गेहूं की कमी या मुनाफाखोरी? जीएसटी लगने से पहले ही नॉन ब्रांडेड आटा, मैदा-सूजी के दाम बढ़े
बरेली : बाजार में पिछले एक सप्ताह से नॉन ब्रांडेड आटा, मैदा, सूजी आदि के दामों से प्रति क्विंटल 150 रुपये तक का उछाल आया है। इसकी वजह इन उत्पादों पर 18 जुलाई से लगने वाली पांच फीसदी जीएसटी के साथ गेहूं की कमी को बताया जा रहा है। हालांकि जानकार मुनाफाखोरी की संभावना से भी इनकार नहीं कर रहे। यह तथ्य मंगलवार को हिन्दुस्तान की पड़ताल में सामने आए। पूर्व से लेकर पश्चिम तक कोई भी जनपद इसके अछूता नहीं है। लखनऊ में 2250 रुपये प्रति क्विंटल वाला आटा 2400 रुपये में, 2700 रुपये वाली सूजी 2800 में और 9250 रुपये वाली अरहर की दाल 9500 रुपये प्रति क्विंटल में बिक रही है। प्रयागराज में आटा 2500 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है, जबकि मैदा 2550 रुपये हो गया है। गोरखपुर, वाराणसी और कानपुर में भी आटा व सूजी 150 रुपये क्विंटल तक महंगा हो गया है। कानपुर में अरहर की दाल भी 8800 रुपये से बढ़कर 9100 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। बरेली में 28 जून को जो आटा 2380 रुपये प्रति क्विंटल था, वो अब 2490 रुपये में मिल रहा है। 5500 रुपये क्विंटल वाले चावल की कीमत भी 80 से 100 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़ गई है।
गेहूं का दाम जाड़ों तक बढ़ने की आशंका है। रूस और यूक्रेन के युद्ध का असर गेहूं खरीद पर जबर्दस्त पड़ा है। यूपी में 60 लाख मीट्रिक टन का लक्ष्य था लेकिन 3.63 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हुई है। ज्यादातर गेहूं निजी कम्पनियों ने बाहरी देशों को निर्यात कर दिया। अभी किसान के पास अपना गेहूं है लेकिन जब ये खत्म होगा तो निशुल्क राशन पर निर्भर 60 फीसदी लोग बाजार से इसे खरीदेंगे तो अक्तूबर-नवम्बर तक दाम बढ़ेंगे।
जमाखोरी पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है। सरकार हर खाद्यान्न की लिमिट तय करती है कि कितना खाद्यान्न छोटे से बड़े व्यापारी जमा कर सकते हैं। गेहूं को लेकर अभी तक केन्द्र सरकार ने कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं किया है। जुलाई 2021 में दाल की जमाखोरी को लेकर केन्द्र सरकार ने छापामारी का अभियान चलाया था। छापेमारी का अभियान केन्द्र सरकार की अधिसूचना के बाद ही चलाया जा सकता है। लिमिट से ज्यादा खाद्यान्न रखने की शिकायत या सूचना पर राज्य सरकार छापा मार सकती है।