दस्तक-विशेष

क्या है यूएनएफसीसीसी और कैसे आया अस्तित्व में

नई दिल्ली ( विवेक ओझा) : जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) एक अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय है। यह वैधानिक रूप से बाध्यकारी ( legally binding) अभिसमय है । चूंकि इसकी उत्पत्ति रियो डी जेनेरियो के अर्थ समिट से है , इसलिए इसे रियो कन्वेंशन भी कहते हैं । यह 1992 में रियो डी जेनेरियो में हुए पृथ्वी समिट के आउटकम के रूप में 1994 में अस्तित्व में आया था । इस अभिसमय को 9 मई , 1992 को संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय न्यूयॉर्क में अंगीकृत किया गया था। इसका सचिवालय जर्मनी के बान में स्थित है । यह जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कॉन्फ्रेंस ऑन पार्टीज यानि कोप का आयोजन करता है ।

1995 से अब तक 28 बार कोप बैठक आयोजित की जा चुकी है । 28वीं बैठक दुबई में 30 नवंबर से 12 दिसंबर के बीच आयोजित की गई थी । वर्तमान में इसमें 197 देश पक्षकार हैं जिसमें एक क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण संगठन यूरोपियन यूनियन भी शामिल है। इसका मुख्य उद्देश्य वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करना है। यह समझौता जून 1992 के पृथ्वी सम्मेलन के दौरान किया गया था। इस समझौते पर विभिन्न देशों द्वारा हस्ताक्षर के बाद 21 मार्च 1994 को इसे लागू किया गया था। यूएनएफसीसीसी की वार्षिक बैठक का आयोजन साल 1995 से लगातार किया जा रहा है। यूएनएफसीसीसी की वार्षिक बैठक को कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज (कॉप) के नाम से भी जाना जाता है। यह ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए चर्चा करने वाला वैश्विक मंच है जहां जैव विविधता संरक्षण, वन संरक्षण, वन्य जीव संरक्षण, महासागर संरक्षण आदि मुद्दों पर चर्चा होती है।

क्या है ग्लोबल वार्मिंग, किन गैसों से मिलता है इसे बढ़ावा:

ग्लोबल वार्मिंग को ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के प्रभावों के रूप में प्रदर्शित किया जाता है । पृथ्वी की तरफ से अंतरिक्ष को जाने वाली विकिरण को वायुमंडल द्वारा अवशोषित करने से ये परिघटना सामने आती है । वायुमंडल में कुछ निश्चित गैसों में उष्णता को अवशोषित करने की क्षमता पाई जाती है। ये दीर्घकालिक गैसे जलवायु को नकारात्मक रूप से असर पहुंचाती हैं । जलवाष्प सर्वाधिक मात्रा में पाई जाने वाली ग्रीनहाउस गैस है , जिससे जलवायु परिवर्तन का संकेत मिलता है । जैसे जैसे पृथ्वी का वायुमंडल गरम होता जाता है , जलवाष्प की मात्रा भी वैसे वैसे बढ़ती जाती है । इसी प्रकार कार्बन डाइऑक्साइड का कई कारकों के चलते उत्सर्जन जैसे श्वसन , ज्वालामुखी विस्फोट और मानव गतिविधियां जैसे वनों की कटाई, भूमि प्रयोग में परिवर्तन , जीवाश्म ईंधन को जलाना आदि से ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा मिलता है ।

औद्योगिक क्रांति के बाद से मानव गतिविधि से वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के संकेद्रण में तीन गुना से अधिक की वृद्धि हुई है । मीथेन भी एक प्रमुख ग्रीन हाउस गैस है । यह एक ऐसा हाइड्रोकार्बन गैस है जो प्राकृतिक और मानव दोनों प्रकार की गतिविधियों से उत्पन्न होता है । अपशिष्टों के सड़ने गलने , कृषि कार्य विशेष रुप से धान या चावल की खेती से और घरेलू पशुओं के पाचन के क्रम में होने वाले उत्सर्जन से ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देने में मीथेन की भूमिका है।

नाइट्रस ऑक्साइड एक अन्य शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है कृषि कार्यों और मृदा संबंधी गतिविधियों खासकर वाणिज्यिक और ऑर्गेनिक उर्वरकों के उपयोग , जीवाश्म ईंधन दहन , नाइट्रिक एसिड का उत्पादन और बायोमास को जलाने से इसका उत्सर्जन होता है । क्लोरोफ्लोरोकार्बन एक ग्रीन हाउस गैस के रूप में ग्लोबल वार्मिंग में अपनी भूमिका निभाता है । यह ऐसे संश्लेषण कारी यौगिक हैं जो पूर्ण रूप से औद्योगिक प्रकृति के होते हैं और इनका विभिन्न क्षेत्रों में इस्तेमाल होता है ।

क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) एक कार्बनिक यौगिक है जो केवल कार्बन, क्लोरीन, हाइड्रोजन और फ्लोरीन परमाणुओं से बनता है। सीएफसी का इस्तेमाल रेफ्रिजरेंट, प्रणोदक (एयरोसोल अनुप्रयोगों में) और विलायक के तौर पर व्यापक रूप से होता है। वायुयान में अग्नि नियंत्रक प्रणाली में भी सीएफसी का प्रयोग किया जाता है । फोम और पैकेजिंग के सामग्री में भी यह काम में लाया जाता है ।

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