जीवनशैली : एक बार श्रीकृष्ण गोप−गोपियों के साथ गायें चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि हजारों गोपियां गोवर्धन पर्वत के पास छप्पन प्रकार के भोजन रखकर बड़े उत्साह से नाच गाकर उत्सव मना रही हैं। श्रीकृष्ण के पूछने पर गोपियों ने बताया कि मेघों के स्वामी इन्द्र को प्रसन्न रखने के लिए प्रतिवर्ष यह उत्सव होता है। श्रीकृष्ण बोले− यदि देवता प्रत्यक्ष आकर भोग लगाएं, तब तो इस उत्सव की कुछ कीमत है। गोपियां बोलीं− तुम्हें इन्द्र की निन्दा नहीं करनी चाहिए। इन्द्र की कृपा से ही वर्षा होती है।
गोवर्धन पूजा से उतर जाते हैं पाप, मिलता है मोक्ष, कृष्ण ने की थी ब्रजवासियों की रक्षा
श्रीकृष्ण ने कहा− वर्षा तो गोवर्धन पर्वत के कारण होती है, हमें इन्द्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। सभी गोप−ग्वाल अपने−अपने घरों से पकवान ला−लाकर श्रीकृष्ण की बताई विधि से गोवर्धन की पूजा करने लगे। इन्द्र को जब पता चला कि इस वर्ष मेरी पूजा न होकर गोवर्धन की पूजा की जा रही है तो वह कुपित हुए और मेघों को आज्ञा दी कि गोकुल में जाकर इतना पानी बरसायें कि वहां पर प्रलय का दृश्य उत्पन्न हो जाये।
मेघ इन्द्र की आज्ञा से मूसलाधार वर्षा करने लगे। श्रीकृष्ण ने सब गोप−गोपियों को आदेश दिया कि सब अपने−अपने गायों बछड़ों को लेकर गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुंच जाएं। गोवर्धन ही मेघों की रक्षा करेंगे। सब गोप−गोपियां अपने−अपने गाय−बछड़ों, बैलों को लेकर गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुंच गये।
श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठ उंगली पर धारण कर छाता सा तान दिया। सब ब्रजवासी सात दिन तक गोवर्धन पर्वत की शरण में रहे। सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर जल की एक बूंद भी नहीं गिरी। ब्रह्माजी ने इन्द्र को बताया कि पृथ्वी पर श्रीकृष्ण ने जन्म ले लिया है। उनसे तुम्हारा बैर लेना उचित नहीं है। श्रीकृष्ण अवतार की बात जानकर इन्द्रदेव लज्जित हुए तथा भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा−याचना करने लगे। श्रीकृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखकर ब्रजवासियों से कहा कि अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो। तभी यह यह गोवर्धन पर्व के रूप में प्रचलित हो गया।
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