बेंग्लूरू : कर्नाटक में हिंसा के दौरान कांग्रेस और भाजपा की तरफ से ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ (पीएफआई) की राजनीतिक शाखा ‘सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया’ (एसडीपीआई) पर प्रतिबंध लगाने की मांग की जाती है। हाल ही में बेंग्लूरू में हुई हिंसा में भी इस पार्टी का नाम सामने आया है। जिससे एक बार फिर इस पार्टी को प्रतिबंधित करने की मांग ने जोर पकड़ लिया है। भाजपा एसडीपीआई पर प्रतिबंध लगाने का खुलकर समर्थन करती है।
वहीं, कांग्रेस द्वारा इसे प्रतिबंधित करने की मांग के पीछे कई कारण हैं। दरअसल, कर्नाटक की राजनीति में एसडीपीआई का बढ़ता वर्चस्व कांग्रेस के लिए खतरा है, क्योंकि इसकी कर्नाटक के मुस्लिमों तक पहुंच बढ़ रही है। मिली जानकारी के अनुसार कर्नाटक में मुस्लिमों की आबादी 13 फीसदी है और वे कांग्रेस के प्रमुख वोटर माने जाते हैं, लेकिन एसडीपीआई के बढ़ते वर्चस्व की वजह से मुस्लिम अब कांग्रेस के बजाय इसे वोट देने लगे हैं। जो कांग्रेस के लिए राज्य में बड़ा खतरा साबित हो सकता है। कांग्रेस के कुछ सदस्यों में यह चिंता है कि एसडीपीआई की वजह से पार्टी का मुस्लिमों की एकमात्र राजनीतिक आवाज बनना बंद हो सकता है। पिछले दो सालों में एसडीपीआई ने नगर निकायों चुनावों और ग्राम पंचायत चुनावों में खासा समर्थन हासिल किया है। वहीं, कांग्रेस इस बात को नकारती रही है कि एसडीपीआई के वर्चस्व से पार्टी को खतरा है। लेकिन कुछ नेताओं का मानना है कि एसडीपीआई की लोकप्रियता से अल्पसंख्यक वोट बंट जाएंगे, जिसका फायदा भाजपा को मिलेगा। सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) की स्थापना 21 जून, 2009 को नई दिल्ली में की गई। एसडीपीआई पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की राजनीतिक शाखा है। इसकी स्थापना के एक साल बाद 13 अप्रैल, 2010 को चुनाव आयोग में इसे पंजीकृत कराया गया। एमके फैजी एसडीपीआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। एसडीपीआई की वेबसाइट के मुताबिक, जिसमें वो खुद को पूरे देश में फैला हुआ राजनीतिक संगठन बताती है। पार्टी का उद्देश्य मुस्लिम, दलित, पिछड़ा वर्ग और आदिवासी समुदाय के हितों का ध्यान रखना और उनकी भलाई करना है।
एसडीपीआई की वेबसाइट पर आमतौर पर फैजी का चेहरा ही नजर आता है। वेबसाइट पर उन्होंने अपने और पार्टी के बारे में जानकारी दी हुई है। पार्टी का कहना है कि वह देश के नागरिकों की नुमाइंदगी करती है। वेबसाइट के अनुसार, पार्टी का कहना है कि उसका उद्देश्य देश में नव-औपनिवेशिक और नव-उदारवादी संघर्षों से लड़ना है। वेबसाइट पर कहा गया है कि इसकी स्थापना के बाद देश के विभिन्न राज्यों से लोग पार्टी के सदस्य बने हैं। बताया गया है कि पार्टी धीरे-धीरे देश के विभिन्न भागों में फैल रही है।
एसडीपीआई की वेबसाइट में बताया गया है कि इसका मुख्यालय दिल्ली के निजामुद्दीन में स्थित है। हालांकि, पार्टी के अधिकतर पदाधिकारी अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और दक्षिण भारतीय राज्यों से आते हैं। पिछले 10 सालों में इस पार्टी ने दक्षिण भारत के कई शहरों में कार्यक्रमों का आयोजन किया है। 2013 के विधानसभा चुनावों में एसडीपीआई ने 23 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन उसे बुरी तरह पराजय हासिल हुई।