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आतताई औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं: मोदी

लखनऊ/वाराणसी: काशी शब्दों का विषय नहीं है, संवेदनाओं की सृष्टि है। काशी वो है, जहां जागृति ही जीवन है। काशी वो है, जहां मृत्यु भी मंगल है। काशी वो है जहां सत्य ही संस्कार है। काशी वह है जहां प्रेम ही परम्परा है। इसीलिए यहां अगर आतताई औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं। अगर कोई सालार मसूद इधर बढ़ता है तो राजा सुहैलदेव जैसे वीर योद्धा उसे हमारी एकता की ताकत का एहसास करा देते हैं। यही नहीं, अंग्रेजों के दौर में भी हेस्टिंग का क्या हश्र काशी के लोगों ने किया था ये तो काशी के लोग जानते ही हैं। ये बातें श्री काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण करने पहुंचे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहीं।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आततायियों ने इस नगरी पर आक्रमण किए, इसे ध्वस्त करने के प्रयास किए। इतिहास औरंगजेब के अत्याचार, उसके आतंक का साक्षी है। जिसने सभ्यता को तलवार के बल पर बदलने की कोशिश की, जिसने संस्कृति को कट्टरता से कुचलने की कोशिश की, लेकिन इस देश की मिट्टी बाकी दुनिया से कुछ अलग है। यहां अगर औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं। अगर कोई सालार मसूद इधर बढ़ता है तो राजा सुहैलदेव जैसे वीर योद्धा उसे हमारी एकता की ताकत का अहसास करा देते हैं। यही नहीं अंग्रेजों के दौर में भी हेस्टिंग का क्या हश्र काशी के लोगों ने किया था, ये तो काशी के लोग जानते ही हैं।

उन्होंने कहा कि काशी शब्दों का विषय नहीं है, संवेदनाओं की सृष्टि है। काशी वो है- जहां जागृति ही जीवन है! काशी वो है- जहां मृत्यु भी मंगल है! काशी वो है- जहां सत्य ही संस्कार है! काशी वो है- जहां प्रेम ही परंपरा है। बनारस वो नगर है जहां से जगद्गुरू शंकराचार्य को श्री डोम राजा की पवित्रता से प्रेरणा मिली। उन्होंने देश को एकता के सूत्र में बांधने का संकल्प लिया। ये वो जगह है जहां भगवान शंकर की प्रेरणा से गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस जैसी अलौकिक रचना की। यहीं की धरती सारनाथ में भगवान बुद्ध का बोध संसार के लिए प्रकट हुआ।

समाजसुधार के लिए कबीरदास जैसे मनीषी यहां प्रकट हुये। समाज को जोड़ने की जरूरत थी तो संत रैदास जी की भक्ति की शक्ति का केंद्र भी ये काशी बनी। काशी अहिंसा, तप की प्रतिमूर्ति चार जैन तीर्थंकरों की धरती है। राजा हरिश्चंद्र की सत्यनिष्ठा से लेकर वल्लभाचार्य, रामानन्द जी के ज्ञान तक… चैतन्य महाप्रभु, समर्थगुरु रामदास से लेकर स्वामी विवेकानंद, मदनमोहन मालवीय तक कितने ही ऋषियों, आचार्यों का संबंध काशी की पवित्र धरती से रहा है। उन्होंने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज के चरण यहां पड़े थे। रानी लक्ष्मीबाई से लेकर चंद्रशेखर आज़ाद तक, कितने ही सेनानियों की कर्मभूमि-जन्मभूमि काशी रही है। भारतेन्दु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद, पंडित रविशंकर और बिस्मिल्लाह खान जैसी प्रतिभाएं इस स्मरण को कहां तक ले जाया जायें।

उन्होंने कहा कि आप यहां जब आएंगे तो केवल आस्था के दर्शन नहीं करेंगे। आपको यहां अपने अतीत के गौरव का अहसास भी होगा। कैसे प्राचीनता और नवीनता एक साथ सजीव हो रही है, कैसे पुरातन की प्रेरणाएं भविष्य को दिशा दे रही हैं, इसके साक्षात दर्शन विश्वनाथ धाम परिसर में हम कर रहे हैं। हमारे पुराणों में कहा गया है कि जैसे ही कोई काशी में प्रवेश करता है, सारे बंधनों से मुक्त हो जाता है। भगवान विश्वेश्वर का आशीर्वाद, एक अलौकिक ऊर्जा यहाँ आते ही हमारी अंतर-आत्मा को जागृत कर देती है। उन्होंने कहा कि अभी मैं बाबा के साथ साथ नगर कोतवाल कालभैरव जी के दर्शन करके भी आ रहा हूँ। देशवासियों के लिए उनका आशीर्वाद लेकर आ रहा हूँ। काशी में कुछ भी खास हो, कुछ भी नया हो, उनसे पूछना आवश्यक है। मैं काशी के कोतवाल के चरणों में भी प्रणाम करता हूँ। विश्वनाथ धाम का ये पूरा नया परिसर एक भव्य भवन भर नहीं है, यह प्रतीक है हमारे भारत की सनातन संस्कृति का। यह प्रतीक है हमारी आध्यात्मिक आत्मा का, भारत की प्राचीनता का, परम्पराओं का, भारत की ऊर्जा का।

उन्होंने कहा कि पहले यहां मंदिर क्षेत्र केवल तीन हजार वर्ग फीट में था, वो अब करीब 5 लाख वर्ग फीट का हो गया है। अब मंदिर और मंदिर परिसर में 50 से 75 हजार श्रद्धालु आ सकते हैं। यानी श्रद्धालु पहले मां गंगा का दर्शन-स्नान कर वहां से सीधे विश्वनाथ धाम का दर्शन अर्चन कर सकेगा। उन्होंने कहा कि काशी तो काशी है! काशी तो अविनाशी है। काशी में एक ही सरकार है, जिनके हाथों में डमरू है, उनकी सरकार है। जहां गंगा अपनी धारा बदलकर बहती हों, उस काशी को भला कौन रोक सकता है।

उन्होंने कहा कि मैं आज अपने हर उस श्रमिक भाई-बहन का भी आभार व्यक्त करना चाहता हूं जिसका पसीना इस भव्य परिसर के निर्माण में बहा है। कोरोना के विपरीत काल में भी उन्होंने यहां पर काम रुकने नहीं दिया। मुझे अभी अपने इन श्रमिक साथियों से मिलने का, उनका आशीर्वाद लेने का सौभाग्य मिला है। उन्होंने कहा कि हमारे कारीगर, हमारे सिविल इंजीनयरिंग से जुड़े लोग, प्रशासन के लोग, वो परिवार जिनके यहां घर थे सभी का मैं अभिनंदन करता हूं। इन सबके साथ यूपी सरकार, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का भी अभिनंदन करता हूं जिन्होंने काशी विश्वनाथ धाम परियोजना को पूरा करने के लिए दिन-रात एक कर दिया।


उन्होंने कहा कि काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण, भारत को एक निर्णायक दिशा देगा, एक उज्व्ाल भविष्य की तरफ ले जाएगा। यह परिसर साक्षी है हमारे सामर्थ्य का, हमारे कर्तव्य का। अगर सोच लिया जाए, ठान लिया जाए तो असंभव कुछ भी नहीं है। हर भारतवासी की भुजाओं में वो बल है, जो अकल्पनीय को साकार कर देता है। हम तप जानते हैं, तपस्या जानते हैं, देश के लिए दिन रात खपना जानते हैं। चुनौती कितनी ही बड़ी क्यों ना हो, हम भारतीय मिलकर उसे परास्त कर सकते हैं।

प्रधानमंत्री ने श्रीकाशी विश्वनाथ धाम लोकार्पण अवसर पर हर भारतवंशी से तीन संकल्प भी कराए। इनमें स्वच्छता, सृजन और आत्मनिर्भर भारत के लिए निरंतर प्रयास शामिल रहा। उन्होंने कहा कि गुलामी के लंबे कालखंड ने हम भारतीयों का आत्मविश्वास ऐसा तोड़ा कि हम अपने ही सृजन पर विश्वास खो दिया। आज हजारों वर्ष पुरानी इस काशी से मैं हर देशवासी का आह्वान करता हूं- पूरे आत्मविश्वास से सृजन करिए, इन्नोवेट करिए, इन्नोवेटिव तरीके से करिए। तीसरा एक संकल्प जो आज हमें लेना है, वो है आत्मनिर्भर भारत के लिए अपने प्रयास बढ़ाने का। यह आजादी का अमृतकाल है। हम आजादी के 75वें साल में हैं। जब भारत सौ साल की आजादी का समारोह मनाएगा, तब का भारत कैसा होगा, इसके लिए हमें अभी से काम करना होगा।

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