ किया जा रहा था। पहले तो मुझे लगा कि शायद रूस के विदेश मंत्री अंग्रेजी कम जानते होंगे लेकिन यह गलतफहमी उस समय दूर हो गई जब एक मौके पर रूसी विदेश मंत्री ने अनुवादक को बीच में टोका और उससे कहा कि वह गलत अनुवाद कर रहा है।

उन्होंने उसमें सुधार किया। मतलब साफ था। रूसी विदेश मंत्री अंग्रेजी भलीभॉति जानते थे लेकिन उन्हें अपनी मातृभाषा में बोलने पर गर्व था। दरअसल रूस वह देश है जहॉ सब कामकाज रूसी भाषा में होता है। सारी पढ़ाई-लिखाई रूसी भाषा में होती है। सारे तकनीकी विषयों की पुस्तकें, पढ़ाई लिखाई और कामकाज का सारा आधारभूत ढॉचा रूसी भाषा में हैं।

जब भारत से वहॉ पढऩे के लिए छात्र-छात्राएं जाते हैं तो पहले उन्हें 6 महीने का रूसी भाषा का कोर्स करना पड़ता है क्योंकि पढ़ाई-लिखाई और हर क्षेत्र में रूसी माध्यम से ही कामकाज होता है। रूस की यात्रा के समय जब मैं मास्को हवाई अड्डे से बाहर निकला था तो हर तरफ मुझे रूसी भाषा में लिखे बिल बोर्ड ही नजर आए, केवल पेप्सी और आईबीएम के विज्ञापन पट अंग्रेजी में थे।

जो दूसरी घटना इस संदर्भ में आपको बताना चाहता हूं, वह 24 मार्च 2006 की है। ब्रसल्स में जो घटना हुई, उसने मुझे झकझोर कर रख दिया। हुआ यह कि ब्रसल्स में हो रही यूरोपियन यूनियन की एक बैठक में जब एक फ्रांसीसी व्यक्ति ने अंग्रेजी में भाषण देना प्रारम्भ कर दिया तो वहॉ मौजूद फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति जेक्स शिराक तथा उनके विदेश मंत्री और वित्त मंत्री सहित फ्रांस का पूरा प्रतिनिधिमण्डल इसके विरोध में बहिर्गमन कर गया।

श्री शिराक ने कहा: यह देखकर हमें गहरा आघात लगा कि एक फ्रांसीसी व्यक्ति, जो यूरोपियन बिजनेस लॉबी का मुखिया है, अपनी बात अपनी भाषा में करने के बजाय अंग्रेजी में कर रहा है। तब उनकी बात सुनने से बेहतर हमें वहॉ से उठकर चला जाना लगा।

कुछ ही देर बाद जब एक और फ्रान्सीसी ने, जो यूरोपियन सेन्ट्रल बैंक के प्रमुख थे, अपनी बात अपनी भाषा में कहानी शुरू की और फ्रांसीसी भाषा का मान-सम्मान वापस लौटा तो पूरा फ्रांसीसी प्रतिमण्डल सभा कक्ष में वापस लौट आया। अपनी भाषा से प्यार करने का यह ऐसा अद्भुुत नजारा था। इसे कोई कैसे भूल सकता है? क्योंकि एक हम हैं कि ऊपर गणेश जी की फोटो लगाकर अपनी शादी-ब्याह के कार्ड तक अंग्रेजी में छपवाते हैं।तीसरी घटना जो

मैं आपको बताना चाहता हूॅ वह ईरान की राजधानी तेहरान की है। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ में मैं उनकी ईरान यात्रा कवर करने गया था। जैसा कि अटल जी पहले भी कर चुके थे, उन्होंने ईरान की संसद में भी हिन्दी में अभिभाषण किया। बाद में जब उन्होंने एक प्रैस वार्ता की तो मैंने उनसे पूछा कि आप यह बताएं जब आप विदेशी धरती पर होते हैं तो हिन्दी में बोलने लगते हैं लेकिन जब दिल्ली और लखनऊ में भाषण देते हैं तो अंग्रेजी में बोलते हैं, ऐसा क्यों?

आम तौर पर एकदम शांत आवभाव वाले अटल जी कुछ सकपकाए, फिर बोले: आप तो खोजी पत्रकार हैं, आप इसका पता लगाइए। सारे पत्रकार हॅस पड़े और बात वहीं खत्म हो गई।
अब मैं अपने देश वापस लौटता हूॅ जहॉ कई छोटे-बड़े नेताओं के बड़े बड़े बोलों के बावजूद वास्तविकता यह है कि हिन्दी यहॉ कोई भाषा नहीं रही है, यह एक राजनीतिक बयान है।

जिसे जब राजनीतिक या अन्य किसी फायदे के कारण किसी को मुआफिक बैठता है, तो वह हिन्दी के प्रति अपना प्यार-दुलार दिखा देता है और अपनी भाषा के प्रति उसकी ड्यूटी यहॉ समाप्त हो जाती है। हमारे दोस्त और मशहूर व्यंगकार स्वर्गीय शरद जोशी कहते थे कि आदमी की हिन्दी की परीक्षा तब होती है, जब वह हवाई जहाज पर चढ़ता है या किसी फाइव स्टार होटल में जाता है। वहॉ मुंह से अपने आप अंग्रेजी निकलने लगती है।

Smiley i love it!

और अंत में, कर लिया कीजिए कभी, दिल को भी सैनेटाइज
क्योंकि नफरत के वायरस, यहीं जन्म लेते हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पूर्व सूचना आयुक्त हैं।)

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