पितृ पक्ष : क्या अंतर है श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान में? ये है पूरी विधि और महत्व
नई दिल्ली : पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष शुरू हो रहे हैं. ये 25 सितंबर को सर्व पितृ अमावस्या पर समाप्त होंगे. भाद्रपद मास की पूर्णिमा से ही श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान कार्य शुरू हो जाते हैं. श्राद्ध, तर्पण और पिंड दान में अंतर है और इनकी विधियां भी अलग-अलग हैं. ज्योतिष और धर्म में श्राद्ध को लेकर कहा गया है पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं.
जबकि तर्पण में पितरों, देवताओं, ऋषियों को तिल मिश्रित जल अर्पित करके तृप्त किया जाता है. वहीं पिंडदान को मोक्ष प्राप्ति के लिए सहज और सरल मार्ग माना गया है. इसलिए पिण्डदान अथवा तर्पण के लिए बिहार स्थित गया जी को सर्वश्रेष्ठ जगह बताया गया है. हालांकि अब देश के कई पवित्र स्थलों पर पिंडदान, तर्पण कार्य किया जाने लगा है.
श्राद्ध पक्ष के दौरान पितरों के लिए की जाने वाली सभी क्रियाएं दाएं कंधे पर जनेऊ धारण करके और दक्षिण दिशा की ओर मुख करके की जाती हैं. तर्पण के लिए काले तिल मिश्रित जल को पितरों का ध्यान करते हुए अर्पित किया जाता है. वहीं श्राद्ध में पितरों को भोजन अर्पित करते हुए पंचबली निकाली जाती है.
यानी कि गाय, कुत्ते, कौवे, देवताओं और चीटी के लिए भोजन निकाला जाता है. इस तरह भोजन और जल देने से पितरों की क्षुधा शांत होती है. ध्यान रखें कि श्राद्ध का भोजन, दूध, चावल, शक्कर और घी से बने पदार्थ का होता है. ध्यान रखें कि कुश के आसन पर बैठकर पंचबली के लिए भोजन रखें. इसके बाद पितरों का स्मरण करते हुए.
इस मंत्र का 3 बार करें जप
ओम देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च नम:.
स्वधायै स्वाहायै नित्य में भवन्तु ते .
इसके बाद तीन -तीन आहुतियां दें
आग्नेय काव्यवाहनाय स्वाहा
सोमाय पितृ भते स्वाहा
वै वस्वताय स्वाहा
इतना करना भी संभव न हो पाए तो जलपात्र में काला तिल डालकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके तर्पण करें और ब्राह्मण को फल-मिठाई खिलाकर दक्षिणा दें.
पिंडदान के लिए मशहूर हैं ये जगहें
वहीं पिंडदान के लिए लोग मुख्य तौर पर गया जी और हरिद्वार, गंगासागर, जगन्नाथपुरी, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर आदि भी जाते हैं. यहां पिंडदान कार्य करने वाले ब्राह्मण नियमानुसार पिंड बनाकर विधि-विधान से पिंडदान कराते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से पितरों के लिए मोक्ष जाना सरल हो जाता है.